तंत्रिका तंत्र का वह भाग जो सम्पूर्ण शरीर तथा स्वयं तंत्रिका तंत्र पर नियंत्रण रखता है, केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र कहलाता है। मस्तिष्क (Brain) तथा मेरुरज्जु दोनों मिलकर केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की स्थापना करते हैं। मस्तिष्क मेरुरज्जु का ही बढ़ा हुआ भाग है।
मस्तिष्क मानव शरीर का केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण अंग है और यह आदेश व नियंत्रण तंत्र की तरह कार्य करता है। यह ऐच्छिक गमन, शरीर के संतुलन, प्रमुख अनैच्छिक अंगों के कार्य, तापमान नियंत्रण, भूख एवं प्यास, परिवहन, लय, अनेक अन्तःस्रावी ग्रन्थियों की क्रियाएँ और मानव व्यवहार का नियंत्रण करता है। यह देखने, सुनने, बोलने की प्रक्रिया, याददाश्त, कुशाग्रता, भावनाओं और विचारों का भी स्थल है। इस प्रकार मस्तिष्क सम्पूर्ण शरीर तथा स्वयं तंत्रिका तंत्र का नियंत्रण कक्ष है। मानव का मस्तिष्क,मस्तिष्ककोश या क्रेनियम (Cranium)के अंदर अच्छी तरह सुरक्षित रहता है। क्रेनियम मस्तिष्क को बाहरी आघातों से बचाता है। मानव मस्तिष्क का औसत भार 1400 ग्राम होता है। इसके चारों ओरमेनिनजेज (Meninges)नामक एक आवरण पाया जाता है। यह आवरण तीन स्तरों का बना होता है। इस आवरण की सबसे बाहरी परत कोड्यूरामेटर (Duramater), मध्य परत कोअरेकनॉइड (Arachnoid)तथा सबसे अंदर की परत कोपायामेटर (Piamater)कहते हैं। मेनिनजेज कोमल मस्तिष्क को बाहरी आघातों तथा दबाव से बचाता है। मेनिनजेज तथा मस्तिष्क के बीचसेरीब्रोस्पाइनल द्रव (Cerebrospinal fluid)भरा रहता है। मस्तिष्क की गुहा भी इसी द्रव्य से भरी रहती है। सेरोब्रोस्पाइनल द्रव मस्तिष्क को बाहरी आघातों से सुरक्षित रखने में मदद करता है। यह मस्तिष्क को नम बनाए रखता है। मानव का मस्तिष्क अन्य कशेरुकों की अपेक्षा ज्यादा जटिल और विकसित होता है। इसका औसत आयतन लगभग 1650 ml होता है। मानव मस्तिष्क को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है। ये हैं-
यह दो भागों में बनता होता है-
यह मस्तिष्क के शीर्ष, पार्श्व तथा पश्च भागों को ढंके रहता है। यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग है। यह सम्पूर्ण मस्तिष्क का लगभग दो-तिहाई हिस्सा होता है। यह एक अनुदैर्घ्य खाँच द्वारा दाएँ एवं बाएँ भागों में बँटा होता है, जिन्हें प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध (Cerebral hemisphere) कहते हैं। दोनों प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध तंत्रिका ऊतकों से बना कॉर्पस कैलोसम (Corpus callosum) नमक रचना के द्वारा एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। गोलार्द्ध में अनेक अनियमिताकार उभरी हुई रचनाएँ होती हैं जिन्हेंगाइरस (Gyrus)कहते हैं। दो गाइरस के बीच अवनमन वाले स्थान को सल्कस (sulcus) कहते हैं। इसके कारण प्रमस्तिष्क वल्कुट (Cerebal cortex) का बहरी क्षेत्र (Surface area) बढ़ जाता है। कार्टेक्स, सेरीब्रम का मोटा धूसर आवरण है, जिस पर अलग-अलग निर्दिष्ट केन्द्र होते हैं जो विभिन्न शारीरिक क्रियाओं का नियंत्रण एवं समन्वयन कुशलतापूर्वक करते हैं। यह मस्तिष्क का अत्यन्त महत्वपूर्ण भाग है। यहबुद्धिऔरचतुराईका केन्द्र है। मानव में किसी बात को सोचने-समझने की शक्ति, स्मरण शक्ति, किसी कार्य को करने की प्रेरणा, घृणा, प्रेम, भय, हर्ष, कष्ट के अनुभव जैसी क्रियाओं का नियंत्रण और समन्वय सेरीब्रम द्वारा ही होता है। यह मस्तिष्क के अन्य भागों के कार्यों पर भी नियंत्रण रखता है। जिस व्यक्ति में सेरीब्रम औसत से छोटा होता है तथा गाइरस एवं सल्कस कम विकसित होते हैं, वह व्यक्ति मन्द बुद्धि का होता है।
यह अग्रमस्तिष्क का एक भाग है जो प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध के द्वारा ढंका होता है। यह अधिक या कम ताप के आभास तथा दर्द व रोने जैसी क्रियाओं का नियंत्रण करता है।
यह भाग मस्तिष्क के मध्य में स्थित होता है। यह मस्तिष्क स्टेम का ऊपरी भाग है। इसमें अनेक तंत्रिका कोशिकाएँ कई समूहों में उपस्थित होती हैं। मध्य मस्तिष्क में संतुलन एवं आँख की पेशियों को नियंत्रित करने के केन्द्र होते हैं।
मध्यमस्तिष्क दो भागों का बना होता है। ये हैं- कार्पोराक्वाड्रीजेमीन एवं सेरीब्रल पेडन्कल
मध्य मस्तिष्क का ऊपरी भाग चार लोबनुमा उभारों का बना होता है, जिन्हें कॉर्पोराक्वाड़ीजेमीन कहते हैं। ये दृष्टि एवं श्रवण शक्ति पर नियंत्रण के केन्द्र होते हैं।
यह तन्तुओं का बंडल होता है जो सेरीब्रल कॉर्टेक्स को मस्तिष्क के अन्य भागों तथा मेरुरज्जु से जोड़ता है।
यह मस्तिष्क का सबसे पिछला भाग है। यह अनुमस्तिष्क या सेरीबेलम (Cerebellum) एवं मस्तिष्क स्टेम का बना होता है।
इसे मेटेनसिफेलॉन भी कहते हैं। यह मुद्रा (Posture), समन्वय, संतुलन, ऐच्छिक पेशियों की गतियों इत्यादि का नियंत्रण करता है। इसका मुख्य कार्य शरीर का संतुलन बनाए रखना है। यह शरीर के ऐच्छिक पेशियों के संकुचन पर नियंत्रण करता है। यह आन्तरिक कान के संतुलन भाग से संवेदनाएँ ग्रहण करता है।
इसके अन्तर्गत पॉन्स वैरोलाई (Pons varolii) एवं मेडुला ओब्लांगेटा (Medulla oblongata) आते हैं।
तंत्रिका तंतुओं से निर्मित पॉन्स वैरोलाई मेडुला के अग्रभाग में स्थित होता है। यह श्वसन (Respiration) को नियंत्रित करता है।
यह एक बेलनाकार रचना होती है जो पीछे की ओर स्पाइनल कॉर्ड या मेरुरज्जु के रूप में पाया जाता है। स्पाइनल कॉर्ड मस्तिष्क के पिछले सिरे से शुरू होकर रीढ़ की हड्डियों में न्यूरल कैनाल (Neural canal) के अन्दर से होता हुआ नीचे की ओर रीढ़ के अन्त तक फैला रहता है। इसी में अनैच्छिक क्रियाओं के नियंत्रण केन्द्र स्थित होते हैं। मेडुला द्वारा आवेगों का चालन मस्तिष्क और मेरुरज्जु के बीच होता है। मेडुला में अनेक तंत्रिका केन्द्र होते हैं, जो हृदय स्पन्दन या हृदय की धड़कन (Heart beat), रक्तचाप (Blood pressure) or श्वास गति की दर (Rate of respiration) का नियंत्रण करते हैं। मस्तिष्क के इसी भाग द्वारा विभिन्न प्रतिवर्ती क्रियाओं जैसे- खाँसना (Coughing), छींकना (Sneezing), उल्टी करना (Vomiting), पाचक रसों के स्राव इत्यादि का नियंत्रण होता है।
मेडुला ऑब्लांगेटा का पिछला भाग मेरुरज्जु बनाता है। मेरुरज्जु का अंतिम सिरा एक पतले सूत्र के रूप में होता है। मेरुरज्जु के चारों ओर भी ड्यूरोमेटर, ऑक्नायड और पॉयमेटर का बना आवरण पाया जाता है। मेरुरज्जु बेलनाकार खोखली तथा पृष्ठ एवं प्रतिपृष्ठ तल पर चपटी होती है। इसकी दोनों सतहों पर एक-एक खाँच पायी जाती है, जिन्हें क्रमशः डार्सल फिशर एवं वेंट्रल फिशर (Dorsal fissure and Ventral fissure) कहते हैं। मेरुरज्जु के मध्य एक सँकरी नाल पायी जाती है जिसे केन्द्रीय नाल (Central canal) कहते हैं। केन्द्रीय नाल में सेरिब्रोस्पाइनल द्रव भरा रहता है। केन्द्रीय नाल के चारों ओर मेरुरज्जु का मोटा भाग दो भागों में बँटा होता है। भीतरी स्तर को धूसर पदार्थ (Grey matter) तथा बाहरी स्तर को श्वेत पदार्थ (white matter) कहते हैं। धूसर पदार्थ तंत्रिका कोशिकाओं उनके डेन्ड्रान्स तथा न्यूरोग्लिया प्रबद्धों का बना होता है जबकि श्वेत पदार्थ मेड्युलेटेड तंत्रिका तन्तुओं और न्यूरोग्लिया प्रवद्धों का बना होता है।
मेरुरज्जु के दो प्रमुख कार्य हैं-
(i) यह प्रतिवतीं क्रियाओं का नियंत्रण एवं समन्वयन करती है।
(ii) यह मस्तिष्क से आने-जाने वाले उद्दीपनों का संवहन करती है।
परिधीय तंत्रिका तंत्र, मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु से निकलने वाली तंत्रिकाओं का बना होता है, जिन्हें क्रमशः कपालीय तंत्रिकाएँ एवं मेरुरज्जु तंत्रिकाएँ कहते हैं। मनुष्य में 12 जोड़ी कपालीय तंत्रिकाएँ एवं 31 जोड़ी मेरुरज्जु तंत्रिकाएँ होती हैं।
स्वायत्त तंत्रिका तंत्र कुछ मस्तिष्क एवं कुछ मेरुरज्जु तंत्रिकाओं का बना होता है। यह शरीर के सभी आन्तरिक अंगों व रक्त वाहिनियों को तंत्रिकाओं की आपूर्ति करता है। स्वायत्त तंत्रिका तंत्र की अवधारणा को सर्वप्रथम लैंगली महोदय ने 1921 ई. में प्रस्तुत किया था। स्वायत्त तंत्रिका तंत्र के दो भाग होते हैं। ये हैं- (i) अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र (Sympathetic nervous system) (ii) परानुकम्पी तंत्रिका तंत्र (Parasympathetic nervous system)।
दोनों तंत्र केन्द्रीय तथा परिधीय तंत्रों से पूर्णतया स्वतंत्र नहीं होते हैं क्योंकि इनका निर्माण केन्द्रीय एवं परिधीय तंत्रिका तंत्रों द्वारा ही होता है।
इसे थोरेकोलम्बर आउट फ्लो भी कहते हैं क्योंकि जो प्रोगेन्गलियोनिक तन्तु होते हैं, वह स्पाइनल कॉर्ड को थोरेसिक तथा लम्बर क्षेत्र में ही संलग्न (Join) करते हैं। यह एक जोड़ा गैन्गलियोनिक श्रृंखला को रखते हैं जो कि स्पाइनल कॉर्ड के दोनों ओर गर्दन से उदर तक रहता है। तंत्रिका तंतु गैन्गलिया को विसरल अंगों तथा केन्द्रीय तंत्रिका-तंत्र से जोड़ती है। वे तंत्रिका तन्तु जो गैन्गलिया को केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र से जोड़ते हैं उन्हेंमेड्युलेटेड तंत्रिका तंतुकहते हैं। प्रीगैन्गलियोनिक तंत्रिका तन्तु स्पाइनल कॉर्ड से निकलते हैं तथा स्पाइनल तंत्रिकाओं की अधर मूल के पास होते हैं। वे तंत्रिका तंतु जो गैन्गिलिया को अंगों से जोड़ते हैं उन्हेंनॉन मेड्यूलेटेडतंत्रिका-तंतुया पोस्टगैन्गलियोनिक तंत्रिकातन्तु कहते हैं। प्री-गैन्गलियोनिक फाइबर्स एसीटाइलकॉलीन तथा पोस्ट गैन्गलियोनिक फाइबर्ससिम्पेथीन स्रावित करते हैं।
यह युग्मित गैन्गलियोनिक श्रृंखला का बना होता है जो मस्तिष्क से आरम्भ होता है तथा स्पाइनल कॉर्ड के सेक्रल भाग से भी उत्पन्न होती है पेरासिम्पैथेटिक गैन्गलिया सिर, गर्दन और सेक्रल क्षेत्र में रहता है। यह उन सभी अंगों को नर्व (Nerve) सप्लाई करता है जिन्हें सिम्पैथेटिक सिस्टम सप्लाई करता है। सिम्पैथेटिक तथा पैरा सिम्पैथेटिक तंत्रिका समान अंगों को नर्व सप्लाई करती है किन्तु इनका असर एक-दूसरे से विपरीत होता है।
इन्हेंस्पाइनल प्रतिक्षेपभी कहते हैं। बाह्य उद्दीपनों के प्रति होनेवाली यंत्रवत, तत्काल एवं अविवेचित अनुक्रिया जिसमें मस्तिष्क की कोई भूमिका नहीं होती है,प्रतिवर्ती क्रियाएँकहलाती हैं। इस प्रकार की क्रियाओं में हम जो कुछ भी करते हैं उनपर विचारों का नियंत्रण नहीं होता है। घुटने का झटका, खाँसना, जम्हाई लेना, पलकों का झपकना, छींक आना, डर से कॉपने लगना, खाने की वस्तु देखकर मुँह में पानी आना, ठंड से काँपना, बुरी खबर सुनकर हृदय की धड़कन तेज होना आदि सभी प्रतिवर्ती क्रियाओं के उदाहरण हैं। सामान्यतः ये क्रियाएँ रीढ़ रज्जु या मेरुरज्जु द्वारा नियंत्रित होती है। प्रतिवर्ती क्रिया में उद्दीपनों या संवेदनाओं को त्वचा या अन्य ग्राही अंगों से संवेदना मार्ग द्वारा तंत्रिका केन्द्र (मेरुरज्जु) में पहुँचा दिया जाता है। यहाँ से संवेदना प्राप्त कर उचित आदेश निर्गत होते हैं। ये आदेश प्रेरक मार्ग से होते हुए फिर अभिवाही अंगों में पहुँचते हैं जहाँ तंत्रिका-तंत्र के आदेशानुसार कार्य होते हैं। आवेग संचरण के सम्पूर्ण पथ को प्रतिवर्ती चाप या रिफ्लेक्स आर्क (Reflex arc) कहते हैं। अधिकतर प्रतिवर्तन मेरुरज्जु से सम्बद्ध होते हैं। इसलिए उन्हेंमेरु प्रतिवर्तनभी कहते हैं।
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