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खनिज Mineral

जो पदार्थ परस्पर मिलकर चट्टानों का निर्माण करते हैं, उन्हें खनिज कहते हैं। खनिज, प्राकृतिक अवस्था में पाए जाने वाले अकार्बनिक पदार्थ होते हैं। ये खनिज कार्बनिक पदार्थों, जो मुख्यतः कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन से बने होते हैं और जो सजीव वस्तुओं का प्रारूपिक अभिलक्षण होते हैं, से भिन्न होते हैं। प्रत्येक खनिज का रासायनिक संघटन निश्चित होता है।

कोई खनिज केवल एक ही तत्व के परमाणुओं से मिलकर बना होता है, जैसे तांबा, सोना सल्फर और ग्रेफाइट अथवा एक से अधिक तत्वों के परमाणुओं के किसी निश्चित अनुपात में मिलकर बना हो सकता है। पृथ्वी के पृष्ठ पर सामान्य रूप से पाये जाने वाले खनिजों में से एक खनिज क्वार्ट्ज है। यह नदियों या समुद्र के किनारों पर पाये जाने वाले रेत का मुख्य अवयव है। क्वार्ट्ज के एक अणु में सिलिकॉन का एक परमाणु ऑक्सीजन के दो परमाणुओं से ठीक उसी प्रकार बंधा रहता है, जैसे कार्बन डाईऑक्साइड के एक अणु में कार्बन का एक परमाणु, ऑक्सीजन के दो परमाणुओं से बंधा होता है। सभी पदार्थ 100 या इससे कुछ अधिक ज्ञात तत्वों में से एक या अधिक तत्वों से मिलकर बने होते हैं। खनिज तथा चट्टानें भी इसी प्रकार एक या अधिक तत्व से मिलकर बनी होती हैं। अत: पृथ्वी पर खनिजों तथा चटटानों की सापेक्षिक प्रचुरता उन तत्वों की सापेक्षिक उपलब्धता को बताती है, जिन तत्वों के द्वारा उनका निर्माण हुआ है। साथ ही, उन चट्टानों की उत्पत्ति की परिस्थितियों पर भी प्रकाश डालती है। उदाहरण के लिए, कार्बन परमाणु एक ही तल में षटकोणी जाल बनाते हुए एक दूसरे से जुड़कर ग्रेफाइट खनिज बनाते हैं। परन्तु पृथ्वी के भीतर गहराई में, वे ही कार्बन परमाणु ताप व दाब की उपस्थिति में एक भिन्न रूप व क्रम में बंधन द्वारा ज्ञात खनिजों में सर्वाधिक कठोर खनिज ‘हीरा’ बनाते हैं। इस प्रकार, हीरा पृथ्वी के पृष्ठ पर आकर एक रोमाचक कथा का वर्णन करता है। जब कुछ खनिज मिलकर एक चट्टान बनाते हैं, तब वे अपने निर्माण की कहानी में कुछ और विस्तृत विवरण जोड़ देते हैं।

रबड़ उद्योग में सल्फर
चार्ल्स गुडइयर से एक बार दुर्घटनावश रबड़ तथा सल्फर का मिश्रण गर्म स्टोव पर गिर गया। उन्होंने पाया कि परिणामस्वरूप रबड़ अधिक कठोर तथा कम लचकदार हो गई। इस दुर्घटनावश खोज का उपयोग अब प्राकृतिक रबड़ टायर बनाने में किया जाता है। सल्फर को प्राकृतिक रबड़ के साथ मिश्रित करने की प्रक्रिया को वल्कनीकरण कहते हैं। लैटिन भाषा में वल्कन अग्नि के देवता को कहते हैं।

रबड़ एक बहुलक है जिसमें एक ही तल में अणुओं की एक लम्बी श्रृंखला होती है। इस के कारण रबड़ को खींचा जा सकता है या तुड़ा-मुड़ा होने पर उसे सीधा किया जा सकता है। रबड़ में सल्फर उसकी यह लचीली क्षमता समाप्त हो जाती है क्योंकि सल्फर रबड़ के श्रृंखला के समान अणुओं के मध्य से बना देती है। यह कार्बन परमाणुओं के घूर्णन में भी बाधा डालती है।

रबड़ बैंड की रबड़ में बहुत थोड़ी मात्रा में सल्फर होती है और इसलिए इसको खींचा जा सकता है। गेंद, कालीन के अस्तर जैसी अन्य वस्तुओं की रबड़ में विभिन्न मात्रा में सल्फर होती है। आजकल ब्यूटी पालरों में भी बालों को विशिष्ट रूप देने हेतु सल्फर का उपयोग होता है।

 भूपर्पटी

भूपर्पटी, जैसा कि नाम से स्पष्ट है, पृथ्वी की बाहरी परतों से बनती हैं। इसकी औसत मोटाई स्थल भाग के नीचे लगभग 35 किमी तथा समुद्र तल के नीचे लगभग 10 किमी है। भूपर्पटी का लगभग तीन-चौथाई भाग केवल दो अधातुओं ऑक्सीजन तथा सिलिकॉन का बना है। शेष भाग छः धातुओं से मिलकर बना है। इनमें ऐल्यूमिनियम सबसे अधिक मात्रा में है, इसके बाद लोहा, कैल्सियम, सोडियम, पोटैशियम और मैग्नीशियम हैं। ये सभी धातुएं अधिक अभिक्रियाशील होती हैं। अत: ये विभिन्न प्रकार के यौगिक बना लेती हैं तथा अपनी स्वतंत्र अवस्था में नहीं पायी जातीं।

 

पृथ्वी की कहानी

प्राय: प्रत्येक चट्टान का टुकड़ा अपनी उत्पत्ति के विषय में स्वयं ही विस्तृत विवरण प्रस्तुत करता है। पृथ्वी पर पायी जाने वाली विभिन्न प्रकार की चट्टानों एवं खनिजों के अध्ययन से वैज्ञानिकों ने हमारे ग्रह की कहानी स्पष्ट कर दी है। लगभग 460 करोड़ वर्ष पूर्व सूर्य से लगभग 15 करोड़ किलोमीटर दूरी पर सूर्य की परिक्रमा करते हुए छोटे-छोटे पिण्डों के समूहों के रूप में पृथ्वी का जन्म हुआ। ये छोटे-छोटे पिण्ड आपस में टकरा कर, एक दूसरे से सट गये। बाद में जैसे-जैसे इसका द्रव्यमान बढ़ता गया, इसने अपने पास के पिण्डों को गुरुत्वीय बल के कारण ठीक उसी प्रकार अपनी और खींच लिया जिस प्रकार कोई चुम्बक चुम्बकीय बल के कारण लौह चूर्ण को अपनी ओर खींच लेता है।

इसके लगभग 80 करोड़ वर्ष पश्चात् पदार्थों से बना यह पिण्ड गर्म हो गया और लगभग पिघल ही गया। गर्म होने के लिए आवश्यक ऊष्मा का कुछ भाग दाब के कारण उत्पन्न हुआ, ठीक वैसे ही जैसे साईकिल ट्यूब में वायु के सम्पीडन से ऊष्मा उत्पन्न होती है, और शेष ऊष्मा यूरेनियम, थोरियम और पोटैशियम परमाणुओं के स्वतः विखण्डन से उत्पन्न हुई।

जैसे-जैसे पृथ्वी गर्म होती गई, भारी तत्व जैसे लोहा शनै:-शनै: केन्द्र की ओर धंसते चले गये और हल्के तत्व ऊपर आ गये। इन प्रक्रियाओं से प्राप्त ऊर्जा द्वारा पृथ्वी और गर्म हो गई। जब पृथ्वी ठण्डी हुई, तो हल्के पदार्थों का झाग, जो पिघली हुई पृथ्वी के पृष्ठ पर तैर रहा था, ठण्डा हुआ और एक ठोस पर्पटी बन गई। इस प्रकार, पहली चट्टानें बनी और पृथ्वी का पुनर्गठन हुआ जिसमें भीतर सघन गर्म पिघले भाग रह गये और ऊपर हल्की पतली ठोस पर्पटी बन गई।

जब पृथ्वी और ठण्डी हुई, पर्पटी के नीचे के पदार्थ भी ठोस बनने लगे और इससे जुड़ गये। यह प्रक्रिया उस समय तक निरन्तर चली, जब तक कि ठोस चट्टानों की बाहरी पर्त इतनी घनी न हो गई कि उसने पृथ्वी के अन्दर की ऊष्मा के बाहर जाने की प्रक्रिया को धीमा न कर दिया। पृथ्वी की बाहरी चट्टानों के इस कवच को लिथोस्फीयर कहते हैं। लिथोस्फीयर शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द लिथोस से हुई जिसका अर्थ है स्टोन यानी पत्थर। लिथोस्फीयर, जिस पर यह फिसलती है, की अपेक्षा भंगुर एवं ठण्डी है। लिथोस्फीयर की मोटाई लगभग 70 किमी से 150 किमी तक है।

फिर भी, लिथोस्फीयर पूर्णतया रोक लगाने वाली पर्त नहीं है। यह छः कठोर, गोलीय ढक्कनों के मोजेक रूप में टूटी हुई है, जिन्हें प्लेट कहते हैं प्लेटों के बीच की सीमाओं के साथ-साथ भूचाल तथा ज्वालामुखियों के सक्रिय क्षेत्र हैं। इन सीमाओं में से कुछ किनारों पर (जैसा कि अटलांटिक समुद्र के बीच में) यह प्लेटें एक-दूसरे से खिंचती जा रही हैं। उनके हट जाने से उत्पन्न खाली स्थानों में नीचे से पिघली वस्तुएं ज्वालामुखी के रूप में ऊपर उठती हैं और एक नई ठोस पर्पटी बन जाती है। दूसरी सीमाओं जैसे हिमालय पर प्लेट एक दूसरे को धकेलती हैं जिसके कारण पर्वतों का निर्माण होता है और भूचाल आते हैं। लिथोस्फेरिक टोपियों की गति के इस वर्णन को प्लेट विवर्तनिक सिद्धान्त कहते हैं।

खनिजों का उपयोग

प्राचीन काल से ही मानव चट्टानों एवं खनिजों का उपयोग अपनी उत्तरजीविता एवं विकास के लिये करता आया है। चट्टानों की गुफाओं ने उसे आश्रय दिया। पत्थर तथा फ्लिन्ट तथा औब्सीडियन से बने तीर ही उसके पहले शस्त्र थे। धीरे-धीरे उसने रत्नों का उपयोग अपने शरीर को सजाने के लिये किया और खनिज ईधन से अपने शरीर को गर्म बनाए रखने के लिए ऊष्मा प्राप्त की तथा धातु, खनिजों को पिघलाया। निस्सन्देह, मानव सभ्यता का इतिहास कुछ विशेष युगों द्वारा जाना जाता है जो कुछ निश्चित खनिजों के उपयोग का स्मरण कराते हैं। ये युग हैं: पाषाण युग, कांस्य युग, लौह युग और अब है- मानव निर्मित पदार्थों का युग।

खनिजों को धात्विक, अधात्विक तथा रत्नों में वर्गीकृत किया जा सकता है। धात्विक खनिज वे खनिज होते हैं जिनसे हम धातु प्राप्त कर सकते हैं। इन्हें अयस्क खनिज भी कहते हैं। अधात्विक खनिजों में रेत, मिट्टी तथा अन्य खनिज आते हैं, जिनका उपयोग रासायनिक एवं निर्माण उद्योगों में किया जाता है। खनिज हमारी सभ्यता का मूल आधार हैं। हमें दैनिक जीवन में इनके विभिन्न उत्पादों जैसे धातुओं, उर्जा और निर्माण सामग्री की आवश्यकता होती है।

रत्न

अपनी सुन्दरता, टिकाऊपन एवं दुर्लभता के गुण के कारण रत्न सभी खनिजों में सर्वाधिक मूल्यावान एवं विख्यात होते हैं। अब तक ज्ञात 2000 खनिजों में से लगभग 80 खनिजों को रत्न कहा जा सकता है। परन्तु, इन खनिजों में से केवल कुछ ही, जो क्रिस्टल के रूप में प्राप्त होते हैं जैसे हीरा, माणिक्य, नीलम और पन्ना वास्तविक रूप में मूल्यवान होते हैं। वैसे तो इन रत्नों के अपने रंग ही अत्यधिक सुन्दर होते हैं, परन्तु इनके द्वारा प्रकाश को पराववर्तित करने, उसे तीव्रता से मोड़ने तथा

अधात्विक खनिज एवं उनके उपयोग
खनिज उपयोग
क्वार्टज़ कांच, रेगमाल, टेलीफोन, रेडियो, घडियां आदि बनाने में
फेल्सपार चायना डिश, पोर्सिलेन के निर्माण में।
अभ्रक विद्युत् इस्तरी, विद्युत् मोटर, विद्युत् टोस्टर आदि विद्युत सांधित्रों में विद्युतरोधी के रूप में
सेंधा नमक भोजन में साधारण नमक, खाद्य परिरक्षण, रसायन उद्योग के लिए कच्चा माल।
जिप्सम सीमेन्ट एवं प्लास्टर, ऑफ पेरिस के निर्माण में।
शैलखड़ी टैल्कम पाउडर बनाने में।
पिचब्लेन्ड नाभिकीय ईंधन का विरचन कम करने में।
मोनाजाइट ब्रीडर रिऐक्टर के लिए नाभिकीय ईंधन।

इन्द्रधनुषीय रंगों में विभक्त करने (प्रकाश का परिक्षेपण) के प्रकाशिक गुणों के कारण होती है। माणिक्य और पन्ना, दोनों ही ऐलुमिनियम खनिज कोरंडम के दुर्लभ रूप हैं। इन दोनों रत्नों में केवल रंग का ही अन्तर होता है। रंग में यह अन्तर इसमें अल्प मात्रा में उपस्थित विभिन्न खनिज अशुद्धियों के कारण होता है। इस प्रकार, जबकि हल्के बादामी रंग का, कोरन्डम, जिसकी कठोरता का मान केवल हीरे की कठोरता से ही कम होता है, का उपयोग पीसने एवं पालिश करने वाले यंत्रों में अपघर्षक के रूप में किया जाता है, माणिक्य और नीलम अपने रत्न गुणों के कारण बहुमूल्य माने जाते हैं। माणिक्य कोरन्डम में अल्प मात्रा में क्रोमियम ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण लाल होता है। यदि इसी कोरण्डम में अल्प मात्रा में आयरन और टाइटेनियम ऑक्साइड अशुद्धि के रूप में उपस्थित हो, तो यह कॉर्नफ्लावर जैसा मोहक रंग धारण करके नीलम बन जाता है।

मानव द्वारा निर्मित संश्लोषित हीरों एवं अन्य रत्नों का निर्माण प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से उन्हीं अवस्थाओं को उत्पन्न करके किया जाता है जिन अवस्थाओं में वास्तविक रत्न स्वयं प्रकृति में बने थे। परन्तु यह कोरन्डम ही है, जिसके द्वारा सर्वोत्तम संश्लेषित रत्नों का निर्माण हुआ है। प्रयोगशाला में परिपूर्ण माणिक्य और नीलम के क्रिस्टलों का निर्माण महीन ऐल्युमिना को उचित खनिज रंजकों के साथ अत्यधिक तप्त ज्वाला में संगलित करके किया गया है।

माणिक्य एवं नीलम के छोटे-छोटे टुकड़ों का उपयोग उद्योगों में पिसाई एवं धार लगाने के औजारों में होता है। लेजर किरणों के निर्माण में संश्लेषित माणिक्य के बड़े क्रिस्टल प्रयोग किए जाते हैं। नीलम का उपयोग घड़ियों में रत्नों के रूप में भी किया जाता है।

 

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