राजस्थान की कला संस्कृति से संबंधित शब्द
कोपी➖ ऊँट के चमड़े से बने विशेष जलपात्र को कोपीकहते हैं इसे बिकानेर में बनाया जाता है
वील➖ ग्रामीण महिलाओं द्वारा घर को सजाने और छोटी मोटी दैनिक उपयोगी चीजों को सुरक्षित रखने की एक अलंकृत महलनुमा आकृति है इस आकृति को बांस की खपच्चियों पर लीदयुक्त मिट्टी चिपकाकर कांच के टुकड़ोंसे बनाया जाता है
हुंडा भाड़ा➖ मध्यकाल में राजस्थान में बीमा को हुंडा भाड़ा कहा जाता था जिसमें यह लिखा जाता था कि चोरी लूटपाट के लिए वे जिम्मेदारहैं
चतरा चौथ➖ संपूर्ण डांग क्षेत्र मे गणेश चतुर्थी के त्योहार को चतरा चौथ कहते हैं विशेष तौर से सवाई माधोपुर व उससे लगते जिलों में गणेश चतुर्थी का त्योहार इसी नाम से जाना जाता है
बालद➖ यह बंजारे के बैलों का समूह होता है इसमें बैलों की पीठ पर माल-मिश्री ,गुड, शक्कर ,मेंवे, अनाज लादकर देश परदेश व्यापारहेतु जाते थे
बिस्मिल्लाह➖ मुसलमानों में बच्चे का 4 वर्ष 4 माह व 4 दिन का होने पर उसे बिसमिल्लाह करनेदिया जाता है ?इसमें बच्चे को मसनद पर बिठाकर मुल्ला कुरान की औसत प्रथम पढ़ते हैं और बच्चा उसे दोहराता है
चेहल्लम➖ मुसलमानों में मृत्यु के 40 दिन बाद 40 वा मनाया जाता है इसे चेहल्लम कहते हैं इस दिन कुरान का पाठ कर दावत दी जाती है
धरेजा➖ वह व्यक्ति जिसका विवाह नहीं होपाया है या विधूर हो और वह ऐसी स्त्री जिसका विवाह नहीं हो पाया या विधवाहो को आपसी सहमति से घर ले आना धरेजा कहलाता है
देरी-सेरी➖ यह 15 जैन मंदिरों का कतारबद्ध समूहहै यह समूह सिरोही राज महल के निकटस्थित है
धनक➖ बड़ी-बड़ी चौकोर बूँदों से युक्त अलंकरण धनक कहलाता है
निर्मोही व्यास➖ यह एक नाट्य लेखक व रंगकर्मी थे इनका संबंध राज्य के बीकानेर जिलेसे था यह रंगमंच के सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानितहै अनामिका समय के सांचे,शब्दों की बौछार सहित कई रचनाएंकी थी
खरड➖ यह जवाहरात का मुख्य कच्चा माल होता है किसी भी हीरे जवाहरात का खान से प्राकृतिक रूप से निकलने वाला पत्थर हीरे जवाहरात की खरड़ या रफ कहलाती है
गोवर्धन➖ मारवाड़ में वीर पुरुषों के गौ रक्षार्थ दिवगंतहो जाने पर जो समाधि-स्थल बने होते हैं उन्हें गोवर्धन कहते हैं क्योंकि कृष्ण गोवर्धन धारण किए होते हैं
नैडा अंचल➖ राजस्थान के अलवर जिले में स्थित है यह स्थान सरिस्का वनश्रीसे संपन्न है साथ ही प्राचीन कला और शिल्प काभी यहां बहुत बड़ा खजाना मौजूदहै यहां की छतरियां भित्ति चित्रण के तत्कालीन स्थापत्य को दर्शाती है
जस्मा ओडन➖ शांता गांधी द्वारा लिखित भवाई शैली की लोक नाटिकाहै जो सगौजी और सगीजी के रूप में भोपा-भोपी द्वारा प्रस्तुत की जाती है
लाल्या-काल्या मेला➖ यह मेला अजमेर शहर का एक ऐतिहासिकमेला है जो करीब 350 साल से भरता आ रहा है इसमें लाल्या वराह भगवान और काल्या हिरण्याक्षका प्रतीक है यह मेला नरसिंह चतुर्दशी को भरता है होलिका का रूप में नकटी धरती है
आन प्रथा➖ मेवाड़ में महाराणा के प्रति ली जाने वाली स्वामी भक्ति की शपथ आन प्रथा कहलाती है जिसे 1863 में ब्रिटिश सरकार ने एक आदेश से बंद कर दिया था
पेटिया प्रथा➖ यह प्रथा डूंगरपुर रियासत में प्रचलित थी इस प्रथा के अंतर्गत डूंगरपुर रियासतके किसी भी अधिकारी या सामान्य कर्मचारीद्वारा सरकारी काम से किसी स्थान पर रुकनेपर उसके व साथियों के भोजन की निशुल्क व्यवस्था संबंधित ग्राम वासियोंको करनी पड़ती थी
इजारा➖ राजस्थान की देसी रियासतों में प्रचलित भूराजस्व की एक प्रणाली थी इस प्रणाली में सबसे ऊंची बोलीलगाने वाले को वह कृषि भूमि निश्चित अवधि के लिए जोतने हेतु दे दी जाती थी
फरका साग➖ यह एक प्रकार का साग है यह मरुस्थल और चट्टानी क्षेत्रोंमें झाडी फोग के रूपमे मिलती है झाड़ी फोग के फूलों को फरकाकहते हैं इन फूलों से बनने वाले साग को फरका साग कहते हैं
चौखा और बुगता➖ मेवाड़ शैलीकी प्रसिध्द उपशैली देवगढ़ शैली हैयह शैली 18वीं 19 वीं शताब्दीमें फली-फूली थी इस शैली में तीन प्रसिद्ध चित्रकार चौखा,बुगताऔर केवलाथे
रासधारी➖ रासलीला में अभिनयकरने वाला कलाकार होता है जो श्रीकृष्ण के जीवन चरित्रपर आधारित होती है जिसमें श्री कृष्ण के जीवन की विविध लीलाएं अभिनीत की जाती है