ग्रैजुएट लेवल पर अप्रेंटिस कोर्स शुरू करेगी सरकार
अपनी फ्लैगशिप अप्रेंटिस योजना पर अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिलने से सरकार इसे जल्द नए सिरे से लॉन्च करने जा रही है। केंद्र सरकार नैशनल अप्रेंटिस प्रमोशन स्कीम को स्नातक स्तर पर डिग्री कोर्स के रूप में लॉन्च करेगी। सरकार की योजना इसे कॉमर्स, साइंस और ह्यूमैनिटीज के कोर्सेज के साथ चलाने की है।
सरकार को आशा है कि इस तरह के प्रयास से ‘मेक इन इंडिया’ के लिए इंडस्ट्री को ज्यादा ट्रेंड एंप्लॉयीज की वर्क फोर्स मिलेगी। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने ईटी को बताया कि मंत्रालयों की स्टेकहोल्डर्स के साथ कई दौर की बातचीत के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय अप्रेंटिस कोर्स को स्नातक स्तर पर शुरू करने के लिए राजी हो गया है। इसके लिए एचआरडी मिनिस्ट्री अगले महीने संस्थानों को अप्रेंटिस को स्नातक डिग्री के रूप में शुरू करने के लिए आमंत्रित कर सकता है। अधिकारी के मुताबिक यह कोर्स शुरुआती तौर पर वॉलंटरी कोर्स के रूप में चलाया जाएगा। इसके बाद जरूरत पड़ने पर इसे अनिवार्य किया जा सकता है।
एचआरडी मिनिस्ट्री के सूत्रों के मुताबिक, ऐसे कई ग्रैजुएट छात्र हैं जो स्किल्स की कमी की वजह से और सही अप्रेंटिस ट्रेनिंग न मिलने से कॉर्पोरेट्स और सरकारी नौकरियों के स्तर पर पीछे छूट जाते हैं।
इसको लेकर मंत्रालय इस पर विस्तृत रूप से काम कर रहा है ताकि इस प्रोग्राम को अप्रेंटिस डिग्री के रूप में शुरू किया जा सके। मंत्रालय इस प्रोग्राम के तहत संस्थानों के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर और इंसेटिव्स पर भी काम कर रहा है।
देश में कुल 82 पर्सेंट अप्रेंटिस पास आउट्स में से 89 पर्सेंट मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में हैं। ऐसे में सभी सेक्टर्स की मांग के मुताबिक ग्रैजुएट्स को मिक्स अप्रेंटिस की ट्रेनिंग मिलेगी, जिससे उन्हें इंडस्ट्री के मुताबिक तैयार किया जा सकेगा।
सरकार ने इस योजना को 2016 में लॉन्च किया था, जिसमें सरकार का लक्ष्य नैशनल अप्रेंटिस प्रमोशन स्कीम के माध्यम से 2.3 लाख ट्रेंड अप्रेंटिस की संख्या बढ़ाकर 50 लाख पर ले जाना है। सरकार यह आंकड़ा 2020 तक हासिल करना चाहती है। अप्रेंटिस ट्रेनिंग 250 से ज्यादा ट्रेड में दी जा सकती है। ऑप्रेशनल ट्रेड में एंप्लॉयर की जरूरत के लिहाज से इसे डिजाइन किया जा सकता है। सरकार ने ट्रेंड अप्रेंटिस के लिए 10,000 करोड़ रुपये का फंड आवंटित किया था। यह फंड एनएपीएस स्कीम के तहत 25 पर्सेंट स्टाइपेंड रेट के हिसाब से तय किया गया था। यह प्रति अप्रेंटिस पर अधिकतम 1,500 रुपये है। हालांकि इंडस्ट्री की बड़ी कंपनियों के बेरुखे रवैये की वजह से इस फंड के अधिकांश हिस्से का अभी तक उपयोग नहीं हो सका है।