1. हिमालयीय जैव संसाधन प्रौद्योगिकी संस्थान ने हाथ धोने का एक नया सेनिटाइज़र किया तैयार
- कोरोना वायरस के खिलाफ निवारक उपाय और बाजार में बेची जा रही कई नकली सामग्रियों की खबरों के बीच सेनिटाइजर जैसे उत्पादों की माँग बढ़ रही है। इसे देखते हुए हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में स्थित हिमालय-जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) के वैज्ञानिकों ने एक नया हैंड-सेनिटाइजर विकसित किया है।
- आईएचबीटी के निदेशक डॉ संजय कुमार ने बताया कि इस हैंड-सेनिटाइजर में प्राकृतिक गंध, सक्रिय चाय घटक और अल्कोहल की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशा-निर्देशों के अनुसार उपयोग की गई है। इसकी एक खास बात है कि इस उत्पाद में पेराबेंस, ट्राईक्लोस्म, सिंथेटिक खुशबू और थेलेटेस जैसे रसायनों का उपयोग नहीं किया गया है।
- हैंड-सेनिटाइजर के व्यावसायिक उत्पादन के लिए आईएचबीटी ने पालमपुर की ही कंपनी ए.बी. साइंटिफिक सॉल्यूशन्स के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के अनुसार आईएचबीटी हैंड-सेनिटाइजर के उत्पादन की अपनी तकनीक इस कंपनी को हस्तांतरित कर रहा है।
- ए.बी. साइंटिफिक सॉल्यूशन्स के पास अपना एक मजबूत मार्केटिंग नेटवर्क है। यह कंपनी इस हैंड-सेनेटाइजर के व्यावसायिक उत्पादन के लिए पालमपुर में एक केंद्र स्थापित करेगी और देशभर के सभी प्रमुख शहरों में सेनिटाइजर और अन्य कीटाणुनाशकों का विपणन करेगी।
- विदित है कि बाजार में सेनिटाइज़र की मांग में अचानक वृद्धि के कारण इसकी मनमानी कीमतें वसूल की जा रही हैं। सही उत्पाद की मांग में वर्तमान वृद्धि के मद्देनजर, इस हैंड सैनिटाइज़र को उचित समय पर विकसित किया गया है।
हिमालयीय जैव संसाधन प्रौद्योगिकी संस्थान
- धौलाधार पर्वतमाला की गोद में शुद्ध /साफ सुथरे/ निर्मल वातावरण के बीच स्थित सीएसआईआर- हिमालयीय जैव संसाधन प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर, हिमाचल प्रदेश राज्य में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद की एकमात्र राष्ट्रीय प्रयोगशाला है। संस्थान का शोध ध्येय स्थायी तरीके/सतत उपायों से जैव संसाधनों से जैवआर्थिकी को बढ़ावा देना है।
- सामाजिक- आर्थिक उत्थान के लिए संस्थान किसानों, पुष्प उत्पादकों, चाय बागान मालिकों और छोटे खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में कार्यरत उद्यमियों के लिए नियमित रूप से प्रशिक्षण कार्यक्रम और सलाहकार सेवाएं प्रदान कर रहा है। संस्थान को सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय, भारत सरकार तथा वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग (डीएसआईआर) द्वारा सस्ती स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में इन्क्यबेशन सेंटर के रूप में मान्यता दी गई है।
2. दूरसंचार कम्पनियां बकाया एजीआर के बारे में स्वयं कोई मूल्यांकन या पुनर्मूल्यांकन नहीं कर सकती: उच्चतम न्यायालय
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दूरसंचार कम्पनियां अपने बकाया एजीआर के बारे में अपने से कोई पुर्नआकलन नहीं कर सकती हैं। ऐसा करने पर उन्हें न्यायालय की अवमानना का दोषी पाया जायेगा। न्यायालय ने कहा कि बकाया एजीआर के मामले में उसका निर्णय अंतिम है और उसका अक्षरश: पालन होना चाहिए।
- न्यायालय ने इस मामले पर समाचार पत्रों में छपे लेखों पर अपनी नाराजगी जताते हुए कहा कि दूरसंचार कम्पनियों के प्रबंध निदेशक इस तरह के लेख लिखने पर निजी रूप से जिम्मेदार माने जायेंगे और उनके खिलाफ न्यायालय की अवमानना की कार्रवाई की जायेगी।
- उच्चतम न्यायलय ने आगे कहा कि यदि सरकार ने एजीआर के रीएसेसमेंट की इजाजत दी तो यह न्यायलय के निर्णय की अवमानना होगी और ऐसा करने वाले अधिकारियों के खिलाफ एक्शन लिया जाएगा।
- जस्टिस अरुण मिश्रा, एसए नजीर और एमआर शाह की पीठ ने केंद्र सरकार की उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया जिसमें टेलिकॉम कंपनियों को बकाया चुकाने के लिए 20 साल का समय देने की बात कही गई है।
- उच्चतम न्यायालय ने कंपनियों से 1.47 लाख करोड़ रुपये का सांविधिक बकाया 17 मार्च तक जमा करने को कहा था। इतनी बड़ी राशि के बकाए के भुगतान का कंपनियों की वित्तीय स्थिति पर फर्क पड़ सकता है। अकेले वोडाफोन-आइडिया पर, दूरसंचार विभाग के अनुमान के अनुसार 53,000 करोड़ रुपये का बकाया है। यह कंपनियों के उनके अपने आकलन से बहुत अधिक है।
क्या है मामला?
- पिछले साल उच्चतम न्यायालय ने सरकार को टेलीकॉम कंपनियों से एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) के विवाद से संबंधित 92000 करोड़ रुपये वसूलने की इजाजत दे दी थी। इसके तहत कंपनियों को जुर्माने के साथ साथ ब्याज भी चुकाना था ब्याज को मिलाकर यह राशि 1.47 लाख करोड़ हो जाती है।
- एजीआर वसूले जाने से राहत दिए जाने को लेकर टेलीकॉम कंपनियों ने अदालत में अपील की थी। जिसे न्यायालय ने खारिज कर दिया था साथ ही यह भी कहा था कि इस मामले में अब और मुकदमेबाजी नहीं होगी। बकाया भुगतान की गणना के लिए समय अवधि तय की जाएगी इसके तहत टेलीकॉम कंपनियों को उच्चतम न्यायालय ने 17 मार्च तक पूरी राशि चुकाने का आदेश दिया था।
एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर)
- एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) संचार मंत्रालय के दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा टेलीकॉम कंपनियों से लिया जाने वाला यूजेज और लाइसेंसिग फीस है। इसके दो हिस्से होते हैं- स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज और लाइसेंसिंग फीस, जो क्रमश 3-5 फीसदी और 8 फीसदी होती है।
- असल में दूरसंचार विभाग कहता है कि एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) की गणना किसी टेलीकॉम कंपनी को होने वाले संपूर्ण आय या रेवेन्यू के आधार पर होनी चाहिए, जिसमें डिपॉजिट इंट्रेस्ट और एसेट बिक्री जैसे गैर टेलीकॉम स्रोत से हुई आय भी शामिल हो। दूसरी तरफ, टेलीकॉम कंपनियों का कहना है कि एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) की गणना सिर्फ टेलीकॉम सेवाओं से होने वाली आय के आधार पर होनी चाहिए।
3. सरकार की भोजपुरी, राजस्थानी और भोती भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की पहल
- केन्द्र सरकार भोजपुरी, राजस्थानी और भोती भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए सकारात्मक पहल कर रही है। संसदीय मामलों के कार्य राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि 38 भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु सरकार विचार कर रही है।
- लोकसभा में शून्यकाल के दौरान भारतीय जनता पार्टी के जगदम्बिका पाल ने इन भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा कि 16 देशों में लगभग बीस करोड लोग इन भाषाओं में बातचीत करते हैं।
आठवीं अनुसूची
- संविधान की आठवीं अनुसूची में संविधान द्वारा मान्यताप्राप्त 22 प्रादेशिक भाषाओं का उल्लेख है। इस अनुसूची में आरम्भ में 14 भाषाएँ (असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, मराठी, मलयालम, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगु, उर्दू) थीं।
- बाद में सिंधी को 1967 में 21वें संविधान संशोधन से जोड़ा गया तत्पश्चात् 1992 में 71वें संविधान संशोधन से कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली को शामिल किया गया जिससे इसकी संख्या 18 हो गई। तदुपरान्त बोडो, डोगरी, मैथिली, संथाली को 2003 में 92वें संविधान संशोधन से शामिल किया गया और इस प्रकार इस अनुसूची में 22 भाषाएँ हो गईं।
भोजपुरी, राजस्थानी और भोती भाषाएं
- भोजपुरी भाषा – भोजपुरी भाषा एक आर्य भाषा है और मुख्य रूप से पश्चिम बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश और उत्तरी झारखण्ड के क्षेत्र में बोली जाती है। भोजपुरी हिन्दी की एक उपभाषा या बोली है। भोजपुरी अपने शब्दावली के लिये मुख्यतः संस्कृत एवं हिन्दी पर निर्भर है कुछ शब्द इसने उर्दू से भी ग्रहण किये हैं। भारत में लगभग 3.3 करोड़ लोग भोजपुरी बोलते हैं।पूरे विश्व में भोजपुरी जानने वालों की संख्या लगभग 5 करोड़ है।
- राजस्थानी भाषा – राजस्थानी भाषा राजस्थान में बोली जाने वाली भाषाओं को कहा जाता है। राजस्थानी भाषाऐं भारत में लगभग नौ करोङ लोगो के द्वारा बोली जाती है ।इस भाषा समूह की सर्वाधिक बडी बोली मारवाड़ी है, जो लगभग 4.5 करोङ से 5 करोङ लोगो द्वारा बोली जाती है। हिन्दी, ब्रजभाषा, मेवाती, मारवाड़ी,शेखावाटी, हाड़ौती जैसी कई भाषाओं के मिश्रित झुंड को राजस्थानी भाषा का नाम दिया गया है इसे वर्तमान में देवनागरी में लिखा जाता है।
- भोती भाषा – लद्दाख़ी भारत के लद्दाख क्षेत्र के लेह जिले की प्रमुख भाषा है। इसे भोटी भी कहते हैं।
4. कोरेगांव-भीमा आयोग ने शरद पवार को भेजा सम्मन
- महाराष्ट्र के पुणे जिले में 2018 के कोरेगांव भीमा हिंसा मामले की जांच कर रहे आयोग ने राकांपा प्रमुख शरद पवार को गवाह के तौर पर चार अप्रैल को पेश होने के लिए सम्मन भेजा है। पैनल के वकील आशीष सातपुते ने यह जानकारी दी है।
- सातपुते ने बताया कि आयोग ने तत्कालीन एसपी (पुणे ग्रामीण) सुवेज हक, तत्कालीन अतिरिक्त एसपी संदीप पाखले, तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त, पुणे रवींद्र सेंगांवकर और तत्कालीन जिलाधीश सौरभ राव को भी सम्मन किया है।
- इस साल फरवरी में सामाजिक समूह विवेक विचार मंच के सदस्य सागर शिंदे ने आयोग के समक्ष अर्जी दायर कर 2018 की जातीय हिंसा के बारे में मीडिया में पवार द्वारा दिए गए कुछ बयानों को लेकर उन्हें सम्मन भेजे जाने का अनुरोध किया था।
प्रष्ठभूमि
- गौरतलब है कि कोरेगांव-भीमा युद्ध की 200वीं वर्षगांठ के दौरान एक जनवरी 2008 को कोरेगांव भीमा और आसपास के इलाकों में हिंसा भड़क उठी थी। इसमें पुणे पुलिस ने आरोप लगाया था कि 31 दिसंबर 2017 को ‘एल्गार परिषद सम्मेलन’ में दिए ‘‘उकसावे’’ वाले भाषणों से हिंसा भड़की थी। पुलिस के अनुसार, एल्गार परिषद सम्मेलन के आयोजकों के माओवादियों से संपर्क थे।
- इस हिंसा की जांच हेतु एक आयोग का गठन 1 जनवरी 2018 को किया गया था। जस्टिस जे.एन. पटेल इस आयोग के अध्यक्ष हैं तथा महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य सचिव सुमित मुलिक इसके सदस्य हैं। 5 सितंबर 2018 से इस आयोग ने काम शुरू किया था। अब भी इस हिंसा की जांच जारी है और आयोग को अपनी जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपना बाकी है।
5. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मिला वर्ल्ड सिटी समिट का न्योता
- सिंगापुर की सरकार ने आगामी पांच जुलाई से अपने यहां आयोजित होने वाले “वर्ल्ड सिटीज समिट’ 2020 में शिरकत के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आमंत्रित किया है। उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने बताया कि सिंगापुर की सरकार ने योगी को इस समिट में शामिल होने का न्योता दिया है।
- यह कार्यक्रम दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियों का समाधान करने और उनके विभिन्न समाधान को लेकर अपनी व्यवहारिक जानकारी साझा करने और मूल्यवान साझेदारियां बनाने के लिए नेताओं और उद्योग जगत के विशेषज्ञों को एक मंच पर लाता है।
- 2018 में आयोजित किये गए पिछले समिट में 44 मंत्रियों, 133 मेयरों और शहर के नेताओं ने भाग लिया था। इसके अलावा, 1100 कंपनियों और दुनिया भर के 24,000 से अधिक प्रतिभागियों ने इस आयोजन में भाग लिया था और 26 बिलियन अमरीकी डालर के व्यापारिक सौदों की घोषणा की गई थी।
वर्ल्ड सिटी समिट
- वर्ल्ड सिटीज समिट सिंगापुर में आयोजित होने वाला द्विवार्षिक सम्मेलन है जिसमें सरकारों के शीर्षस्थ नेता और उद्योग क्षेत्र के विशेषज्ञ हिस्सा लेते हैं। वर्ल्ड सिटीज़ समिट की शुरुआत 2008 में शुरू हुई थी 2020 में इसका 7वां संस्करण है।
- इसी के तत्वाधान में वार्षिक वर्ल्ड सिटीज समिट मेयर्स फोरम 2010 में शुरू हुआ और 2020 में इसका 11वां संस्करण है, जबकि वार्षिक वर्ल्ड सिटीज समिट यंग लीडर्स सिम्पोजियम 2014 में शुरू हुआ और इस वर्ष इसका 7वां संस्करण है।
6. एआरसीआई के वैज्ञानिकों ने उपकरण का जीवन काल बढ़ाने के लिए नैनोकम्पोजिट कोटिंग्स का किया विकास
- इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मैटलर्जी एंड न्यू् मैटीरियल्स (एआरसीआई) के वैज्ञानिकों के एक समूह ने नैनोकम्पोजिट कोटिंग्स के आकार-चयनित निक्षेपण (डिपोजिशन) के लिए एक प्रक्रिया विकसित की है। जो इन गतिशील प्रणालियों के घर्षण को कम कर सकती है।
- वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि एक आर्थिक रूप से सस्ती और सरल स्पंदित इलेक्ट्रोप्लेटिंग या इलेक्ट्रोडिपोजिशन प्रक्रिया का उपयोग करते हुए विशेष आकार के सिलिकॉन कार्बाइड (एसआईसी) के सबमाइक्रोन कणों के संसेचन (इम्प्रेग्नेशन) के साथ निकिल टंगस्टन-आधारित कोटिंग्स कम घर्षण गुणांक और अच्छी तेल धारण क्षमता के साथ घिसाई और संक्षारण (करोशन) प्रतिरोध का उत्कृष्ट संयोजन प्रदान कर सकती हैं।
- एआरसीआई समूह द्वारा विकसित कोटिंग्स घर्षण को कम करती है और बाजार में उपलब्ध इसी प्रकार की अनेक घिसाई रोधी कोटिंग्स की तुलना में नमक-स्प्रे के कारण संक्षारण को ज्यादा रोक सकती हैं।
क्या है इलेक्ट्रोडिपोजिशन?
- इलेक्ट्रोडिपोजिशन को इलेक्ट्रोप्लेटिंग भी कहा जाता है, इसमें धातु के हिस्सों को इलेक्ट्रोलाइट बाथ घोल में डुबोया जाता है, इसे आमतौर पर आसुत जल और अन्य योजकों के मिश्रण में निकिल और टंगस्टन के कणों को घोलकर तैयार किया जाता है।
- इस घोल में डायरेक्ट करंट (डीसी) प्रभावित किया जाता है और मुलम्मा चढ़ाने वाले टुकड़े पर निकिल और मिश्र धातु का जमाव हो जाता है। इलेक्ट्रोडिपोजिशन के दौरान इस घोल में धात्विक आयनों की गति और जमाव के कारण कैथोड़ सतह पर डिफ्यूज़न की परत का निर्माण हो जाता है।
- आकार-चयनित इलेक्ट्रोडिपोजिशन के लिए, पारंपरिक डायरेक्ट करंट (डीसी) जमाव के स्थान पर पल्स करंट (पीसी) इलेक्ट्रोडिपोजिशन का उपयोग किया गया था। यह करंट का रूक-रूक कर होने वाला अनुप्रयोग है। कुछ आयामों और अवधि की स्पंदित धाराओं ने वांछित गुणों की कोटिंग्स के जमाव में मदद की, जो पारंपरिक डीसी प्लेटिंग के लिए संभव नहीं होगा।
7. असम में छह महीने के लिए अफस्पा बढ़ायी गयी
- असम सरकार ने कानून व्यवस्था की समीक्षा करने के बाद सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) को पूरे राज्य के लिए 28 फरवरी से अगले छह महीने के लिए बढ़ा दिया है। इस अधिनियम के अंतर्गत सुरक्षाबलों को किसी भी व्यक्ति को बिना कोई नोटिस दिए उसकी तलाशी लेने और गिरफ्तारी का अधिकार मिल जाता है। राज्य में अफस्पा नवंबर 1990 से बना हुआ है।
- इस हेतु जारी अधिसूचना में कहा गया है कि पिछले छह महीने की कानून व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा में राज्य के कुछ खास हिस्सों में चरमपंथी तत्वों की मौजूदगी का संकेत मिला है। अधिसूचना के अनुसार वैसे तो कुछ चरमपंथी संगठनां के सदस्यों ने बड़ी संख्या में आत्मसमर्पण किया है लेकिन कुछ अन्य संगठनों ने संशोधित नागरिकता कानून बनाये जाने की पृष्ठभूमि में स्थिति का फायदा उठाने का प्रयास किया है और गुमराह युवकों को अपने पाले में लाने की कोशिश की है।
सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम
- सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (AFSPA – Armed Forces Special Power Act) 1958 में एक अध्यादेश के माध्यम से लाया गया था तथा तीन माह के भीतर ही इसे कानूनी जामा पहना दिया गया था।
- सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) की जरूरत उपद्रवग्रस्त पूर्वोत्तर में सेना को कार्यवाही में मदद के लिए पारित किया गया था इसे 1972 में कुछ संशोधनों के बाद असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नगालैंड सहित समस्त पूर्वोत्तर भारत में लागू किया गया था। जब 1989 के आस पास जम्मू & कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो 1990 में इसे वहां भी लागू कर दिया गया था।
- AFSPA के तहत केंद्र सरकार राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर किसी राज्य या क्षेत्र को अशांत घोषित कर वहाँ केंद्रीय सुरक्षा बलों को तैनात करती है।
- इस कानून की धारा-4 के अनुसार, सुरक्षा बल का अधिकारी संदेह होने पर किसी भी स्थान की तलाशी ले सकता है और खतरा होने पर उस स्थान को नष्ट करने के आदेश दे सकता है। इस कानून के तहत सेना के जवानों को कानून तोड़ने वाले व्यक्ति पर गोली चलाने का भी अधिकार है।
- सशस्त्र बल किसी भी व्यक्ति को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर सकते हैं। गिरफ्तारी के दौरान वे किसी भी तरह की शक्ति का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- वर्तमान में जम्मू और कश्मीर, असम, नागालैंड, मणिपुर (इम्फाल नगरपालिका क्षेत्र को छोड़कर), अरुणाचल प्रदेश के 3 जिलों तिरप, चांगलांग और लोंगडिंग के साथ-साथ असम से लगने वाले अरुणाचल प्रदेश के अधिकार क्षेत्र वाले के 8 पुलिस स्टेशनों में अभी भी लागू है।
8. उत्तराखंड में डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मियों पर एस्मा लागू
- उत्तराखंड सरकार ने कोरोना वायरस के मद्देनजर चिकित्सा स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा विभाग में एस्मा लागू कर दी है। इसके तहत सभी चिकित्सकों और कार्मिकों की सेवाओं को अत्यावश्यक सेवाएं घोषित करते हुए छह माह की अवधि तक के लिए उनकी हड़ताल निषिद्ध कर दी है।
- सरकार ने राज्यपाल की स्वीकृति के बाद उत्तर प्रदेश अति आवश्यक सेवाओं का अनुरक्षण अधिनियम 1966 के तहत स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टरों, पैरामेडिकल व अन्य कर्मचारियों की हड़ताल पर रोक लगाई है।
- उत्तराखंड में इस समय कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले संदिग्धों के मामले बढ़ रहे हैं। प्रदेश सरकार पहले से ही इसे महामारी घोषित कर चुकी है। इसकी रोकथाम के लिए सरकार हर संभव कदम उठा रही है। इस समय प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण को लेकर सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर हैं।
क्या है एस्मा?
- आवश्यक सेवा अनुरक्षण कानून (एस्मा) हड़ताल को रोकने के लिये लगाया जाता है। विदित हो कि एस्मा लागू करने से पहले इससे प्रभावित होने वाले कर्मचारियों को किसी समाचार पत्र या अन्य दूसरे माध्यम से सूचित किया जाता है। एस्मा अधिकतम छह महीने के लिये लगाया जा सकता है और इसके लागू होने के बाद अगर कोई कर्मचारी हड़ताल पर जाता है तो वह अवैध और दण्डनीय है।
- सरकारें एस्मा लगाने का फैसला इसलिये करती हैं क्योंकि हड़ताल की वजह से लोगों के लिये आवश्यक सेवाओं पर बुरा असर पड़ने की आशंका होती है। जबकि आवश्यक सेवा अनुरक्षण कानून यानी एस्मा वह कानून है, जो अनिवार्य सेवाओं को बनाए रखने के लिये लागू किया जाता है।
- एस्मा के रूप में सरकार के पास एक ऐसा हथियार है जिससे वह जब चाहे कर्मचारियों के आंदोलन को कुचल सकती है, विशेषकर हड़तालों पर प्रतिबंध लगा सकती है और बिना वारंट के कर्मचारी नेताओं को गिरफ्तार कर सकती है। एस्मा लागू होने के बाद यदि कर्मचारी हड़ताल में शामिल होता है तो यह अवैध एवं दंडनीय माना जाता है।
9. पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई राज्यसभा के लिए नामित
- सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया है। बात दें कि पूर्व में नामित किए गए सदस्य केटीएस तुलसी के सेवानिवृत्त होने के कारण रिक्त हुए पद को भरने के लिए राज्यसभा में पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को नामित किया गया है।
- गृहमंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के मुताबिक भारत के संविधान के अनुच्छेद 80 के खंड 3 के साथ पठित खंड 1 के उपखंड क की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति कोविंद ने गोगोई को नामित किया है।
- संविधान के अनुच्छेद 80 में राज्य सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित की गई है, जिनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामनिर्देशित किए जाते हैं राष्ट्रपति द्वारा नामनिर्देशित किए जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा जैसे विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है।
रंजन गोगोई
- रंजन गोगोई का जन्म 18 नवंबर 1954 को असम में हुआ था। गोगोई पूर्वोत्तर के पहले व्यक्ति बने जिन्हें भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। उनके पिता केशब चंद्र गोगोई असम के मुख्यमंत्री रहे थे। उन्होंने 1978 में बतौर एडवोकेट अपने कार्यकाल की शुरुआत की थी। अपने कॅरियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने गुवाहाटी होईकोर्ट में वकालत की थी।
- सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई बीते साल 17 नवंबर 2019 को सेवानिवृत्त हुए हैं। 15 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में उनके कार्य का आखिरी दिन था। पूर्व सीजेआई गोगोई ने 3 अक्तूबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का पद ग्रहण किया था।
- जस्टिस गोगोई का 16 दिसंबर 2015 को दिया गया एक आदेश उन्हें इतिहास में खास मुकाम पर दर्ज कराता है। देश में पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश के जरिए किसी राज्य का लोकायुक्त नियुक्त किया था। जस्टिस गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सेवानिवृत न्यायाधीश जस्टिस वीरेन्द्र सिंह को उत्तर प्रदेश का लोकायुक्त नियुक्त करने का आदेश जारी किया था।
- न्यायमूर्ति गोगोई ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि सर्वोच्च अदालत के आदेश का पालन करने में संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों का नाकाम रहना बेहद अफसोसजनक और आश्चर्यचकित करने वाला है। कोर्ट को लोकायुक्त की नियुक्ति का स्वयं आदेश इसलिए देना पड़ा था क्योंकि कोर्ट के बार बार आदेश देने के बावजूद लोकायुक्त की नियुक्ति पर प्रदेश के मुख्यमंत्री, नेता विपक्ष और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश में सहमति नहीं बन पाई थी।
10. कोरोना वायरस के बावजूद विंबलडन की तय कार्यक्रम के अनुसार टूर्नामेंट की योजना
- कोरोना वायरस महामारी के कारण भले ही फ्रेंच ओपन टेनिस टूर्नामेंट को आगे खिसका दिया गया है लेकिन विंबलडन के आयोजक अब भी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार टूर्नामेंट आयोजित करने की योजना बना रहे हैं।
- आल इंग्लैंड क्लब के प्रमुख इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि इस घातक बीमारी से खेल कैलेंडर बुरी तरह प्रभावित है लेकिन विंबलडन के आयोजकों को अब भी उम्मीद है कि अगर वायरस का प्रकोप कम होता है तो यह ग्रास कोर्ट टूर्नामेंट सही समय पर शुरू होगा। विदित है कि इस वर्ष का विंबलडन 29 जून से 12 जुलाई के बीच खेला जाना है।
- फ्रेंच ओपन के आयोजकों ने घोषणा की थी कि क्लेकोर्ट टूर्नामेंट अब मई के बजाय सितंबर में आयोजित किया जाएगा। वर्ष का दूसरा ग्रैंडस्लैम 24 मई से शुरू होना था लेकिन अब इसका आयोजन 20 सितंबर से चार अक्टूबर के बीच होगा।
टेनिस की प्रमुख प्रतियोगिताएँ
- टेनिस की 4 प्रमुख वार्षिक प्रतियोगिताओं को ग्रैंड स्लैम कहते है –
- 1) आस्ट्रेलियाई ओपन
- 2) फ्रेंच ओपन
- 3) विबंलडन
- 4) यूएस ओपन
- इनमें यदि वार्षिक कैलेण्डर की बात करे तो सबसे पहले आस्ट्रेलियाई ओपन होता है जो जनवरी में होता है। उसके बाद फ्रेंच ओपन होता है जो मई में होता है इसके बाद विबंलडन (इंग्लैण्ड) आयोजित किया जाता है जो जून माह में होता है। अन्त में यूएस ओपन आयोजित किया जाता है जो अगस्त-सितम्बर में आयोजित होता है।