प्रकाश की प्रकृति:-
प्रकाश के अभिलाक्षणिक गुण
प्रकाश एक विध्युत चुम्बकीय तरंग है।
प्रकाश एक सरल रेखा में गतिमान होता है।
प्रकाश एक अनुप्रस्थ तरंग है तथा गतिमान होने के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। प्रकाश निर्वात में गति कर सकता है। निर्वात में इसकी चाल 3 × 108 m/s है।
प्रकाश के वेग में परिवर्तन होता है जब यह एक माध्यम से दूसरे माध्यम में गुजरती है।
प्रकाश की तरंगदैध्र्य (λ) में परिवर्तन होता है जब यह एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है।
प्रकाश की आवृति (f) सभी माध्यमों में समान रहती है।
प्रकाश पॉलिशयुक्त पृष्ठों जैस दर्पण पॉलिशयुक्त धातु पृष्ठ इत्यादि से वापस परावर्तित होकर गुजरता है।
प्रकाश अपवर्तन (bending) के अधीन होता है। जब यह एक पारदश्र्ाी माध्यम से दूसरे माध्यम में गुजरता है।
प्रकाश को गतिमान होने के लिए किसी पदार्थ के माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। यह निर्वात में भी गतिमान हो सकता है। निर्वात में प्रकाश का वेग 299 792 458 m/s मानते है।
वर्तमान वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार कोर्इ भी पदार्थ का कण निर्वात में प्रकाश की चाल से अधिक चाल से गति नहीं कर सकता है।
प्रकाश का परावर्तन
परिभाषा: जब प्रकाश किरणे एक अपारदश्र्ाी पॉलिशयुक्त पृष्ठ (माध्यम) पर आपतित होती है तो यह उसी माध्यम में पुन: लौट जाती है।
समान माध्यम में प्रकाश की किरण के लौटने की परिघटना प्रकाश का परावर्तन कहलाता है।
कुछ सम्बन्धित पदों की परिभाषाऐ:
परावर्तक पृष्ठ: वह सतह जिससे प्रकाश परावर्तित होता है परावर्तित पृष्ठ कहलाती है। चित्र में XY परावर्तित पृष्ठ है।
आपतन बिन्दु: एक परावर्तक पृष्ठ पर वह बिन्दु जिस पर प्रकाश किरणें टकराती है आपतन बिन्दु कहलाता है। चित्र में आपतन बिन्दु O है।
अभिलम्ब : परावर्तक पृष्ठ पर आपतन बिन्दु के लम्बवत् रेखा अभिलम्ब कहलाती है। चित्र में ON अभिलम्ब है।
आपतित किरण: वह प्रकाश की किरण जो परावर्तक पृष्ठ से आपतन बिन्दु पर टकराती है। आपतित किरण कहलाती है। चित्र में PO आपतित किरण है।
परावर्तित किरण: वह प्रकाश की किरण जो परावर्तक पृष्ठ से आपतन बिन्दु से परावर्तित हो जाती है परावर्तित किरण कहलाती है। चित्र में OQ परावर्तित किरण है।
आपतन कोण: वह कोण जो आपतित किरण अभिलम्ब के साथ बनाती है आपतन कोण कहलाता है। यह संकेत i द्वारा प्रदर्शित है। चित्र में कोण PON आपतन कोण है।
परावर्तन कोण: वह कोण जो परावर्तित किरण अभिलम्ब के साथ बनाती है परावर्तन कोण कहलाता है। यह संकेत r द्वारा प्रदर्शित है। चित्र में ∠ QON परावर्तन कोण है।
आपतन तल: वह तल जिसमें अभिलम्ब एवं आपतित किरण रहती है आपतन तल कहलाता है। चित्र में किताब पृष्ठ का तल आपतन तल कहलाता है।
परावर्तक तल : वह तल जिसमें अभिलम्ब एवं परावर्तित किरण रहती है परावर्तक तल कहलाता है। चित्र में किताब के पृष्ठ का तल परावर्तक तल हैं।
पूर्ण आंतरिक परावर्तन
परिभाषा : जब प्रकाश सघन माध्यम से विरल माध्यम में गुजरता है तथा उस माध्यम के लिए क्रांतिक कोण से अधिक कोण पर आपतित होता है, तो यह पूर्णतया सघन माध्यम में लोट जाती है। पूर्ण इस प्रकार का प्रकाश का पुन: लौटना पूर्ण आन्तरिक (अन्दर की ओर) परावर्तन कहलाता है।
चित्र. पूर्ण आंतरिक परावर्तन
क्रांतिक कोण :
सघन माध्यम जिसके लिए अपवर्तन कोण 90º है, के लिए आपतन कोण क्रांतिक कोण कहलाता है। यह संकेत C द्वारा प्रदर्शित किया जाता हैं।
µ sin i3 = ua sin 90°
[निर्देश : µ µ का मान जितना अधिक होता है, कोण C का मान उतना ही कम होता है].
शर्तें (Condition)
(i) प्रकाश सघन माध्यम से विरल माध्यम में गुजरना चाहिए।
(ii) प्रकाश सघन माध्यम के लिए क्रांतिक कोण से अधिक कोण पर आपतित होना चाहिए।
लाभ : पूर्ण आंतरिक परावर्तन में 100% प्रकाश परावर्तित होता है, अत: प्रतिबिम्ब अधिक चमकीला बनता है।
दर्पण से सामान्य परावर्तन में, केवल 85% प्रकाश परावर्तित होता है, शेष 15% या तो काँच के दर्पण द्वारा अवशोषित हो जाता है या हल्की पालिश के कारण पारगमित हो जाता है।
सामान्य परावर्तन द्वारा निर्मित प्रतिबिम्ब कम चमकीला होता है।
समतल दर्पण से परावर्तन
विचलन (Deviation) : इसे δ से व्यक्त करते है। जो आपतित किरण एवं निर्गत किरण की दिशाओं के मध्य कोण है अत: यदि प्रकाश i आपतन के कोण पर आपतित होता है
δ = 180º – (∠i + ∠r) = (180º – 2i) [as ∠i = ∠r]
अत: यदि प्रकाश 30º कोण पर आपतित होता है
δ = (180º – 2 × 30º) = 120º तथा अभिलम्ब आपतन के लिए ∠i = 0º δ = 180º
एक समतल दर्पण द्वारा बनाये गये प्रतिबिम्ब के अभिलाक्षिक गुण :
(i) एक समतल दर्पण द्वारा बनाया गया प्रतिबिम्ब आभासी होता है।
(ii) एक समतल दर्पण द्वारा बनाया गया प्रतिबिम्ब सीधा होता है।
(iii) एक समतल दर्पण द्वारा बनाया गया प्रतिबिम्ब का आकार वह होता है जो कि बिम्ब का है। यदि बिम्ब 10 cm ऊँचा हो तो बिम्ब का प्रतिबिम्ब भी 10 cm ऊँचा होगा।
(iv) एक समतल दर्पण द्वारा बनाये गये प्रतिबिम्ब की दर्पण के पीछे वही दूरी होगी जो कि बिम्ब की दर्पण के सामने होती है। मान लीजिए एक बिम्ब एक समतल दर्पण के सामने 5 cm पर रखा जाता है। तब इसका प्रतिबिम्ब समतल दर्पण के पीछे 5 cm पर होगा।
(v) एक समतल दर्पण द्वारा बनाया गया है प्रतिबिम्ब पाश्र्व रूप से व्युत्क्रमित होता है। अर्थात्् बिम्ब का दाया पक्ष प्रतिबिम्ब के बायें पक्ष के रूप में नजर आयेगा एवं बिम्ब का बायां पक्ष प्रतिबिम्ब के दायें प़्ाक्ष के रूप में नजर आयेगा।
प्रकाश का अपवर्तन
परिभाषा : जब एक माध्यम से गुजर रही प्रकाश किरणें किसी अन्य माध्यम के पारदश्र्ाी पृष्ठ (माध्यम) पर आपतित होती है, वे मुड़ जाती जैसे ही वे दुसरे माध्यम से गुजरती है।
चित्र. एक सीधे पारदश्र्ाी अधिक सघन माध्यम से प्रकाश का अपवर्तन।
कुछ सम्बंधित पदों की परिभाषाऐं :
पारदश्र्ाी पृष्ठ : वह समतल पृष्ठ जो प्रकाश अपवर्तित करता है, पारदश्र्ाी पृष्ठ कहलाता है। चित्र में, XY समतल पारदश्र्ाी पृष्ठ का एक भाग है।
आपतन बिन्दु : पारदश्र्ाी पृष्ठ पर बिन्दु, जहाँ प्रकाश कि किरण मिलती है, आपतन बिन्दु कहलाता है। निम्न चित्र में Q आपतन बिन्दु है।
अभिलम्ब : आपतन बिदु पर पादश्र्ाी पृष्ठ पर लम्बवत् आरेखन अभिलम्ब कहलाता है।
निम्न चित्र में, पृष्ठ XY पर अभिलम्ब N1QN2 है।
आपतित किरण : वह प्रकाश की किरण जो पारदश्र्ाी पृष्ठपर आयतन बिन्दु से टकराती है आपतित किरण कहलाती है, चित्र में PQ आपतित किरण है
अपवर्तित किरण : वह प्रकाश की किरण जो आपतन बिन्दु से दूसरे माध्यम में गुजरती है, अपवर्तित किरण कहलाती है। चित्र में QR अपवर्तित किरण है।
आपतन कोण: आपतन बिन्दु पर पादश्र्ाी पृष्ठ पर आपतित किरण व अभिलम्ब के मध्य कोण आपतन कोण कहलाता है। यह संकेत द्वारा प्रदर्शित है। चित्र में PQN1 आपतन कोण कहलाता है।
अपवर्तन कोण: आपतन बिन्दु पर पारदश्र्ाी पृष्ठ पर अपवर्तित किरण व अभिलम्ब के मध्य कोण अपवर्तन कोण कहलाता है। यह संकेत r द्वारा प्रदर्शित है। चित्र में कोण RQN2 अपवर्तन कोण कहलाता है।
आपतन तल: अभिलम्ब एवं आपतित किरण युक्त समतल आपतन तल कहलाता है। आरेख के लिए कागज पृष्ठ का तल आपतन तल कहलाता है।
अपवर्तन तल: अभिलम्ब एवं अपवर्तित किरण युक्त समतल अपवर्तन तल कहलाता है। आरेख के लिए कागज पृष्ठ का तल अपवर्तन तल कहलाता है।
प्रकृति में अपवर्तन
(A) इन्द्रधनुष का बनना
इंद्रधनुष, वर्षा के पश्चात् आकाश में जल के सूक्ष्म कणों में दिखार्इ देने वाला प्राकृतिक स्पेक्ट्रम है। यह वायुमंडल में उपस्थित जल की सूक्ष्म बूँदों द्वारा सूर्य के प्रकाश के विक्षेपण के कारण प्राप्त होता है। इंद्रधनुष सदैव सूर्य के विपरीत दिशा में बनता है। जल की सूक्ष्म बूँदें छोटे प्रिज्मों की भाँति कार्य करती हैं। सूर्य के आपतित प्रकाश को ये बूँदें अपवर्तित तथा विक्षेपित करती हैं, तत्पश्चात इसे आंतरिक परावर्तित करती हैं, अंतत: जल की बूँद से बाहर निकलते समय प्रकाश को पुन: अपवर्तित करती हैं। प्रकाश के विक्षेपण तथा आंतरिक परावर्तन के कारण विभिन्न वर्ण प्रेक्षक के नेत्रों तक पहुँचते हैं।
(B) वायुमण्डलीय अपवर्तन
हम संभवत: कभी आग या भट्टी अथवा किसी ऊष्मीय विकिरक के ऊपर उठती गरम वायु के विक्षुब्ध प्रवाह में धूल के कणों की आभासी, अनियमित, अस्थिर गति अथवा झिलमिलाहट देख सकते हैं। आग के तुरंत ऊपर की वायु अपने ऊपर की वायु की तुलना में अधिक गरम हो जाती है। गरम वायु अपने ऊपर की ठंडी वायु की तुलना में हलकी (कम सघन) होती है तथा इसका अपवर्तनांक ठंडी वायु की अपेक्षा थोड़ा कम होता है। क्योंकि अपवर्तक माध्यम (वायु) की भौतिक अवस्थाएँ स्थिर नहीं हैं, इसलिए गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति परिवर्तित होती रहती है। इस प्रकार यह अस्थिरता हमारे स्थानीय पर्यावरण में लघु स्तर पर वायुमंडलीय अपवर्तन (पृथ्वी के वायुमंडल के कारण प्रकाश का अपवर्तन) का ही एक प्रभाव है। तारों का टिमटिमाना वृहत् स्तर की एक ऐसी ही परिघटना है।
(a) तारों का टिमटिमाना :
तारों के प्रकाश के वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण ही तारे टिमटिमाते प्रतीत होते हैं। पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने के पश्चात पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुँचने तक तारे का प्रकाश निरंतर अपवर्तित होता जाता है। वायुमंडलीय अपवर्तन उसी माध्यम में होता है जिसका क्रमिक परिवर्ती अपवर्तनांक हो।
चूँकि तारे बहुत दूर हैं, अत: वे प्रकाश के बिंदु-स्रोत के सन्निकट हैं। क्योंकि, तारों से आने वाली प्रकाश किरणों का पथ थोड़ा-थोड़ा परिवर्तित होता रहता है, अत: तारे की आभासी स्थिति विचलित होती रहती है तथा आँखों में प्रवेश करने वाले तारों के प्रकाश की मात्रा झिलमिलाती रहती है, जिसके कारण कोर्इ तारा कभी चमकीला प्रतीत होता है तो कभी धुँधला, जो कि टिमटिमाहट का प्रभाव है।
(b) ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते हैं?
ग्रह तारों की अपेक्षा पृथ्वी के बहुत पास हैं और इसीलिए उन्हें विस्तृत स्रोत की भाँति माना जा सकता है। यदि हम ग्रह को बिंदु-आकार के अनेक प्रकाश स्रोतों का संग्रह मान लें तो सभी बिंदु आकार के प्रकाश-स्रोतों से हमारे नेत्रों में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा में कुल परिवर्तन का औसत मान शून्य होगा, इसी कारण टिमटिमाने का प्रभाव निष्प्रभावित हो जाएगा।
(C) अग्रिम सूर्योदय तथा विलम्बित सूर्यास्त :
वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण सूर्य हमें वास्तविक सूर्योदय से लगभग 2 मिनट पूर्व दिखार्इ देने लगता है तथा वास्तविक सूर्यास्त के लगभग 2 मिनट पश्चात तक दिखार्इ देता रहता है। वास्तविक सूर्योदय से हमारा अर्थ है, सूर्य द्वारा वास्तव में क्षितिज को पार करना। चित्र में सूर्य की क्षितिज के सापेक्ष वास्तविक तथा आभासी स्थितियाँ दर्शायी गयी हैं। वास्तविक सूर्यास्त तथा आभासी सूर्यास्त के बीच समय का अंतर लगभग 2 मिनट है। इसी परिघटना के कारण ही सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य की चक्रिका चपटी प्रतीत होती है।
गोलीय दर्पण से परावर्तन
परिचय : गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते है
(i) अवतल दर्पण:
(ii)उत्तल दर्पण :
गोलीय दर्पणो से सम्बंधित कुछ पद:
द्वारक: दर्पण की वृत्ताकार रिम का व्यास होता है। चित्र में AB दर्पण का द्वारक है।
ध्रुव (Pole): दर्पण की गोलीय सतह का केन्द्र दर्पण का ध्रुव कहलाता है। यह सतह पर होता है। आरेख में दर्पण का ध्रुव P है।
वक्रता केन्द्र: गोलीय कोश का केन्द्र जिसका दर्पण एक भाग है दर्पण का वक्रता केन्द्र कहलाता है। यह सतह के बाहर होता है। दर्पण सतह का प्रत्येक बिन्दु इसमें समान दूरी पर होता है। चित्र में दर्पण का वक्रता केन्द्र C होता है।
मुख्य अक्ष: दर्पण के वक्रता केन्द्र तथा ध्रुव से गुजरने वाली सरल रेखा दर्पण का मुख्य अक्ष कहलाता है।
मुख्य फोकस: यह दर्पण के मुख्य अक्ष पर स्थित एक बिन्दु होता है इस तरह से कि मुख्य अक्ष के समान्तर दर्पण पर आपतित होने वाली किरणें परावर्तन के बाद वास्तव में इस बिन्दु पर मिलती है। (अवतल दर्पण के सन्दर्भ में) अथवा इससे आती हुर्इ प्रतीत होती है (उत्तल दर्पण के सन्दर्भ में) चित्र में F दर्पण का मुख्य फोकस है।
वक्रता त्रिज्या: दर्पण के वक्रता केन्द्र तथा ध्रुव के मध्य दूरी को वक्रता त्रिज्या कहते है। यह गोलीय कोश जो दर्पण का एक भाग है की त्रिज्या के बराबर होती है। चित्र में दर्पण की वक्रता त्रिज्या PC है। इसे संकेत R द्वारा प्रदर्शित करते है।
फोकस दूरी : ध्रुव तथा दर्पण के मुख्य अक्ष के मध्य दूरी दर्पण की फोकस दूरी कहलाती है। चित्र में दर्पण की फोकस दूरी PF हैं इसे संकेत f द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
F = + R/2 उत्तल दर्पण के लिए
F = – R/2 अवतल दर्पण के लिए
मुख्य भाग: एक समतल जो इसके वक्रता केन्द्र तथा दर्पण के ध्रुव से गुजर रहा है से काटे गए गोलीय दर्पण का भाग दर्पण का मुख्य भाग कहलाता है। यह मुख्य अक्ष रखता है। चित्र में कागज पृष्ठ के तल द्वारा काटे गए दर्पण का मुख्य भाग APB है।
गोलिय दर्पण में प्रतिबिम्ब निर्माण के नियम
अवतल दर्पण से प्रतिबिम्ब निर्माण के लिए नियम
(a) जब प्रकाश किरण मुख्य अक्ष के समान्तर आपतित होती है।
या
जब प्रकाश किरण फोकस की ओर आपतित होती है
(b) जब प्रकाश किरण वक्रता केन्द्र की ओर आपतित होती है
(c) जब प्रकाश किरण दर्पण के ध्रुव पर आपतित होती है।
गोलिय दर्पण में प्रतिबिम्ब निर्माण के नियम
उत्तल दर्पण से बनने वाले प्रतिबिम्ब के लिए नियम
(a) जब प्रकाश किरण मुख्यअक्ष के समान्तर आपतित होती है।
या
जब प्रकाश किरण फोकस की तरफ आपतित होती है
(b) जब वक्रता केन्द्र की ओर निर्देशित प्रकाश किरण दर्पण पर आपतित होती है
चिन्ह परिपाटी :
(a) विवरण : यह एक ऐसी परिपाटी है जो मापी गर्इ भिन्न दूरियों के चिन्ह निर्धारित करती है। यह चिन्ह परिपाटी नयी कार्तीय चिन्ह परिपाटी कहलाती है। यह निम्न नियम दर्शाती है।
1. सभी दूरियाँ दर्पण के ध्रुव से मापी गर्इ है।
2. आपतित प्रकाश की दिशा की समान दिशा में मापी गर्इ दूरियों को धनात्मक लिया जाता है।
3. आपतित प्रकाश की दिशा के विपरीत दिशा में मापी गर्इ दूरियाँ ऋणात्मक ली जाती है।
4. मुख्य अक्ष के लम्बवत् एवं ऊपर की ओर मापी गर्इ दूरियाँ धनात्मक ली जाती है
5. मुख्य अक्ष के लम्बवत् एवं नीच की ओर मापी गर्इ दूरियाँ ऋणात्मक ली जाती है
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प्रकाश का प्रकीर्णन
लूमिंग या उच्च मृगतृष्णा
परिभाषा : यह एक प्रकाशिक दृष्टि भ्रम है जो सर्दियों की शाम को समुद्री तट पर देखा जाता है। जिसके कारण एक जहाज का प्रतिबिम्ब समुद्री आकाश में वायु में निर्मित होता है। जबकी वास्तविक जहाज कही भी दिखार्इ नहीं देता है।
चित्र. ठण्डे समुद्र के किनारे पर उच्च मृगतृष्णा (Looming)
व्याख्या :
यह पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण होता है। ठण्डी शाम (cold evening) को समुद्री तल के ऊपर पानी बहुत ठण्डा होता है। इसके सम्पर्क में वायु परत ठण्डी व सघन होती है। जैसे ही ऊपर जाते है, वायु परते कम ओर कम ठण्डी होती जाती है और इस तरह विरल होती जाती है।
अदश्र्य जहाज से ऊपर की ओर जाने वाली किरणें हवा की सघन से विरल परतों में जाती है। वे पूर्णतया नीचे की ओर परावर्तित हो जाती है और समुद्र किनारे खडे़ एक प्रेक्षक के द्वारा ग्रहण की जाती है। प्रेक्षक आकाश में झूलता हुआ जहाज का प्रतिबिम्ब (आभासी) देखता है।
एक काँच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण
जब एक श्वेत प्रकाश किरण (सूर्य का प्रकाश) एक काँच के प्रिज्म (सघन माध्यम) में प्रवेश करता है। यह बाहर आता है एवं सात रंगों में विभक्त हो जाता है।
यह घटना, जिसके कारण एक श्वेत प्रकाश के विभिन्न घटक अलग-अलग हो जाते हैं। विक्षेपण कहलाता है।
स्पष्टीकरण : यह श्वेत प्रकाश के विभिन्न घटकों के विभिन्न अपवर्तनांकों के कारण होता है।
श्वेत प्रकाश सात रंग रखती है, जिनका नाम, बैंगनी, गहरा नीला, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल (जिन्हें शब्द VIBGYOR से याद रखा जाता है) हवा में (मुख्यत: निर्वात में) सभी रंगों की प्रकाश तरंगें समान वेग रखती है (3 × 108 m/s).
लेकिन एक सघन माध्यम में, उनके वेग कम होते है एवं अलग-अलग होते हैं। लाल प्रकाश की तरंगें लम्बार्इ में सबसे लम्बी होती है, सबसे तेज चलती है और सबसे अधिक वेग रखती है। बैंगनी प्रकाश की तरंगें, लम्बार्इ में सबसे छोटी, सबसे धीरे चलती है और सघन माध्यम में सबसे कम वेग रखती है।
एक तरंग के लिए एक माध्यम का अपवर्तनांक (µ) निम्न सम्बन्ध द्वारा दिया जाता है।
चूंकि बैंगनी रंग की प्रकाश तरंग के लिए µ सर्वाधिक होता है, इसलिए यह सबसे अधिक मुड़ती है।
जब यह विक्षेपित श्वेत प्रकाश को श्वेत पर्दे पर गिरने दिया जाता है, हम एक सात रंगों का प्रकाश या पट्टी प्राप्त करते हैं। यह रंगीन पट्टी स्पेक्ट्रम कहलाती है।
मानव नेत्रा
यह बहुत कोमल तथा जटिल प्राकृतिक दृश्य उपकरण होता है जो हमे प्रकाश के आश्यर्चजनक संसार को देखने के योग्य बनाता है।
संरचना :
चित्र मानव नेत्र की क्षेतिज तल की काट दर्शा रहा है। यह लगभग 2.5 cm व्यास की गोलाकार गेंद होती है। इसके आवश्यक भाग नीचे वर्णित है :
स्वच्छ मण्डल (कोर्निया) : यह नेत्र गोलक का आगे उभरा हुआ भाग है जो पारदश्र्ाी दृढ़पटल द्वारा ढ़का होता है।
नेत्र का स्वच्छ मण्डल-सामने का दृश्य
परिवारिका : यह स्वच्छ मण्डल के अन्दर दृष्टिपटल से बना रंगीन क्षेत्र है। इसका रंग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न होता है।
पुतली : यह परितारिका में केन्द्रीय वृत्ताकार द्वारक होता है। इसका सामान्य व्यास 1 mm है किन्तु यह दो जोड़ी अनेच्छिक पेशीय तन्तुओं द्वारा प्रकाश की अधिकता में संकुचित तथा कम प्रकाश में फैल सकता है।
क्रिस्टलीय लैंस : यह परितारिका के ठीक पीछे द्वि उत्तल लेंस होता है। यह पारदश्र्ाी केन्द्रिय झिल्ली से बना होता है जिसका दृष्टि घनत्व लैंस के केन्द्र की ओर बड़ा हुआ होता है।
सिलिपरी पेशियाँ : लैंस सिलिपरी पेशीयों द्वारा दृढ़पटल से जुड़ा होता है। यह पेशियाँ लैंस की मोटार्इ को शिथिलन तथा दबाव द्वारा परिवर्तित करती है।
जलीय द्रव : अग्र कोष्ठ अपर्वतनांक वाले पारदश्र्ाी द्रव द्वारा भरा होता है। यह द्रव जलीय द्रव कहलाता है।
काचाभ द्रव : पश्च कोष्ठ हल्के नमकीनी, कुछ अपवर्तनांक युक्त पारदश्र्ाी जलीय द्रव से भरा होता है। यह द्रव काचाभ द्रव कहलाता है।
दृष्टिपटल (रेटीना) : यह नेत्र के अन्दर आन्तरिक आवरण द्वारा बनता है। इसमें पतली झिल्ली होती है जो तंत्रिका तन्तुओं द्वारा सघन होती है। इसमें दो प्रकार की दृष्टि कोशिकाऐं होती है जिन्हें शलाका या शंकु कहते है तथा रक्त वाहिकाऐं होती है। यह प्रकाश के प्रति संवेदनशील होती है इसके लिए दृक तंत्रिकाऐं सतत होती है। यह नेत्र के लैंस तंत्र द्वारा चित्र निर्माण के आधार के लिए संवेदी पर्दे का कार्य करती है।
[शलाका कम प्रकाश (स्कोटोपिक दृष्टि)
में रंग देखने के लिए उत्तरदायी होती है] शंकु सामान्यत: दिन के प्रकाश (फोटोपिक दृष्टि) में देखने के लिए उत्तरदायी होते है।
अंध बिन्दु : अंध बिन्दु, यह वह बिन्दु है जहाँ दृक तंत्रिकाएँ नेत्र में प्रवेश करती है। यह कुछ उठे हुऐ तथा प्रकाश के प्रति असंवेदी होते है, क्योंकि यह रक्त पटल तथा दृष्टि पटल द्वारा आवरित नहीं होती है।
याद रखने योग्य महत्वपूर्ण बिन्दु
परावर्तन के नियम :
(a) आपतन कोण परावर्तन कोण के बराबर होता है
(b) आपतित किरण परावर्तित किरण तथा अभिलम्ब सभी समान तल में स्थित होते है।
दर्पण : एक चिकनी उच्च पॉलिशयुक्त परावर्तक सतह दर्पण कहलाती है। दर्पण दो प्रकार के होते है
(a) समतल दर्पण (b) वक्रीय दर्पण
वक्रीय दर्पण वर्गीकृत किये जाते हैं जैसे गोलीय दर्पण या परवलयिक दर्पण जो दर्पण की वक्रता पर निर्भर करते हैं।
अवतल दर्पण: एक गोलीय दर्पण जिसकी आन्तरिक खोखली सतह परावर्तक सतह है अवतल दर्पण कहलाता हैं। एक अवतल दर्पण एक वस्तु का वास्तविक एवं उल्टा प्रतिबिम्ब बनाता है। यदि वस्तु F के बाहर किसी स्थान पर रखी जाये यद्यपि जब वस्तु F व P के मध्य रखी जाती है तो प्रतिबिम्ब सीधा तथा आभासी बनता है।
उत्तल दर्पण: एक गोलीय दर्पण जिसकी सतह का बाहरी उभार (bluging) परावर्तक सतह है उत्तल दर्पण कहलाता है। उत्तल दर्पण द्वारा बना हुआ प्रतिबिम्ब सदैव सीधा आभासी एवं वस्तु से छोटा होता है चाहे वस्तु की स्थिति कुछ भी हो। एक उत्तल दर्पण ऑटोमोबाइल में साइड़ दर्पण (चालक के दर्पण) के रुप में उपयोग में लिया जाता है।
दर्पण का द्वारक: एक गोलीय दर्पण जिससे परावर्तन होता है की प्रभावी चोड़ार्इ इसका द्वारक कहलाती है।
ध्रुव: वक्रीय दर्पण का केन्द्र इसका ध्रुव कहलाता है।
वक्रता केन्द्र: खोखला गोला जिसका गोलीय दर्पण एक भाग है का केन्द्र वक्रता केन्द्र कहलाता है। अवतल दर्पण का वक्रता केन्द्र इसके सामने होता है जबकी उत्तल दर्पण का पीछे।
वक्रता त्रिज्या : खोखले गोले जिसका दर्पण एक भाग है की त्रिज्या वक्रता त्रिज्या कहलाती है।
मुख्य अक्ष: गोलीय दर्पण के ध्रुव तथा वक्रता केन्द्र से गुजरने वाली सरल रेखा तथा इसका मुख्य अक्ष कहलाती है।
फोकस: एक दर्पण के मुख्य अक्ष पर स्थित एक बिन्दु जिस पर अनन्त से आती हुर्इ किरणें मिलती है या मिलती हुर्इ प्रतीत होती है इसका फोकस कहलाती है। इसे F द्वारा व्यक्त करते है।
फोकस दूरी: एक गोलीय दर्पण के ध्रुव तथा फोकस के मध्य दूरी एक गोलीय दर्पण की फोकस दूरी कहलाती है।
वास्तविक प्रतिबिम्ब: वह प्रतिबिम्ब जो पर्दे पर प्राप्त हो सकता है एक वास्तविक प्रतिबिम्ब कहलाता है। वास्तविक प्रतिबिम्ब केवल तब बनता है जब परावर्तित या अपवर्तित किरणे वास्तव में एक बिन्दु पर मिलती है।
आभासी प्रतिबिम्ब: वह प्रतिबिम्ब जो दर्पण में देखा जा सकता है किन्तु पर्दे पर प्राप्त नहीं हो सकता है आभासी प्रतिबिम्ब कहलाता है। एक आभासी प्रतिबिम्ब केवल तब ही बनता है जब परावर्तित या अपवर्तित किरणें एक बिन्दु से आती हुर्इ प्रतीत होती है।
गोलीय दर्पणों के लिए चिन्ह परिपाटी:
दर्पणों के लिए चिन्ह परिमाटी के अनुसार अवतल दर्पण की फोकस दूरी ऋणात्मक है तथा उत्तल दर्पण की धनात्मक है।
दर्पण सूत्र: सम्बन्ध दर्पण सूत्र कहलाता है।
आवर्धन : प्रतिबिम्ब के आकार व वस्तु के आकार का अनुपात आवर्धनता कहलाता है। दर्पण के लिए आवर्धन (M) द्वारा दिया जाता है –
प्रकाश-परावर्तन एवं अपवर्तन से संबंधित प्रश्न उत्तर
1.प्रकाश की किरण किसे कहते हैं?
उत्तर. सीधी रेखा में गमन करने वाले प्रकाश को प्रकाश की किरण कहते हैं
2. किरण पुंज किसे कहते हैं?
उत्तर. किरणों के समूह को किरण पुंज कहते हैं
3. अपसारी किरण किसे कहते हैं?
उत्तर. जब किरणें एक ही बिंदु स्त्रोत से बाहर की ओर फैल रही हो तो उन्हें अपसारी किरण कहते हैं
4. समांतर किरण किसे कहते हैं?
उत्तर. जब किरणें समांतर दिशा में जा रही हो तो उन्हें समांतर किरण कहते हैं
5. प्रकाश का परावर्तन किसे कहते हैं?
उत्तर. जब किरणें किसी चमकीली सतह से टकराकर वापस मुड़ जाए तो उसे प्रकाश का परावर्तन कहते हैं
6.प्रकाश का अपवर्तन किसे कहते हैं?
उत्तर. प्रकाश का एक माध्यम से दूसरे पारदर्शक माध्यम में जाने पर अपने पथ से विचलित हो जाना अपवर्तन कहलाता है
7.पारदर्शक माध्यम किसे कहते हैं?
उत्तर. वायु,काँच, पानी आदि की तरह वह माध्यम जो प्रकाश की किरणों को अपने में आसानी से गुजरने देते हैं उन्हें पारदर्शक माध्यम देते
8. अभिसारी किरणें किसे कहते हैं?
उत्तर. जब किरणें एक ही बिंदु स्त्रोत से बाहर की ओर फैल रही हो तो उन्हें अपसारी किरण कहते हैं
9. लेंस क्या है?
उत्तर. यह दो तलो से घिरा हुआ एक पारदर्शक माध्यम होता है जिनके दोनों तंल या एक तल वक्र और दूसरा समतल होता है
10.वक्रता केंद्र किसे कहते हैं?
उत्तर. लेंस के वक्र तल जिन गोलो के भाग होते हैं उनके केंद्रों को वक्रता केंद्र कहते हैं
11.मुख्य अक्ष किसे कहते हैं?
उत्तर. वक्रता केंद्र से होकर जाने वाली रेखा को मुख्य अक्ष कहते हैं
12. प्रकाशीय केंद्र किसे कहते हैं?
उत्तर. प्रत्येक लेंस में एक बिंदु ऐसा होता है जिसमें से गुजरने वाली किरणें अपने पथ से विचलित नहीं होती इस बिंदु को प्रकाश प्रकाशीय केंद्र कहते हैं
13. मुख्य फोकस किसे कहते हैं?
उत्तर. प्रकाश की किरणें जो मुख्य अक्षर के समांतर आकर लेंस पर पड़ती है अपवर्तन के पश्चात मुख्य अक्ष पर स्थित एक बिंदु पर मिल जाती है अथवा एक ही बिंदु से आती हुई प्रतीत होती है इस बिंदु को मुख्य फोकस करें
14.फोकस दूरी किसे कहते हैं?
उत्तर. किसी लेंस के मुख्य फोकस और प्रकाशीय केंद्र के बीच की दूरी को फोकस दूरी कहते हैं
15.वास्तविक प्रतिबिंब किसे कहते हैं?
उत्तर. यदि किरणें वास्तव में किसी बिंदु पर मिली है तो प्रतिबिंब वास्तविक होता है
16.काल्पनिक बिंब किसे कहते हैं?
उत्तर. यदि किरणें एक बिंदु पर आती दिखाई पड़ती है तो प्रतिबिंब आभासी या काल्पनिक होता है
17.आवर्धक लेंस किसे कहते हैं?
उत्तर.साधारण सूक्ष्मदर्शी को आवर्धक लेंस कहते हैं क्योंकि यह छोटी वस्तुओं को बड़ा करके दिखाता है
18.प्रिज्म किसे कहते हैं?
उत्तर. तीन समतल पलकों से बना पारदर्शक माध्यम प्रिज्म कहलाता है
19.प्रिज्म का कोण किसे कहते हैं?
उत्तर. एक फलक पर आपतित प्रकाश किरण प्रिज्म में अपवर्तित होकर फिर दूसरे फलक में अपवर्तित हो जाती है इन दोनों पलकों के बीच के कोण को प्रिज्म कोण कहते हैं
20. विक्षेपण किसे कहते हैं?
उत्तर. प्रिज्म द्वारा प्रकाश को सात रंगों में विभाजित करने को प्रकाश का विक्षेपण कहते हैं
21. वर्णक्रम किसे कहते हैं?
उत्तर. विक्षेपण द्वारा रंगों की जो पट्टी प्राप्त होती है उसे वर्णक्रम कहते हैं
22. वर्णात्मक क्या परावर्तन किसे कहते हैं?
उत्तर. अपारदर्शक वस्तुओं के रंग उनके वर्णात्मक परावर्तन पर निर्भर करते हैं जब सफेद प्रकाश किसी वस्तु पर पड़ता है तो उनमें से कुछ रंगों का वस्तु द्वारा शोषण हो जाता है और कुछ रंगों का परावर्तन इन क्रियाओं का वर्णन वर्णात्मक परावर्तन कहते हैं
23.वर्णात्मक संचरण किसे कहते हैं?
उत्तर. पारदर्शक वस्तुओं का रंग उनके वर्णात्मक संचरण के कारण होता है
24.मूल रंग किसे कहते हैं?
उत्तर. प्रिज्म से प्राप्त लाल, नीले और हरे प्रकाश को उचित अनुपात में मिलाने से सफेद प्रकाश उत्पन्न हो जाता है इन रंगों को मूल रंग कहते हैं