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भारत में मिट्टी के प्रकार | Types of soil in India Hindi Samanya Gyan

मृदा अथवा मिट्टी पृथ्वी की सबसे उपरी परत होती है। मिट्टी का निर्माण टूटी चट्टानो के छोटे महीन कणों, खनिज, जैविक पदार्थो, बॅक्टीरिया आदि के मिश्रण से होता है। मिट्टी के कई परतें होती हैं, सबसे उपरी परत में छोटे मिट्टी के कण, गले हुए पौधे और जीवों के अवशेष होते हैं यह परत फसलों की पैदावार के लिए महत्त्‍वपूर्ण होती है। दूसरी परत महीन कणों जैसे चिकनी मिट्टी की होती है और नीचे की विखंडित चट्टानो और मिट्टी का मिश्रण होती है तथा आख़िरी परत में अ-विखंडित सख्‍त चट्टानें होती हैं। देश के सभी भागों में मिट्टी की गहराई आसमान रूप से पाई जाती है यह कुछ सेमी. से लेकर 30 मी. तक गहरी हो सकती है।

हर मिट्टी की अपनी विशेषता होती है। अपनी विशिष्ट  भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं के माध्‍यम से विभिन्‍न प्रकार की फसलों को लाभ प्रदान करती है जलोढ मिट्टी उपजाऊ मिट्टी है जो पोटेशियम से भरपूर है और यह कृषि विशेष कर धान, गन्‍ना और केले की फसल के लिए बहुत उपयुक्‍त है। लाल मिट्टी में लौह मात्रा अधिक होती है और यह  चना, मूंगफली और अरण्‍डी के बीज की फसल के लिए उपयुक्‍त है। काली मिट्टी में कैल्शियम, पौटेशियम और मैग्निशियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है लेकिन इसमें नाइट्रोजन की मात्रा कमहोती है। कपास, तम्‍बाकू, मिर्च तिलहन, ज्‍वार, रागी और मक्‍के जैसी फसलें इसमें अच्‍छी उगती हैं। रेतीली मिट्टी में पोषक तत्त्‍व कमहोते हैं लेकिन यह अधिक वर्षा क्षेत्रों में नारियल, काजू और कैजुरिना के पेड़ों के विकास में उपयोगी है।

भारत में मिट्टी के प्रकार

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Indian Council of Agricultural Research-I.C.A.R.)ने भारतीय मिट्टी को 8 भागों में बांटा है-

  1. लाल मिट्टी Red Soil
  2. काली मिट्टी Black Soil
  3. लैटेराइट मिट्टी Laterite Soil
  4. क्षारयुक्त मिट्टी Saline and Alkaline Soil
  5. हल्की काली एवं दलदली मिट्टी Peaty and Other Organic soil
  6. रेतीली मिट्टी Arid and Desert Soil
  7. कांप मिट्टी Alluvial Soil
  8. वनों वाली मिट्टी Forest Soil

लाल मिट्टी Red Soil

यह मिट्टी अपक्षय के प्रभाव से चट्टानों के टूट-फुट से बनती है| आयरन ऑक्साइड की अधिकता के कारण इस मिट्टी का रंग लाल दिखता है| यह मिट्टी प्रमुख रूप से मध्य-प्रदेश, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, छोटा नागपुर के पठार, आंध्र प्रदेश के दण्डकारण्य क्षेत्र, पश्चिम बंगालऔर मेघालय में पाई जाती है| पठार तथा पहाड़ियों पर इन मिट्टियों की उर्वराशक्ति कम होती है और ये कंकरीली तथा रूखडी होती हैं, किंतु नीचे स्थानों में अथवा नदियों की घाटियों में ये दोरस हो जाती हैं और अधिक उपजाऊ हो जाती  है और इनमें निक्षालन (Leaching)भी अधिक हुआ है। तटीय मैदानों और काली मिट्टी के क्षेत्र को छोड़कर, प्रायद्वीपीय पठार के अधिकांश भाग में लाल मिट्टी पाई जाती है। इस मिट्टी में मोटे अनाज पैदा होते है जैसे गेंहू, धान, अलसी आदि। इस मिट्टी का संघटन इस प्रकार है-

लाल मिट्टी का रासायनिक संघटन
अघुलनशील तत्व 90.47%
लोहा 3.61%
एल्यूमिनियम 2.92%
जीवांश 1.01%
मैग्निशिया 0.70%
चूना 0.56%
कार्बन डाई ऑक्साइड 0.30%
पोटाश 0.24%

कांप मिट्टी Alluvial Soil

उत्तर के विस्तृत मैदान तथा प्रायद्वीपीय भारत के तटीय मैदानों में मिलती है। यह अत्यंत ऊपजाऊ है इसे जलोढ़ या कछारीय मिट्टी भी कहा जाता है यह भारत के लगभग 40% भाग में पाई जाती है| यह मिट्टी सतलज, गंगा, यमुना, घाघरा,गंडक, ब्रह्मपुत्र और इनकी सहायक नदियों द्वारा लाई जाती है| इस मिट्टी में कंकड़ नही पाए जाते हैं। इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और वनस्पति अंशों की कमी पाई जाती है| खादर में ये तत्व भांभर की तुलना में अधिक मात्रा में वर्तमान हैं, इसलिए खादर अधिक उपजाऊ है। भांभर में कम वर्षा के क्षेत्रों में, कहीं कहीं खारी मिट्टी ऊसर अथवा बंजर होती है। भांभर और तराई क्षेत्रों में पुरातन जलोढ़, डेल्टाई भागों नवीनतम जलोढ़, मध्य घाटीमें नवीन जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है। पुरातन जलोढ़ मिट्टी के क्षेत्र को भांभर और नवीन जलोढ़ मिट्टी के क्षेत्र  को खादर  कहा जाता है।

पूर्वी तटीय मैदानों में यह मिट्टी कृष्णा, गोदावरी, कावेरी और महानदी के डेल्टा में प्रमुख रूप से पाई जाती है| इस मिट्टी की प्रमुख फसलें खरीफ और रबी जैसे- दालें, कपास, तिलहन, गन्ना और गंगा-ब्रह्मपुत्र घाटी में जूट प्रमुख से उगाया जाता है।


काली मिट्टी Black Soil

यह मिट्टी ज्वालामुखी से निकलने वाले लावा से बनती है| भारत में यह लगभग 5 लाख वर्ग-किमी. में फैली है| महाराष्ट्र में इस मिट्टी का सबसे अधिक विस्तार है। इसे दक्कन ट्रॅप से बनी मिट्टी भी कहते हैं। इस मिट्टी में चुना, पोटॅश, मैग्निशियम, एल्यूमिना और लोहा पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इसका विस्तार लावा क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि नदियों ने इसे ले जाकर अपनी घाटियों में भी जमा किया है। यह बहुत ही उपजाऊ है और कपास की उपज के लिए प्रसिद्ध है इसलिए इसे कपासवाली काली मिट्टी कहते हैं। इस मिट्टी में नमी को रोक रखने की प्रचुर शक्ति है, इसलिए वर्षा कम होने पर भी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। इसका काला रंग शायद अत्यंत महीन लौह अंशों की उपस्थिति के कारण है। इस मिट्टी का रासायनिक संघटन इस प्रकार है-

काली मिट्टी का रासायनिक संघटन
फेरिक ऑक्साइड 11.24%
एल्यूमिना 9.39%
जल तथा जीवांश 5.83%
चूना 1.81%
मैग्निशिया 1.79%

इसकी मिट्टी की मुख्य फसल कपास है। इस मिट्टी में गन्ना, केला, ज्वार, तंबाकू, रेंड़ी, मूँगफली और सोयाबीन की भी अच्छी पैदावार होती है।


लैटेराइट मिट्टी Laterite Soil

यह मिट्टी रासायनिक क्रियाओं तथा चट्टानो के टूट-फूट द्वारा शुष्क मौसम में बनती है। इस मिट्टी में भी आइरन ऑक्साइड की अधिकता पाई जाती है। यह देखने में लाल मिट्टी की तरह लगती है, किंतु उससे कम उपजाऊ होती है। ऊँचे स्थलों में यह प्राय: पतली और कंकड़मिश्रित होती है और कृषि के योग्य नहीं रहती, किंतु मैदानी भागों में यह खेती के काम में लाई जाती है।  यह मिट्टी तमिलनाडु के पहाड़ी भागों, केरल, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल तथा उड़ीसा के कुछ भागों में,  दक्षिण भारत के पठार, राजमहल तथा छोटानागपुर के पठार, असम इत्यादि में सीमित क्षेत्रों में पाई जाती है। दक्षिण भारत में मैदानी भागों में इसपर धान की खेती होती है और ऊँचे भागों में चाय, कहवा, रबर तथा सिनकोना उपजाए जाते हैं। इस प्रकार की मिट्टी अधिक ऊष्मा और वर्षा के क्षेत्रों में बनती है। इसलिए इसमें ह्यूमस की कमी होती है और निक्षालन अधिक हुआ करता है। इस मिट्टी का रासायनिक संघटन इस प्रकार है-

लैटेराइट मिट्टी का रासायनिक संघटन
लोहा 18.7%
सिलिका 32.62%
एल्यूमिना 25.2%
फास्फ़ोरस 0.7%
चूना 0.42%

रेतीली मिट्टी Arid and Desert Soil

यह मिट्टी शुष्क और अर्धशुष्क प्रदेशों जैसे – पश्चिमी राजस्थान और आरवाली पर्वत के क्षेत्रों, उत्तरी गुजरात, दक्षिणी हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पाई जाती है। सिंचाई के सहारे गेंहू, गन्ना, कपास, ज्वार, बाजरा  उगाये जाते हैं। जहाँ सिंचाई की सुविधा नहीं है वहाँ यह भूमि बंजर पाई जाती है।


क्षारयुक्त मिट्टी Saline and Alkaline Soil

शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों, दलदली क्षेत्रों, अधिक सिंचाई वाले क्षेत्रों में यह मिट्टी पाई जाती है। इन्हे थूर (Thur), ऊसर, कल्लहड़, राकड़, रे और चोपन के नामों से भी जाना जाता है। शुष्क भागों में अधिक सिंचाई के कारण एवं अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में जल-प्रवाह दोषपूर्ण होने एवं जलरेखा उपर-नीचे होने के कारण इस मिट्टी का जन्म होता है। इस प्रकार की मिट्टी में भूमि की निचली परतों से क्षार या लवण वाष्पीकरण द्वारा उपरी परतों तक आ जाते हैं। इस मिट्टी में सोडियम, कैल्सियम और मैग्निशियम की मात्रा अधिक पायी जाने से प्रायः यह मिट्टी अनुत्पादक हो जाती है।


हल्की काली एवं दलदली मिट्टी Peaty and Other Organic soil

इस मिट्टी में ज़्यादातर जैविक तत्व अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। यह सामान्यतः आद्र-प्रदेशों में मिलती है। दलदली मिट्टी उड़ीसा के तटीय भागों, सुंदरवन के डेल्टाई क्षेत्रों, बिहार के मध्यवर्ती क्षेत्रों, उत्तराखंड के अल्मोड़ा और तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी एवं केरल के तटों पर पाई जाती है।

 

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