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Current Affairs: 10 – 11 May 2020
1. निशुल्क राशन किट्स उपलब्ध कराने के लिए ट्राइफेड और ऑर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के बीच समझौता
जनजातीय कार्य मंत्रालय के अंतर्गत ट्राइफेड और ऑर्ट ऑफ लिविंग (एओएल) ने जनजातीय उद्यमों को बढ़ावा देने हेतु संगठन के प्रत्येक विशिष्ट कार्यक्रमों में सहयोग प्रदान करने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
- इस समझौता ज्ञापन के तहत ऑर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन ने जरूरतमंद जनजातीय कारीगरों को निशुल्क राशन किट्स उपलब्ध कराने पर सहमति प्रकट की है।
- इसीलिए ट्राइफेड के क्षेत्रीय कार्यालयों ने जरूरतमंद जनजातीय कारीगरों की सूची तैयार की है तथा ऑर्ट ऑफ लिविंग के #iStandWithHumanity अभियान के अंतर्गत राशन किट्स का वितरण करने के लिए देश भर में 9,409 जरूरतमंद जनजातीय कारीगरों की पहचान की है।
- इस संबंध में सभी राज्यों में ऑर्ट ऑफ लिविंग (एओएल) कार्यालयों के साथ समन्वय किया जा रहा है।
ऑर्ट ऑफ लिविंग (एओएल) फाउंडेशन
- द आर्ट ऑफ लिविंग बिना किसी लाभ वाली शैक्षिक और मानवतावादी गैर सरकारी संस्था है जो 156 से ज़्यादा देशों में मौजूद है। श्री श्री रविशंकर द्वारा 1981 में संस्थापित किया गया था। द आर्ट ऑफ लिविंग व्यक्ति के विकास के लिए तनाव निष्कासन कार्यक्रम का आयोजन करती है जो लोगों को जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है।
ट्राइफेड (TRIFED)
- भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ लिमिटेड (TRIFED – द ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया) को भारत सरकार द्वारा 1987 में स्थापित किया गया था ट्राइफेड का मूल उद्देश्य आदिवासी लोगों द्वारा जंगल से एकत्र किये गए या इनके द्वारा बनाये गए उत्पादों को बाजार में सही दामों पर बिकवाने की व्यवस्था करना है।
- भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ लिमिटेड (ट्राइफेड) जनजातीय मंत्रालय के अंतर्गत बहु-राज्य सहकारी सोसायटी है। ट्राइफेड राष्ट्रीय जनजातीय क्रॉफ्ट एक्सपो “आदि महोत्सव” जैसे प्रदर्शनियां भी आयोजित करता है और जनजातीय उत्पादों के विपणन को प्रोत्साहित करता है। यह जनजातीय दस्तकारों को सुविधा उपलब्ध कराता है, ताकि वे बाजार आवश्यकताओं का जायजा लेने के लिए कला प्रेमियों के साथ सीधी बातचीत कर सकें। पिछले चार वर्षों में उत्पादों की बिक्री के लिए यह जनजातीय दस्तकारों को ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म उपलब्ध करा रहा है।
- ट्राइफेड का मुख्य कार्यालय नई दिल्ली में है इसके प्रधान कार्यालय के अलावा देश के विभिन्न स्थानों पर इसके 13 क्षेत्रीय कार्यालयों का नेटवर्क है। ट्राइफेड, जनजातीय मामलों के मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत एक राष्ट्रीय स्तर की सर्वोच्च संस्था है।
2. धारचूला (उत्तराखंड) से लिपुलेख (चीन सीमा) तक सड़क मार्ग का उद्घाटन
कैलाश-मानसरोवर यात्रा और सीमा क्षेत्र कनेक्टिविटी में एक नए युग की शुरुआत करते हुएरक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक विशेष कार्यक्रम में धारचूला (उत्तराखंड) से लिपुलेख (चीन सीमा) तक सड़क मार्ग का उद्घाटन किया। राजनाथ सिंह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पिथौरागढ़ से गुंजी तक वाहनों के एक काफिले को रवाना किया।
- इस सड़क लिंक के पूरा होने के साथ, कैलाश-मानसरोवर यात्रा एक सप्ताह में पूरी हो सकती है, जबकि पहले 2-3 सप्ताह का समय लगता था।
- यह सड़क घटियाबगड़ से निकलती है और कैलाश-मानसरोवर के प्रवेश द्वार लिपुलेख दर्रा पर समाप्त होती है। 80 किलोमीटर लम्बी इस सड़क की ऊंचाई 6,000 से 17,060 फीट तक है।
क्या है वर्तमान रास्ता?
- इस परियोजना के पूरा होने के साथ, अब कैलाश-मानसरोवर के तीर्थयात्री जोखिम भरे व अत्यधिक ऊंचाई वाले इलाके के मार्ग पर कठिन यात्रा करने से बच सकेंगे। वर्तमान में, सिक्किम या नेपाल मार्गों से कैलाश-मानसरोवर की यात्रा में लगभग दो से तीन सप्ताह का समय लगता है।
- सिक्किम और नेपाल के रास्ते लिपुलेख मार्ग में ऊंचाई वाले इलाकों से होकर 90 किलोमीटर लम्बे मार्ग की यात्रा करनी पड़ती थी। इसमें बुजुर्ग यात्रियों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था।
- वर्तमान में सिक्किम और नेपाल के रास्ते अन्य दो सड़क मार्ग हैं। इसमें भारतीय सड़कों पर लगभग 20 प्रतिशत यात्रा और चीन की सड़कों पर लगभग 80 प्रतिशत यात्रा करनी पड़ती थी। घटियाबगड़-लिपुलेख सड़क के खुलने के साथ, यह अनुपात उलट गया है। अब मानसरोवर के तीर्थयात्री भारतीय भूमि पर 84 प्रतिशत और चीन की भूमि पर केवल 16 प्रतिशत की यात्रा करेंगे।
बीआरओ ने किया निर्माण
- इसका निर्माण सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने किया है। इस अवसर पर बीआरओ के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह ने बताया कि, कई समस्याओं के कारण इस सड़क के निर्माण में बाधाएं आई हैं। लगातार बर्फबारी, ऊंचाई में अत्यधिक वृद्धि और बेहद कम तापमान से काम करने लायक मौसम पांच महीने तक सीमित रहा है।
लिपुलेख दर्रा
- लिपुलेख दर्रा या ‘लिपुलेख ला’ हिमालय (भारत) में स्थित एक पहाड़ी दर्रा है। यह दर्रा उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र को तिब्बत के तकलाकोट (पुरंग) शहर से जोड़ता है। यह उत्तराखण्ड का प्रमुख हिस्सा है। यह दर्रा भारत से कैलाश पर्वत व मानसरोवर जाने वाले यात्रियों द्वारा विशेष रूप से इस्तेमाल होता है।
3. कोविड-19 से निपटने हेतु भारत सरकार और एआईआईबी के मध्य 500 मिलियन डॉलर का समझौता
भारत सरकार और एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) ने 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर की ‘कोविड-19 आपातकालीन उपाय एवं स्वास्थ्य प्रणाली तैयारी परियोजना’ पर हस्ताक्षर किए, ताकि कोविड-19 महामारी से निपटने और अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य तैयारियों को मजबूती प्रदान करने के लिए भारत की मदद की जा सके। यह इस बैंक की ओर से भारत को अब तक की पहली स्वास्थ्य क्षेत्र संबंधी सहायता है।
- इस परियोजना के प्राथमिक लाभार्थी दरअसल संक्रमित लोग, जोखिम वाली आबादी, चिकित्सा एवं आपातकालीन कर्मी, चिकित्सा तथा परीक्षण केंद्रों (सार्वजनिक व निजी दोनों) में कार्यरत सेवाप्रदाता और भारत में कोविड-19 से निपटने में संलग्न सार्वजनिक व पशु स्वास्थ्य एजेंसियां होंगी।
- आज लगभग 75 प्रतिशत नए संक्रामक रोग मानव और पशुओं के आपसी संपर्क से शुरू होते हैं जिनमें एचआईवी/एड्स, इबोला और सार्स भी शामिल हैं। यह परियोजना पशुओं से मानव को होने वाली मौजूदा एवं उभरती बीमारियों का पता लगाने की क्षमता व प्रणाली विकसित करेगी।
- इस परियोजना को विश्व बैंक और एआईआईबी द्वारा 1.5 अरब डॉलर की धनराशि से वित्तपोषित किया जा रहा है, जिनमें से 1.0 अरब डॉलर विश्व बैंक द्वारा और 500 मिलियन डॉलर एआईआईबी द्वारा प्रदान किए जाएंगे।
- साथ ही यह नई सहायता पूरे भारत के सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को कवर करेगी और संक्रमित लोगों, जोखिम वाली आबादी, चिकित्सा एवं आपातकालीन कर्मियों व सेवाप्रदाताओं, चिकित्सा तथा परीक्षण केंद्रों और राष्ट्रीय एवं पशु स्वास्थ्य एजेंसियों की जरूरतों को पूरा करेगी।
एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी)
- एशियाई इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) एक बहुपक्षीय अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्था है जो एशिया और उसके बाहर के सामाजिक और आर्थिक नतीजों में सुधार के लिये एक मिशन के रूप में कार्य करता है।
- इसका मुख्यालय बीजिंग में है। इसने जनवरी 2016 में कार्य करना शुरू किया और वर्तमान में इसके 78 सदस्य हैं। वर्तमान में इसके अध्यक्ष जिन लिकुन हैं।
- एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक ऊर्जा और बिजली, परिवहन और दूरसंचार, ग्रामीण बुनियादी ढाँचा व कृषि विकास, जल आपूर्ति एवं स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण, शहरी विकास और प्रचालन में ठोस और टिकाऊ परियोजनाओं के लिये वित्तपोषण प्रदान करता है।
4. 08 मई को दुनियाभर में मनाया गया विश्व रेडक्रॉस दिवस
दुनियाभर में रेड क्रॉस के अच्छे कार्य का जश्न मनाने के लिए विश्व रेडक्रॉस दिवस हर साल 8 मई को मनाया जाता है। रेड क्रॉस दिवस का उद्देश्य जरूरतमंद लोगों के लिए स्वयंसेवकों के अभूतपूर्व योगदान का सम्मान करना भी है।
- इस अवसर पर उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कोविड-19 को फैलने से रोकने और लोगों की जान बचाने में नि:स्वार्थ सेवा प्रदान कर रहे भारतीय रेड क्रॉस सोसायटी के कर्मचारियों और स्वयंसेवकों की प्रशंसा की है।
- उपराष्ट्रपति के अलावा इस अवसर पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और भारतीय रेडक्रॉस सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ० हर्षवर्धन ने नई दिल्ली में भारतीय रेडक्रॉस सोसाइटी के मुख्यालय से राहत सामग्री वितरण अभियान का शुभारंभ किया। यह अभियान रेडक्रॉस के स्वयंसेवक देशभर में चला रहे हैं।
विश्व रेडक्रॉस दिवस
- 8 मई रेडक्रॉस सोसायटी के इतिहास का एक अहम दिन है। यही वह दिन है जब इसके संस्थापक या जनक जॉन हेनरी डिनैंट का जन्म 1828 में हुआ था। उनके जन्मदिन यानी 8 मई को ही विश्व रेडक्रॉस दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
- साल 1901 में हेनरी डिनैंट को उनके मानव सेवा के कार्यों के लिए पहला नोबेल शांति पुरस्कार मिला था।
रेडक्रॉस सोसायटी की प्रष्ठभूमि
- हेनरी डिनैंट स्विटजरलैंड के एक उद्यमी थे। 1859 में वह फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय की तलाश में गए थे। उन दिनों अल्जीरिया पर फ्रांस का कब्जा था। डिनैंट को उम्मीद थी कि अल्जीरिया में व्यापारिक प्रतिष्ठान खोलने में नेपोलियन उनकी मदद करेंगे। लेकिन डिनैंट को सम्राट नेपोलियन से मिलने का मौका नहीं मिला। इसीबीच वह इटली गए जहां उन्होंने सोल्फेरिनो का युद्ध देखा।
- एक ही दिन में उस युद्ध में 40,000 से ज्यादा सैनिक मारे गए और घायल हुए। किसी भी सेना के पास घायल सैनिकों की देखभाल के लिए चिकित्सा कोर नहीं थी। डिनैंट ने स्वंयसेवकों के एक समूह को संगठित किया।
- गठित समूह ने घायलों तक खाना और पानी पहुंचाया। घायलों का उपचार किया और उनके परिवार के लोगों को पत्र लिखा। इस घटना के 3 साल बाद डिनैंट ने अपने इस दुखद अनुभव को एक किताब के रूप में प्रकाशित किया। किताब का नाम था ‘अ मेमरी ऑफ सोल्फेरिनो’ था।
- पुस्तक के अंत में उन्होंने एक स्थायी अंतरराष्ट्रीय सोसायटी की स्थापना का सुझाव दिया था। ऐसी सोसायटी जो युद्ध में घायल लोगों का इलाज कर सके। ऐसी सोसायटी जो हर नागरिकता के लोगों के लिए काम करे। इसीलिए फरवरी, 1863 में जिनीवा पब्लिक वेल्फेयर सोसायटी ने एक कमिटी का गठन किया था।
- अक्टूबर 1863 में कमिटी की ओर से एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया था। पांच सदस्यों वाली कमिटी को शुरू में International Committee for Relief to the Wounded के नाम से जाना गया। बाद में इसका नाम इंटरनैशनल कमिटी ऑफ द रेड क्रॉस हो गया। गुस्तावे इसके पहले अध्यक्ष बने थे।
5. प्रधानमंत्री ने गोपाल कृष्ण गोखले की जयंती पर अर्पित की श्रद्धांजलि
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने गोपाल कृष्ण गोखले को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा है कि “गोपाल कृष्ण गोखले को उनकी जयंती पर याद कर रहा हूँ। अपार ज्ञान से परिपूर्ण एक महान व्यक्तित्व। उन्होंने शिक्षा और सामाजिक सशक्तिकरण के लिए उत्कृष्ट योगदान दिया। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी अनुकरणीय नेतृत्व प्रदान किया।”
गोपाल कृष्ण गोखले
- गोपालकृष्ण गोखले का जन्म रत्नागिरी में एक सामान्य परिवार में कृष्णराव के घर 9 मई 1866 को हुआ था। गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और सर्वेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी के संस्थापक थे। वह कांग्रेस पार्टी के उदारवादी गुट के नेता थे जिन्होंने मौजूदा सरकारी संस्थानों के साथ काम करके सुधारों की वकालत थी।
- महादेव गोविंद रानाडे के शिष्य गोपाल कृष्ण गोखले को वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ थी और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें भारत का ‘ग्लेडस्टोन’ कहा जाता है।
- वह वर्ष 1889 में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में शामिल हुए थे। वर्ष 1905 में गोखले को भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष का चुना गया था।
- उन्होंने 1905 में सर्वेंट्स ऑफ़ इंडियन सोसाइटी की स्थापना की थी। इस सोसाइटी का मुख्य उद्देश्य भारतीयों को सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज़ उठाने और अपने देश की सेवा के लिये प्रशिक्षित करना था।
- 19 फ़रवरी 1915 को गोपालकृष्ण गोखले इस संसार से सदा-सदा के लिए विदा हो गए थे।
6. प्रधानमंत्री ने महाराणा प्रताप जयंती पर अर्पित की श्रद्धांजलि
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महाराणा प्रताप को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘भारत माता के महान सपूत महाराणा प्रताप को उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन। देशप्रेम, स्वाभिमान और पराक्रम से भरी उनकी गाथा देशवासियों के लिए सदैव प्रेरणास्रोत बनी रहेगी।’
महाराणा प्रताप
- महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया उदयपुर, मेवाड में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे इनका जन्म 9 मई, 1540 ई. में कुम्भलगढ़, राजस्थान में हुआ था। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक संघर्ष किया था।
- महाराणा प्रताप की माता का नाम जयवंता बाई था, जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी उनके पिता का नाम महाराणा उदयसिंह था जो, मेवाड में सिसोदिया राजपूत राजवंश के महाराणा थे। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था।
- मुगल सम्राट अकबर बिना युद्ध के प्रताप को अपने अधीन लाना चाहता था इसलिए अकबर ने प्रताप को समझाने के लिए चार राजदूत नियुक्त किए जिसमें सर्वप्रथम सितम्बर 1572 ई. में जलाल खाँ प्रताप के खेमे में गया, इसी क्रम में मानसिंह (1573 ई. में ), भगवानदास ( सितम्बर, 1573 ई. में ) तथा राजा टोडरमल ( दिसम्बर,1573 ई. ) प्रताप को समझाने के लिए पहुँचे, लेकिन राणा प्रताप ने चारों को निराश किया, इस तरह राणा प्रताप ने मुगलों की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया जिसके परिणामस्वरूप हल्दी घाटी का ऐतिहासिक युद्ध हुआ।
- हल्दी घाटी युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया था। इस युद्ध का आँखों देखा वर्णन अब्दुल कादिर बदायूनीं ने किया था। इस युद्ध को आसफ खाँ ने अप्रत्यक्ष रूप से जेहाद की संज्ञा दी थी। इसमें महाराणा प्रताप के सहयोगी राणा पूंजा भील का महत्वपूर्ण योगदान रहा था। इस युद्ध में बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान करके महाराणा प्रताप के जीवन की रक्षा की थी।
- ऐसा माना जाता है कि इस युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे थे। मुग़लों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी। उन्होंने आखिरी समय तक अकबर से सन्धि की बात स्वीकार नहीं की और मान-सम्मान के साथ जीवन व्यतीत करते हुए लड़ाइयाँ लड़ते रहे।
- राजस्थान के इतिहास 1582 में दिवेर का युद्ध एक महत्वपूर्ण युद्ध माना जाता है, क्योंकि इस युद्ध में राणा प्रताप की जीत हुई थी तथा उन्हें खोये हुए राज्यों की पुनः प्राप्ती हुई थी, इसके पश्चात राणा प्रताप व मुगलो के बीच एक लम्बा संघर्ष युद्ध के रुप में घटित हुआ, जिसके कारण कर्नल जेम्स टॉड ने इस युद्ध को “मेवाड़ का मैराथन” कहा था।
7. 2019-20 में खादी एवं ग्रामोद्योग का कारोबार लगभग 90,000 करोड़ रुपये के आसपास पहुंचा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले पांच वर्षों में, भारत में खादी एवं ग्रामोद्योग की स्वीकार्यता व्यापक रूप से देखने को मिली है। वर्ष 2019-20 में, खादी एवं ग्रामोद्योग का कुल कारोबार 88,887 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
- यदि पिछले एक वर्ष में खादी के कारोबार के प्रदर्शन का अवलोकन करें तो पाते हैं कि, यह 2018-19 में 3215.13 करोड़ रुपये था, जिसमें 31% की वृद्धि दर्ज करते हुए, यह 2019-20 में 4211.26 करोड़ रुपये हो गया है।
- इसी प्रकार ग्रामोद्योग उत्पादों का कारोबार 2019-20 में 84,675.39 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, है जिसमें पिछले वर्ष की तुलना में 19% से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई है, जो कि 2018-19 में 71,077 करोड़ रुपये था।
- यदि दोनों को जोड़कर देखा जाये तो पाते हैं कि वर्ष 2019-20 में, खादी एवं ग्रामोद्योग का कुल कारोबार 88,887 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
- आंकड़ों के अनुसार, 2015-16 में खादी का उत्पादन 1,066 करोड़ रुपये आंका गया था, जो कि वर्ष 2019-20 में बढ़कर 2,292.44 करोड़ रुपये हो गया, जिसमें 115% से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई है। दूसरी ओर, खादी की बिक्री और भी ज्यादा रही है। खादी फैब्रिक उत्पादों की बिक्री 2015-16 में 1,510 करोड़ रुपये थी, जो कि 2019-20 में 179% बढ़कर 4,211.26 करोड़ रुपये हो गई।
- 2015-16 में ग्रामोद्योगों के उत्पादों का उत्पादन 33,425 करोड़ रुपये का किया गया था और यह उत्पादन 2019-20 में 96% की बढ़ोत्तरी के साथ 65,393.40 करोड़ रुपये हो गया है। 2015-16 में ग्रामोद्योगों के उत्पादों की बिक्री 40,385 करोड़ रुपये थी, जिसमें लगभग 110% की वृद्धि दर्ज की गई और यह 2019-20 में 84,675.39 करोड़ रुपये हो गया।
- खादी परिधानों के अलावा, ग्राम उद्योग उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला जैसे सौंदर्य प्रसाधन, साबुन और शैंपू, आयुर्वेदिक दवाएं, शहद, तेल, चाय, अचार, पापड़, हैंड सैनिटाइजर, मिष्ठान्न, खाद्य पदार्थ और चमड़े की वस्तुओं ने भी बड़ी संख्या में देश-विदेश के उपभोक्ताओं को आकर्षित किया है। इसके परिणामस्वरूप, पिछले पांच वर्षों में ग्रामोद्योग उत्पादों के उत्पादन और बिक्री में लगभग दोगुनी वृद्धि दर्ज की गई है।
खादी और ग्रामोद्योग आयोग
- खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) संसद के ‘खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम 1956’ के तहत भारत सरकार द्वारा निर्मित एक वैधानिक निकाय है। यह भारत में खादी और ग्रामोद्योग से संबंधित सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय (भारत सरकार) के अंतर्गत आने वाली एक शीर्ष संस्था है।
- इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में खादी एवं ग्रामोद्योगों की स्थापना और विकास करने के लिए योजना बनाना, प्रचार करना, सुविधाएं और सहायता प्रदान करना है जिसमें यह आवश्यकतानुसार ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कार्यरत अन्य एजेंसियों की सहायता भी ले सकता है।
- अप्रैल 1957 में इसने पूर्व के अखिल भारतीय खादी एवं ग्रामीण उद्योग बोर्ड का पूरा कार्यभार इसने संभाल लिया है।
- इसका मुख्यालय मुंबई में है, जबकि अन्य संभागीय कार्यालय दिल्ली, भोपाल, बेंगलुरु, कोलकाता, मुंबई और गुवाहाटी में स्थित हैं। संभागीय कार्यालयों के अलावा, इसके स्वयं के विभिन्न कार्यक्रमों का कार्यान्वयन करने के लिए 29 राज्यों में भी इसके कार्यालय हैं।
8. भारत का विदेशी मुद्रा भंडार हुआ 481.078 अरब डॉलर से ज्यादा
देश का विदेशी मुद्रा भंडार एक मई को समाप्त सप्ताह में 16.22 लाख डॉलर बढ़कर 481.078 अरब डॉलर हो गया। इस वृद्धि का कारण विदेशी मुद्रा आस्तियों का बढ़ना है।
- इससे पिछले सप्ताह विदेशी मुद्रा भंडार 11.3 करोड़ डॉलर घटकर 479.455 अरब डॉलर रह गया था। इससे पहले छह मार्च को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 5.69 अरब डॉलर बढ़कर 487.23 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पर पहुंच गया था।
- इस दौरान विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों के डॉलर में 1.752 अरब डॉलर की बढ़ोत्तरी के साथ 443.316 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। इस दौरान स्वर्ण आरक्षित भंडार 62.3 करोड़ डॉलर की कमी के साथ 32.277 अरब डॉलर पर रह गया है।
- वहीं, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के पास भारत का विशेष आहरण अधिकार 50 लाख डॉलर की वृद्धि के साथ 1.426 अरब डॉलर हो गया है।
विदेशी मुद्रा भंडार
- एक निश्चित समय पर किसी देश के पास उपलब्ध कुल विदेशी मुद्रा उसकी ‘विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति’ होती है। किसी देश के ‘विदेशी मुद्रा भंडार’ से आशय उस देश की विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों, स्वर्ण भंडार, विशेष आहरण अधिकार, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में रिज़र्व ट्रेन्च आदि से होता है।
- आधिकारिक तौर पर रिजर्व बैंक न तो किसी विशेष विनिमय दर और न ही विदेशी मुद्रा भंडार को लक्षित करता है, लेकिन विदेशी मुद्रा बाज़ार में अस्थिरता को कम करने के लिये रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखता है।
- इसे फोरेक्स रिज़र्व या आरक्षित निधियों का भंडार भी कहा जाता है भुगतान संतुलन में विदेशी मुद्रा भंडारों को आरक्षित परिसंपत्तियाँ’ कहा जाता है तथा ये पूंजी खाते में होते हैं। इसे आधिकारिक अंतर्राष्ट्रीय भंडार अथवा अंतर्राष्ट्रीय भंडार की संज्ञा देना अधिक उचित है।
9. कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में एम्स ऋषिकेश की अनूठी पहल
कोरोना संकट के समय में ऋषिकेश के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने स्वास्थ्य सेवाओं पड़ रहे बोझ को कम करने के मकसद से एक अनूठी पहल की है। यहां मोबाइल ऐप और उससे जुड़ी एक डिवाइस की सहायता से एक रिमोट हेल्थ मॉनिटरिंग सिस्टम विकसित किया गया है।
- इस रिमोट हेल्थ मॉनिटरिंग सिस्टम प्रणाली का नाम ‘मोनाल’ रखा गया है, जो उत्तराखंड के राज्य पक्षी के नाम से प्रेरित है। ‘मोनाल’ के ज़रिए कोरोना संक्रमित व्यक्ति अपने घर में रहते हुए भी चिकित्सकों के संपर्क में रह सकेगा।
- डिवाइस के माध्यम से रोगी के दिल की धड़कन, शरीर का तापमान, श्वसन दर और ऑक्सीजन के स्तर जैसी तमाम महत्वपूर्ण जानकारियां दूर बैठे डॉक्टरों को मिलती रहेंगी। अगर इस सिस्टम से जुड़े किसी मरीज की तबीयत बिगड़ती है, तो एम्स में बनाये गए नियंत्रण कक्ष को तुरंत सूचना मिल जाएगी, जिसके के बाद मरीज को अस्पताल में भर्ती कराने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।
- इस प्रणाली को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया के सहयोग से विकसित किया गया है। डिवाइस को 200 से अधिक रोगियों पर सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा चुका है। जल्द ही ये ऐप जनता के लिए भी लॉन्च कर दिया जाएगा।
‘मोनाल’ के प्रयोग के लाभ
- मोनाल’ के प्रयोग से कई तरह के लाभ होंगे। इसमें सबसे पहला है, पहले से ही कम हमारे स्वास्थ्य संसाधनों का उचित आवंटन होगा।
- चूंकि कोरोना के 95 फीसदी मरीज़ों को सघन चिकित्सा की ज़रूरत नहीं होती है। घर पर रहकर स्वास्थ्य की लगातार निगरानी और जेनेरिक दवाओं से ये मरीज़ जल्द ही ठीक हो सकते हैं। ऐसे में कोरोना के गंभीर रोगियों के लिए मौजूदा चिकित्सा संसाधनों का और बेहतर तरीके से इस्तेमाल हो सकेगा।
- इससे साथ ही मोनाल के प्रयोग से स्वास्थ्यकर्मियों और कोरोना मरीज़ों के बीच संपर्क में कमी आएगी। इस तरह हमारे स्वस्थ्यकर्मियों को अनावश्यक संक्रमण से भी बचाव हो सकेगा। और अंत में इस सिस्टम के प्रयोग से पीपीई किट की लगातार बढ़ती खपत में भी कमी आएगी।
10. फेसबुक ने कंटेट ओवरसाइट बोर्ड में भारत के सुधीर कृष्णास्वामी को किया शामिल
फेसबुक ने आपत्तिजनक पोस्ट पर नजर रखने के लिए एक ‘ओवरसाइट बोर्ड’ बनाया है। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री, नॉबेल शांति पुरस्कार विजेता, कानून विशेषज्ञों, प्रोफेसर और पत्रकार समेत 27 देशों के 20 लोगों को शामिल किया गया है। फेसबुक के अनुसार यह एक स्वतंत्र बोर्ड है।
- इसके सदस्य फेसबुक और इंस्टाग्राम पर पोस्ट किए जाने वाले आपत्तिजनक कंटेट पर नजर रखेंगे। यह मुख्य तौर पर नफरत भरे भाषणों, प्रताड़ना और लोगों की सुरक्षा से जुड़े पोस्ट्स पर फैसला करेगा। ऐसे मामलों में यह कंपनी के सीईओ मार्क जुकरबर्ग के फैसलों को भी पलट सकेगा।
- यह कंपनी को नीतियों के बारे में भी सुझाव दे सकता है। बोर्ड के फैसलों को कंपनी को 90 दिन में लागू करना होगा। हालांकि, कुछ मामलों में कंपनी समीक्षा के लिए 30 दिन मांग सकेगी। कंपनी विज्ञापन और फेसबुक ग्रुप से जुड़े कुछ अहम फैसले का अधिकार भी बोर्ड को दे सकता है। कंटेट से जुड़े किसी भी मामले पर यह बोर्ड सार्वजनिक तौर पर जवाब देगा। बोर्ड के 6 साल के काम के लिए फेसबुक ने 130 मिलियन डॉलर का फंड बनाया है।
कौन- कौन शामिल है इस बोर्ड में?
- फेसबुक के इस बोर्ड में डेनमार्क के पूर्व प्रधानमंत्री हेले थॉर्निंग श्मिट, नॉबेल शांति पुरस्कार विजेता तवाकूल कामरान, पत्रकार एलेन रूसब्रिजर, पाकिस्तान के डिजिटल अधिकारों के वकील निगत डैड, अमेरिका के फेडरल सर्किट के पूर्व जज और धार्मिक आजादी के विशेष माइकल मैककॉनेल, संवैधानिक कानून विशेषज्ञ जैमल ग्रीन और कोलंबिया के अटॉर्नी कैटलिना बोटेरे-मैरिनो प्रमुख हैं।
- बोर्ड में भारत के सुधीर कृष्णास्वामी भी शामिल किए गए हैं। वे बेंगलूर स्थित नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया के कुलपति हैं।