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ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, बंगाल फ्लोरिकन और एशियाई हाथी के लिए अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण

  • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, एशियाई हाथी और बंगाल फ्लोरिकन को प्रवासी प्रजातियों के बारे में संयुक्त राष्ट्र समझौते के परिशिष्ट-I में शामिल करने के भारत के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से गांधीनगर में चल रहे प्रवासी प्रजातियों पर समझौते (सीएमएस) के पक्षकारों के चल रहे तेरहवें सम्मेलन में सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया है।
  • ध्यातब्य है कि ऐसी प्रजातियाँ, जो विलुप्ति के कगार पर हैं या जिनका अस्तित्व संकट में है, को परिशिष्ट-I में सूचीबद्ध किया जाता है। वें प्रजातियाँ जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से मदद की जरुरत है, उन्हें अपेंडिक्स-।। में शामिल किया जाता है।
  • प्रवासी प्रजातियों पर समझौते (सीएमएस) के पक्षकार देश इन सूचीबद्ध जीवों की कड़ाई से रक्षा करने, इनके निवास स्थानों को संरक्षित करने या उन्हें पुनर्स्थापित करने की दिशा में प्रयास करते हैं साथ ही प्रवासन की बाधाओं को कम करते हैं।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड

  • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड एक प्रसिद्ध, गंभीर रूप से लुप्तप्राय और संरक्षण पर निर्भर पक्षी प्रजाति है, जो प्रवास के लिए अनेक देशों की सीमाओं को पार करती है। इस कारण पाकिस्तान-भारत और सीमावर्ती क्षेत्र में शिकार और भारत में बिजली-लाइन टकराव जैसी चुनौतियों से इसका प्रवासन प्रभावित होता है।
  • द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड एक गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Critically Endangered) प्रजाति है इसकी आबादी लगभग 100–150 के बीच है। यह मुख्य रूप से राजस्थान के थार रेगिस्तान तक सीमित है। पिछले 50 वर्षों के दौरान इस पक्षी की आबादी 90% घटी है और भविष्य में आबादी और घटने की आशंका है।

एशियाई हाथी

  • भारत सरकार ने भारतीय हाथी को राष्ट्रीय धरोहर पशु घोषित किया है। भारतीय हाथी को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I में सूचीबद्ध करके उच्चतम कानूनी सुरक्षा भी प्रदान की गई है।
  • मुख्यभूमि के एशियाई हाथी/भारतीय हाथी भोजन और आश्रय की तलाश में राज्यों और देश के अनेक हिस्सों में लंबी दूरी तय करते हैं। कुछ हाथी निवासी हैं और अन्य हाथी वार्षिक प्रवास चक्रों में नियमित रूप से प्रवास करते हैं।
  • सीएमएस समझौते की अनुसूची-I में भारतीय हाथी को शामिल करने से भारत की सीमाओं से बाहर भारतीय हाथी के प्रवास की प्राकृतिक जरूरत पूरी होने के साथ-साथ सुरक्षित वापसी भी सुनिश्चित होगी।
  • नेपाल, बांग्लादेश, भूटान और म्यांमार की छोटी उप-आबादी के साथ अन्तर्मिश्रण से इन हाथियों के आबादी को व्यापक ‘जीन’ आधार उपलब्ध होगा। इससे इनके प्रवासी मार्गों के कई हिस्सों में मानव हाथी संघर्ष को कम करने में भी मदद मिलेगी।

बंगाल फ्लोरिकन

  • बंगाल फ्लोरिकॉन एक प्रसिद्ध, गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति है। जो सीमा पार करके प्रवास करती है। यह प्रवासन में भूमि उपयोग परिवर्तन, भारत-नेपाल सीमा पर बिजली लाइनों से टकराव जैसी चुनौतियों का सामना करती है।
  • आवास कम होने और शिकार होने के कारण इनकी आबादी कम हो रही है। यह प्रजाति असम के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर भारतीय उपमहाद्वीप में संरक्षित क्षेत्रों से बाहर प्रजनन नहीं करती हैं।

प्रवासी प्रजातियों पर संयुक्त राष्ट्र का शिखर सम्मेलन, सीएमएस कोप-13

  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तहत वन्य जीवों की प्रवासी प्रजातियों (CMS – Convention on the Conservation of Migratory Species of Wild Animals) के सरंक्षण के लिए 17 से 22 फरवरी के बीच गुजरात के गांधीनगर में 13 वें कोप शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। मेजबान देश के रूप में अगले तीन वर्षों तक भारत इस सम्मेलन की अध्यक्षता करेगा।
  • अध्यक्ष के तौर पर भारत की जिम्मेदारी होगी कि वह कोप के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बैठक में लिए गए फैसलों का अमल में लाने का मार्ग सुगम बनाए। मेजबान देश के रूप में अगले तीन वर्षों तक भारत इस सम्मेलन की अध्यक्षता करेगा। भारत 1983 से ही सीएमएस कन्वेशन पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में से रहा है।
  • इस बार इस सम्मेलन की विषय वस्तु “प्रवासी प्रजातियां दुनिया को जोड़ती हैं और हम उनका अपने यहां स्वागत करते हैं” है। सम्मेलन का प्रतीक चिन्ह दक्षिण भारत की पांरपरिक कला कोलम से प्रेरित है। प्रतीक चिन्ह में इस कला के माध्यम से भारत में आने वाले प्रमुख प्रवासी पक्षियों जैसे आमूर फाल्कन, हम्पबैक व्हेल और समुद्री कछुओं के साथ प्रमुख को दर्शाया गया है।
  • वन्य जीव संरक्षण कानून 1972 के तहत देश में सर्वाधिक संकटापन्न प्रजाति माने जाने वाले द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को सम्मेलन का शुभंकर बनाया गया है।
  • वन्य जीवों की प्रवासी प्रजातियां भोजन, सूर्य का प्रकाश, तापमान और जलवायु आदि जैसे विभिन्न कारणों से प्रत्येक वर्ष अलग अलग समय में एक पर्यावास से दूसरे पर्यावास की ओर रूख करती हैं। कुछ प्रवासी पक्षियों और स्तनपाई जीवों के लिए यह प्रवास कई हजार किलोमीटर से भी ज्यादा का हो जाता है। ये जीव अपने प्रवास के दौरान घोसले बनाने, प्रजनन, अनुकूल पर्यावरण तथा भोजन की उपलब्धता जैसी सुविधाओं को देखते हुए चलते हैं।
  • भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया में प्रवासी पक्षियों के नेटवर्क का अहम हिस्सा माना जाता है। मध्य एशिया का यह क्षेत्र आर्कटिक से लेकर हिन्द महासागर तक के इलाके में फैला हुआ है। इस क्षेत्र में 182 प्रवासी समुद्री पक्षियों के करीब 297 अवासीय क्षेत्र हैं। इन प्रजातियों में दुनिया की 29 संकटापन्न प्रजातियां भी शामिल हैं।

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