1. पूर्वोत्तर सतत विकास लक्ष्य सम्मेलन 2020
- पूर्वोत्तर सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) सम्मेलन – 2020 गुवाहाटी में संपन्न हो गया है। इसकी शुरुआत 24 फरवरी, 2020 को गुवाहाटी स्थित असम प्रशासनिक स्टॉफ कॉलेज में हुई थी तथा समापन 26 फरवरी 2020 को हुआ था।
- इस दौरान तीन दिवसीय सम्मेलन में प्रस्तुत सभी सिफारिशों और सुझावों को समग्र रूप से आगे बढ़ाने के लिए संक्षेप में प्रस्तुत किया गया। सभी आठ पूर्वोत्तर राज्यों के वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने एसडीजी को लागू करने और इसके लक्ष्य हासिल करने के लिए आगे के उपायों पर विस्तार विचार-विमर्श भी किया।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र में सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की प्रक्रिया को गति देने तथा इनके समाधान तलाशने के उद्देश्य से इस सम्मेलन का आयोजन पूर्वोत्तर विकास परिषद्, असम सरकार और टाटा ट्रस्ट के साथ मिलकर नीति आयोग द्वारा किया गया था। यूएनडीपी तथा आरआईएस सम्मेलन में सहयोग कर रहे थे।
- नीति आयोग को राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तर पर एसडीजी को अपनाने और उसकी निगरानी करने का अधिकार प्राप्त है। 2030 तक एसडीजी हासिल करने के लिए इस दशक की कार्रवाई में पूर्वोत्तर क्षेत्र की प्रगति महत्वपूर्ण है और यह सम्मेलन नीति आयोग के उप-राष्ट्रीय स्तर पर साझेदारी को बढ़ावा देने के लगातार किए जा रहे प्रयासों का हिस्सा है।
सतत विकास लक्ष्य
- वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की 70वीं बैठक में सदस्य देशों द्वारा ‘2030 सतत विकास हेतु एजेंडा’ के लिए 17 विकास लक्ष्य अर्थात् एसडीजी (Sustainable Development goals-SDGs) तथा 169 प्रयोजन अंगीकृत किये गए थे। एसडीजी ने MDGs (Millennium Development Goals) का स्थान लिया था जिनकी मियाद 2015 में खत्म हो गई थी।
17 विकास लक्ष्य निम्न हैं –
- पूरे विश्व से गरीबी के सभी रूपों की समाप्ति।
- भूख की समाप्ति, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा।
- सभी आयु के लोगों में स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वस्थ जीवन को बढ़ावा।
- समावेशी और न्यायसंगत गुणवत्ता युक्त शिक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही सभी को सीखने का अवसर देना।
- लैंगिक समानता प्राप्त करने के साथ ही महिलाओं और लड़कियों को सशक्त करना।
- सभी के लिए स्वच्छता और पानी के सतत प्रबंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करना।
- सभी के लिए निरंतर समावेशी और सतत आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोजगार, और बेहतर कार्य को बढ़ावा देना।
- लचीले बुनियादी ढांचे, समावेशी और सतत औद्योगीकरण को बढ़ावा।
- देशों के बीच और भीतर असमानता को कम करना।
- सुरक्षित, लचीले और टिकाऊ शहर और मानव बस्तियों का निर्माण।
- स्थायी खपत और उत्पादन पैटर्न को सुनिश्चित करना।
- जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करना।
- स्थायी सतत विकास के लिए महासागरों, समुद्र और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और उपयोग।
- सतत उपयोग को बढ़ावा देने वाले स्थलीय पारिस्थितिकीय प्रणालियों, सुरक्षित जंगलों, भूमि क्षरण और जैव विविधता के बढ़ते नुकसान को रोकने का प्रयास करना।
- सतत विकास के लिए शांतिपूर्ण और समावेशी समितियों को बढ़ावा देने के साथ ही सभी स्तरों पर इन्हें प्रभावी, जवाबदेह बनना ताकि सभी के लिए न्याय सुनिश्चित हो सके।
- सतत विकास के लिए वैश्विक भागीदारी को पुनर्जीवित करने के अतिरिक्ति कार्यान्वयन के साधनों को मजबूत बनाना
2. राष्ट्रीय वयोश्री योजना (आरवीवाई) और एडीआईपी योजना
- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सामाजिक अधिकारिता शिविर और बड़े वितरण शिविर में राष्ट्रीय वयोश्री योजना (आरवीवाई) और एडीआईपी योजना के अंतर्गत दिव्यांगजनों को 29 फरवरी, 2020 को सहायक यंत्र और उपकरण वितरित किये।
- इस कार्यक्रम का आयोजन सामाजिक न्याय मंत्रालय द्वारा प्रयागराज (उत्तरप्रदेश) स्थित परेड ग्राउंड में हुआ था। आरवीवाई और एडीआईपी योजनाओँ के अंतर्गत यह सबसे बड़ा वितरण शिविर था, जिसमें सबसे अधिक संख्या में लाभान्वितों को शामिल किया गया, साथ ही इसमें वितरित किए जाने वाले उपकरणों और सहायता यंत्रों की संख्या तथा उनका मूल्य सबसे अधिक था।
राष्ट्रीय वयोश्री योजना (आरवीवाई)
- ‘राष्ट्रीय वयोश्री योजना’ का शुभारंभ आंध्र प्रदेश के नेल्लोर ज़िले में 01 अप्रैल 2017 को किया गया था। इस योजना के अंतर्गत वरिष्ठ नागरिकों के जीवन यापन के लिये आवश्यक उपकरणों को शिविरों के माध्यम से वितरित किया जाता है।
- ये सहायक उपकरण उच्च गुणवत्ता से युक्त होते है और इन उपकरणों को भारत मानक ब्यूरो द्वारा तय मापदंडों के अनुसार तैयार किया जाता है। यह सार्वजनिक क्षेत्र की केन्द्रीय योजना है, जिसके लिये पूर्ण रूप से केन्द्र सरकार द्वारा अनुदान दिया जाता है।
एडीआईपी योजना (Assistance to Disabled persons for purchasing / fitting of aids / appliances)
- सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण हेतु सहायक सामग्री और उपकरण (एडीआईपी योजना) योजना शुरू की गई थी। इसे मंत्रालय और गैर-सरकारी संगठनों, राष्ट्रीय संस्थानों तथ ALIMCO (एक सार्वजनिक उपक्रम) जैसी कार्यान्वयन एजेंसियों के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है।
3. भारतीय तटरक्षक बल के अपतटीय निगरानी पोत आई सी जी एस वरद का जलावतरण
- भारतीय तटरक्षक बल के अपतटीय निगरानी पोत आई सी जी एस वरद का हाल ही में जलावतरण किया गया है। इस अवसर पर चेन्नई बंदरगाह पर आयोजित समारोह में केन्द्रीय जहाजरानी मंत्री मन्सुख मंडाविया और तटरक्षक बल के महानिदेशक के नटराजन मौजूद थे।
- आई सी जी एस वरद ओड़िसा के पारादीप में तैनात होगा और तटरक्षक बल के उत्तर पूर्व क्षेत्र की कमान मे कार्य करेगा। यह पोत 98 मीटर लंबा है। इसे एल एंड टी ने डिजाइन और तैयार किया है।
- तटरक्षक बल के निर्देशों के अनुसार यह जलपोत चेन्नई के निकट कट्टुपल्ली में एल एंड टी के यार्ड में बनाया गया है। इस पर आधुननिक नौवहन और संचार उपकरण, सेंसर तथा मशीनरी लगी हैं। पोत पर तीस मिलीमीटर और 12 दशमलव सात मिलीमीटर की तोप लगी हैं।
- इस पोत के साथ ही भारतीय तटरक्षक बल के पास 147 जलपोत और नौकाएं तथा 62 विमान हो गये हैं। विभिन्न भारतीय शिपयार्ड में 58 जलपोत और हिंदुस्तान एरोनोटिक्स लिमिटेड बेंगलूरू में 16 अत्याधुनिक हेलीकॉप्टर निर्माणाधीन है।
भारतीय तटरक्षक बल
- 1977 में संघीय मंत्रिमंडल ने भारतीय नौसेना से स्थानांतरित दो पोतों एवं पांच गश्ती नौकाओं के साथ तटरक्षक के स्थापना की स्वीकृति प्रदान की। इस प्रकार 01 फरवरी 1977 को भारत के जलीय एवं अनन्य आर्थिक क्षेत्र की निगरानी हेतु मात्र सात पोतों के बेड़े के साथ भारतीय तटरक्षक का आविर्भाव हुआ था।
- कार्य – i) तटरक्षक पोत एवं वायुयान, पूर्वी एवं पश्चिमी दोनों क्षेत्रों के अपतटीय विकास क्षेत्र की नियमित निगरानी का उत्तरदायित्व संभालते हैं।
ii) तटरक्षक पोत एवं तटवर्ती अवस्थान समुद्र में मछुआरा समुदाय की सुरक्षा के लिए अपनाये जाने वाले विभिन्न उपायों के विषय में जानकारी प्रदान करते हैं। नौकाओं एवं फिशिंग गियर की मरम्मत एवं रखरखाव के विषय में भी जानकारी प्रदान करते है।
iii) तटरक्षक यूनिटों द्वारा चलाये जा रहे खोज एवं बचाव प्रयासों में क्षेत्रीय मुख्यालय के साथ स्थित समुद्री बचाव समन्वय केंद्र, सहायता प्रदान करते हैं ।
- भारतीय तटरक्षक बल मुख्यालय – नई दिल्ली
- महानिदेशक – कृष्णस्वामी नटराजन
भारतीय तटरक्षक बल की स्थापना के कारण
- भारतीय नौसेना,1960 से ही भारतीय जलीय क्षेत्र में समुद्री कानून को लागू करने तथा उपक्रमों की सुरक्षा एवं संरक्षा का दायित्व निर्वहन करने हेतु एक सहायक संगठन की स्थापना का अनुरोध करती आ रही थी। इन कामों के लिए आधुनिक एवं उच्च क्षमता वाले नौसेना के यु्द्धपोतों एवं उपक्रमों की तैनाती स्पष्ट रूप से किफायती विकल्प नहीं था और भारत सरकार ने यथासमय नौसेना के इस तर्क को स्वीकार कर लिया था।
- राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंचाने वाली समुद्रीय तस्करी भी उन कारणों में से एक है, तत्समय सीमा शुल्कं एवं मात्स्यिकी विभाग जैसी एजेंसियों के पास इतनी सामर्थ्य नहीं थी कि वह वृहद् रूप से फैली तस्करी तथा भारतीय जल में अवैध रूप से प्रवेश करने वाली नौकाओं की गतिविधियों को रोक सकें। इस पृष्ठभूमि में तस्करी के बढ़ती हुई इस समस्या से निपटने के लिए सन् 1970 में नाग कमेटी की स्थापना की गई। इस समिति ने अपनी सिफारिश में तश्करी की गतिविधियों से निजात पाने के लिए एक अलग से समुद्री बल की सिफारिश की।
- 1972 में समुद्री कानून पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते के अनुसार सभी तटीय देशों को अनन्य आर्थिक क्षेत्र प्रदान किया गया। तत्पश्चात् विस्तृत रूप से फैले हुए अनन्य आर्थिक क्षेत्र पर अपना सार्वभौमिक अधिकार का दावा करते हुए भारत की संघीय सरकार ने भारतीय समुद्री क्षेत्र अधिनियम 1976 का निर्माण किया। भारत ने एक बार में 2.01 मिलियन वर्ग किमी समुद्री क्षेत्र पर सभी जैविक व गैर-जैविक संसाधनों का व्यापक संदोहन करने के लिए अधिकार ग्रहण किया। इस विस्तृत क्षेत्र की सुरक्षा की आवश्यकता महसूस की गई इसीलिए इस बल की स्थापना हुई।
- मुंबई (बाम्बे) हाई में तेल की खोज के फलस्वरूप अपतटीय क्षेत्र में बहुमूल्य संयंत्र खड़े किए गये थे। जिसकी सुरक्षा भी अनिवार्य थी। इस प्रकार भारत के महत्वपू्र्ण औद्योगिक क्षेत्रों एवं आर्थिक हितों की सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन के उपायों की आवश्यकता महसूस की गई।
- अतैव सरकार ने सितंबर 1974 में के एफ रुस्तम जी (भूतपूर्व महानिदेशक सीमा सुरक्षा बल),भारतीय पुलिस सेवा, की अध्यक्षता में एक समिति की नियुक्ति की। समिति का कार्य तस्करी एवं अवैध समुद्री गतिविधियों की रोकथाम में व्याप्त वर्तमान प्रणाली की कमियों को उजागर करने तथा भारत की समुद्री संसाधनों की सुरक्षा हेतु उपायों को सुझाने का था। समिति ने सन् 1975 में को अपनी रिपोर्ट के द्वारा शांति काल के दौरान समुद्री क्षेत्र की देखभाल एवं सुरक्षा के लिए तटरक्षक जैसे संगठन की स्थापना हेतु जोरदार सिफारिश की।
4. भारतीय स्कूलों में शुरू होगी कृत्रिम बौद्धिकता प्रणालियां
- देश की युवा प्रतिभाओं को आधुनिक प्रौद्योगिकियों के जरिये शक्ति संपन्न बनाने के लिए नीति आयोग, अटल नवाचार मिशन ने नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज (नेस्कॉम) के सहयोग से भारतीय स्कूलों में छात्रों के लिए कृत्रिम बौद्धिकता आधारित प्रणालियों की शुरूआत की है।
- नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा कि मशीन लर्निंग और कृत्रिम बौद्धिकता के जरिये भारत वार्षिक रूप से अपने सकल घरेलू उत्पाद में 1.3 प्रतिशत का इजाफा कर सकता है। उन्होंने कहा कि कृत्रिम बौद्धिकता प्रणाली बहुत महत्वपूर्ण है और छोटी आयु से ही इसका शिक्षण दिया जाना चाहिए।
- कृत्रिम बौद्धिकता के जरिये तपेदिक, कैंसर इत्यादि रोगों के विषय में उपलब्ध जानकारी में सुधार होगा और कार्बन उत्सर्जन के मामले में चुनौतियों का समाधान कर पायेंगे।
अटल नवाचार मिशन (एआईएम)
- भारत सरकार स्कूलों के छात्रों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी का एक्सपोजर प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है ताकि उन्हें भविष्य के प्रौद्योगिकी प्लेटफार्मों पर उजागर किया जा सके। सरकार ने नीति आयोग के तत्वाधान में 2018 में अटल इनोवेशन मिशन (एआईएम) की स्थापना की थी।
- अटल इनोवेशन मिशन (AIM) स्थापित करने का उद्देश्य वैज्ञानिक सोच पैदा करना और युवा मन के बीच जिज्ञासा और नवाचार की भावना को विकसित करना है । अटल इनोवेशन मिशन (AIM) स्कूलों में अटल टिंकरिंग प्रयोगशालाओं (एटीएल) का नेटवर्क स्थापित करने की सुविधा प्रदान करता है।
- इस योजना का उद्देश्य युवा मन में जिज्ञासा, रचनात्मकता और कल्पना को बढ़ावा देना और माइंड-सेट, कम्प्यूटेशनल थिंकिंग, सीखने में अनुकूलन, भौतिक कंप्यूटिंग, तेजी से गणना, माप आदि के लिए उनमें कौशल पैदा करना है। इसके लिए कुल 14,916 स्कूलों का चयन किया गया है और जिसमें 3000 से ज्यादा स्कूलों को अटल टिंकरिंग प्रयोगशालाओं (एटीएल) की स्थापना के लिए ग्रांट इन एड (Grant in aid) दिया गया है।
नैसकॉम(NASSCOM – National Association of Software and Services Companies)
- नैसकॉम भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO) उद्योग का वैश्विक गैर-लाभकारी व्यापार संगठन है यह सॉफ्टवेयर और सेवाओं में व्यापार की सुविधा प्रदान करता है और सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी में शौध प्रगतियों को प्रोत्साहित करता है।
- इस संस्थान की स्थापना 1988 में हुई थी यह भारतीय सोसाइटी अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत है और इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। वर्तमान में इसकी प्रेसिडेंट देबजानी घोष हैं।
- बेंगलुरू, चेन्नई, हैदराबाद, कोच्चि, कोलकाता, मुंबई, पुणे और तिरुवनंतपुरम में इसके क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं। नैसकॉम की सदस्य कंपनियां सॉफ्टवेयर विकास, सॉफ्टवेयर सेवाओं, सॉफ्टवेयर उत्पादों, आईटी-सक्षम/बीपीओ सेवाओं और ई-कॉमर्स के क्षेत्र में कार्यरत्त हैं।
- स्कूली स्तर पर अटल नवाचार मिशन देश से सभी जिलों में अटल टिंकरिंग लैब (एटीएल) की स्थापना कर रहा है। अब तक अटल नवाचार मिशन ने देश के 14,916 स्कूलों का चयन किया है, जहां एटीएल स्थापित किये जायेंगे।
5. अनुसूचित जनजाति के जन प्रतिनिधियों के लिए क्षमता सृजन कार्यक्रम तथा 1000 जल स्रोत कार्यक्रम लॉन्च
- केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में एक कार्यक्रम में स्थानीय स्वशासन में अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधियों के क्षमता सृजन के लिए कार्यक्रम लॉन्च किया। इसके साथ-साथ उन्होंने 1000 जल स्रोत कार्यक्रम तथा जल स्रोतों के जलविज्ञान तथा रासायनिक गुणों के साथ जीआईएस आधारित जलस्रोत (स्प्रिंग) एटलस पर ऑनलाइन पोर्टल भी लॉन्च किया।
अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधियों के क्षमता सृजन के लिए कार्यक्रम
- इसका उद्देश्य क्षमता सृजन पहल का उद्देश्य स्थानीय सरकार के स्तर पर जनजातीय प्रतिनिधियों को उनकी निर्णय क्षमता में वृद्धि करके सशक्त बनाना है। जनजातीय विकास से संबंधित अन्य विषयों में इसका फोकस जनजातीय आबादी की रक्षा और उनके अधिकारों को प्रोत्साहन और कल्याण के संवैधानिक तथा कानूनी प्रावधानों पर है।
- यह कार्यक्रम नियोजन, क्रियान्वयन तथा सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों की निगरानी में जनजातीय प्रतिनिधियों की बढ़ती भागीदारी सुनिश्चित करेगा। विकास प्रक्रिया में उनकी बेहतर भागीदारी से जनजातीय कार्यक्रमों की बेहतर प्राथमिकता सुनिश्चित होगी।
- स्थानीय स्तर पर विकास कार्यक्रमों में प्रत्यक्ष रूप से भागीदारी करने वाले जनप्रतिनिधियों के क्षमता सृजन से समुदायों तथा क्षेत्रों के बीच विकास के अंतर को पाटने में काफी मदद मिलेगी। इससे विभिन्न विकास और कल्याणकारी कार्यक्रमों को कारगर तथा बेहतर तरीके से लागू करने में मदद मिलेगी और परिणामों में सुधार होगा
1000 जल स्रोत कार्यक्रम
- जल स्रोत भूजल के प्राकृतिक स्रोत हैं और भारत सहित पूरे विश्व के पर्वतीय क्षेत्रों में इनका इस्तेमाल किया गया है। लेकिन मध्य और पूर्वी भारत के 75 प्रतिशत जनजातीय आबादी वाले क्षेत्र में जल स्रोतों को मान्यता नहीं दी गई है और उनका उपयोग कम किया गया है। इस कार्यक्रम से जनजातीय क्षेत्रों में जल की प्राकृतिक कमी की समस्या से निपटने में बारहमासी जल स्रोत की क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी।
- इस पहल के अंतर्गत ओडिशा के तीन जिलों- कालाहांडी, कंधमाल तथा गजपति- के ग्रामीण क्षेत्र से 70 जनजातीय युवाओं को बिना जूते के जलविज्ञानी के रूप में प्रशिक्षित किया गया है। इन युवाओं को जल स्रोतों की पहचान और मैपिंग के लिए पारंपरिक और वैज्ञानिक ज्ञान तथा अपनी आबादी वाले क्षेत्रों में पुनर्जीवन तथा संरक्षण कार्यक्रम को सम्मिलित करके प्रशिक्षित किया गया है।
- 1000 जल स्रोत कार्यक्रम का उद्देश्य देश के कठिन और दुर्गम ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे जनजातीय सुमदाय के लिए सुरक्षित और पर्याप्त जल तक पहुंच में सुधार करना है। यह प्राकृतिक जल स्रोतों के इर्द-गिर्द एकीकृत समाधान है।
- इसमें पाइप पेय जल सप्लाई के लिए अवसंरचना का प्रावधान, सिंचाई जल का प्रावधान, सामुदायिक नेतृत्व वाले संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम तथा घर के पीछे बागानों के लिए जल का प्रावधान और जनजातीय लोगों के लिए सतत आजीविका अवसर का सृजन शामिल हैं।
- जीआईएस आधारित जल स्रोत एटलस पर ऑनलाइन पोर्टल विकसित किया गया है ताकि ऑनलाइन प्लेटफार्म से सहज रूप में इन आंकड़ों को प्राप्त किया जा सके। स्प्रिंग एटलस पर 170 जल स्रोत अपलोड किए गए हैं।
6. प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत चालू वित्त वर्ष में 80,000 सूक्ष्म उद्यमों की सहायता की जाएगी
- केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्री नितिन गडकरी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में सभी बैंकों के वरिष्ठ प्रबंधन के साथ एक बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें कम पूंजी निवेश से भारी संख्या में रोजगार जुटाने वाली एमएसएमई मंत्रालय की कुछ प्रमुख योजनाओं की समीक्षा की गई।
- इस बैठक में एमएसएमई मंत्रालय की प्रमुख योजना प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) पर ध्यान केन्द्रित किया गया जो कि क्रेडिट से जुड़ी एक सहायता योजना है।
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी)
- प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) एक क्रेडिट से जुड़ी सहायता योजना है जो सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना के माध्यम से स्वरोजगार को बढ़ावा देती है। इसमें एमएसएमई मंत्रालय के माध्यम से सरकार विनिर्माण क्षेत्र में 25 लाख और सेवा क्षेत्र में 10 लाख रुपये तक के ऋण पर 35 प्रतिशत तक छूट देती है।
- इस योजना के तहत बड़ी संख्या में उद्यमों की स्थापना में मदद करने के लिए बैंकों ने अपना हाथ बढाया है। पिछले वित्तीय वर्ष में ऐसे उद्यमों की सहायता में दो गुनी बढ़ोत्तरी हुई है और 73,000 सूक्ष्म उद्यमों की सहायता की गई है।
- इस योजना को और बढ़ावा देने के लिए चालू वित्त वर्ष में 80,000 इकाइयों के प्रतिष्ठानों की सहायता करने का लक्ष्य रखा गया है। अभी तक 46,000 इकाइयों को विभिन्न बैंकों द्वारा ऋण उपलब्ध करा दिए गए हैं। इस बैठक में बैंकों से पूर्वोत्तर क्षेत्र पर विशेष ध्यान देने के लिए कहा गया है।
क्या है समस्या?
- बैंकों द्वारा खारिज किए गए आवेदनों के डेटा विश्लेषण से पता चला कि 11 प्रतिशत प्रस्ताव खारिज कर दिए जाते हैं क्योंकि पीएमईजीपी के तहत स्थानीय बैंकों द्वारा लक्ष्य पूरे कर लिए जाते हैं।
- इस मुद्दे को हल करने के लिए, इस बैठक में बैंकों से अनुरोध किया गया कि वे योजना के तहत ऋण में वृद्धि करें और न्यूनतम लक्ष्य तय करने की अपनी नीति को संशोधित करें, ताकि सभी योग्य आवेदनों की ऋण मंजूरी पर विचार किया जा सके।
7. मोहिउद्दीन यासीन मलेशिया के नये प्रधानमंत्री नामित
- पूर्व गृह मंत्री मोहिउद्दीन यासीन को मलेशिया का नया प्रधानमंत्री नामित किया गया है। शाही अधिकारियों ने यह जानकारी दी है। इस कदम से महातिर मोहम्मद के शासन का अंत हो गया है और आरोपों से घिरी पार्टी के सत्ता में लौटने के संकेत मिलते दिख रहे हैं।
- इसी के साथ महातिर के प्रधानमंत्री के तौर पर इस्तीफा देने और उनकी सरकार के गिरने के बाद एक हफ्ते तक चले सियासी संकट के भी समाप्त होने की संभावना है।
- मोहिउद्दीन के गठबंधन में देश के मुस्लिम बहुल लोगों का वर्चस्व है और इसमें घोटालों के आरोपों से घिरी पूर्व नेता नजीब रजाक की पार्टी यूनाइटेड मलय नेशनल ऑर्गनाइजेशन (यूएमएनओ) भी शामिल है।
- पूर्व में महातिर के सहयोगी रहे मोहिउद्दीन ने सत्ता में आने की चाह में यूएमएनओ से हाथ मिलाया। उनके गठबंधन में कट्टर मुस्लिम पार्टी भी शामिल है जो इस्लामी कानूनों पर जोर देती है।
प्रष्ठभूमि
- मौजूदा संकट उस वक्त पैदा हुआ जब महातिर और अनवर इब्राहिम का सत्तारूढ़ “पैक्ट ऑफ होप” गठबंधन एक हफ्ते पहले टूट गया। इस गठबंधन ने दो साल पहले नजीब की सरकार के खिलाफ ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी।
- गौरतलब है कि महातिर और अनवर के संबंध पहले से भी अच्छे नहीं रहे हैं और यहां की सियायत में दोनों पुराने प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन 2018 के चुनाव में उन्होंने हाथ मिला लिया था।
- 2018 के चुनाव में जब पैक्ट ऑफ होप गठबंधन को जीत मिली थी, तब उसमें यह तय हुआ था कि कुछ समय बाद सत्ता अनवर को सौंपी जाएगी, लेकिन बाद में महातिर की पार्टी इससे मुकर गई थी। महातिर विपक्षी पार्टियों के साथ मिलकर फिर से सत्ता में वापसी के प्रयास कर रहे थे।
महातिर के समय भारत और मलेशिया के संबंध
- पिछले वर्ष कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 और धारा 35-A के अहम प्रावधानों को निरस्त करने और नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ मलेशिया के द्वारा विरोध दर्ज किया गया था।
- महातिर ने भारत के फैसलों का विरोध किया था और पाकिस्तान के साथ समर्थन जताया था। सीएए पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा था कि अगर इसी तरह के कदम मलेशिया उठाए तो क्या होगा? इससे अफरा-तफरी व अस्थिरता की स्थिति पैदा हो सकती है। उनकी इस टिप्पणी पर भारत ने ऐतराज भी जताया था इसे देश के आंतरिक मामलों में दखल बताया था।
- महातिर कश्मीर पर भारत के फैसले को लेकर भी आपत्ति जता चुके हैं, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया और आपसी व्यापार भी प्रभावित हुआ है कुछ समय पूर्व भारत ने रिफाइंड पाम आयल पर रोक लगा दी थी जिसका सबसे ज्यादा आयात भारत मलेशिया से करता था यह रोक अभी भी जारी है।
8. हरियाणा में स्थित राखीगढ़ी जल्दी ही भारत के पर्यटन मानचित्र पर प्रमुख दर्शनीय स्थल के रूप में उभरेगा
- हरियाणा में राखीगढ़ी जल्दी ही भारत के पर्यटन मानचित्र पर प्रमुख दर्शनीय स्थल के रूप में उभरेगा। राखीगढ़ी गांव उस समय सुर्खियों में आया, जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने अपने बजट भाषण में इसे पांच पुरा महत्व के स्थलों में शामिल करते हुए कहा कि इसे केंद्र सरकार प्रमुख स्थल के रूप में विकसित करेगी।
- इस घोषणा के बाद केंद्र और राज्य सरकार ने राखीगढ़ी को प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की प्रक्रिया तेज कर दी है। पर्यटन मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने हाल में ही राखीगढ़ी का दौरा किया और अधिकारियों को इसे विश्व स्तरीय पर्यटन स्थल बनाने की प्रक्रिया तेज करने के निर्देश दिए।
- दिल्ली से लगभग एक सौ सत्तर किलोमीटर दूर यह गांव हडप्पा सभ्यता का सबसे बड़ा और मुख्य स्थल होगा। हडप्पा सभ्यता को सामान्य रूप से सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से जाना जाता है।
राखीगढ़ी
- राखीगढ़ी हरियाणा के हिसार ज़िले में सरस्वती (घग्गर) नदी के शुष्क क्षेत्र में स्थित एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान है। राखीगढ़ी सिन्धु सभ्यता का भारतीय क्षेत्रों में विशालतम ऐतिहासिक नगर है। हड़प्पा सभ्यता के सबसे बड़े स्थलों में से एक राखीगढ़ी भारत में 500 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है।
- पुरातत्ववेत्ताओं ने हरियाणा स्थित राखीगढ़ी की खोज 1963 ई. में की थी। राखीगढ़ी का उत्खनन व्यापक पैमाने पर 1997-1999 ई. के दौरान अमरेन्द्र नाथ द्वारा किया गया। राखीगढ़ी से प्राक्-हड़प्पा एवं परिपक्व हड़प्पा युग इन दोनों कालों के प्रमाण मिले हैं।
- राखीगढ़ी में कुल नौ टीले हैं। उनका नामकरण, शोध की सूक्ष्मता के मद्देनजर आरजीआर से आरजीआर-9 तक किया गया है। आरजीआर-5 का उत्खनन बताता है कि इस क्षेत्र में सर्वाधिक घनी आबादी थी। वैसे भी इस समय यहां पर आबादी घनी है इसलिए आरजीआर-5 में ज्यादा उत्खनन संभव नहीं है। लेकिन आरजीआर-4 के कुछ भागों में उत्खनन संभव है। 2014 में राखीगढ़ी की खुदाई से प्राप्त वस्तुओं की ‘रेडियो-कार्बन डेटिंग’ के अनुसार इन अवशेषों का संबंध हड़प्पा-पूर्व और प्रौढ़-हड़प्पा काल के अलावा उससे भी हज़ारों वर्ष पूर्व की सभ्यता से भी है। आरजीआर-6 से प्राप्त अवशेष इस सभ्यता को लगभग 6500 वर्ष पूर्व तक ले जाते हैं।
- सभी शोध विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि राखीगढ़, भारत-पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान का आकार और आबादी की दृष्टि सबसे बड़ा शहर था। इस क्षेत्र में विकास की तीन-तीन परतें मिलीं हैं। लेकिन अभी भी इस क्षेत्र का विस्तृत उत्खनन बकाया है। प्राप्त विवरणों के अनुसार इस समुचित रूप से नियोजित शहर की सभी सड़कें 1.92 मीटर चौड़ी थीं। यह चौड़ाई काली बंगा की सड़कों से भी ज्यादा है।
9. एसिम्प्टोमैटिक मलेरिया के लिए निदान
- जैव प्रौद्योगिकी विभाग के भुवनेश्वर स्थित संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज (आईएलएस) और बेंगलूरु के जिग्सॉ बायो सॉल्यूशंस के वैज्ञानिकों की एक संयुक्त टीम के कारण मलेरिया के खिलाफ लड़ाई आसान हो सकती है।यह टीम एक ऐसी पद्धति तैयार कर रही है जो इस रोग स्पर्शोन्मुख (एसिम्प्टोमैटिक) वाहककी पहचान न होने की समस्या को दूर करने का भरोसा देती है।
- इस टीम ने जीनोम खनन की एक नई अवधारणा का इस्तेमाल कियाजो पूरे मलेरिया परजीवी जीनोम में मौजूद मल्टी-रिपीट सीक्वेंस (आईएमआरएस) की पहचान कर उसे विकसित होने से रोकने के लिए लक्षित करती है। इसे मलेरिया निदान के लिए ‘अति संवेदनशील’क्यूपीसीआर परीक्षण कहा गया है।
- भारत के मलेरिया प्रभवित क्षेत्रों से एकत्र किए गए क्लीनिकल नमूनों के सत्यापन से पता चलता है कि यह जांच पारंपरिक तरीकों से लगभग 20 से 100 गुना अधिक संवेदनशील थी। इसके जरिये सबमाइक्रोस्कोपिक नमूनों का भी पता लगाया जा सकता है।
- अत्यधिक संवेदनशील अन्य तरीकों की तुलना में यह चार से आठ गुना बेहतर दिखी। साथ ही यह प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम के लिए बेहद खास दिखी जो मलेरिया परजीवी की सबसे घातक प्रजाति है। जबकि प्लास्मोडियम विवैक्स प्रजाति के साथ क्रॉस-रिएक्शन नहीं किया जो अपेक्षाकृत कम घातक मलेरिया की पुनरावृत्ति का सबसे प्रुखख कारण है।
क्या है वर्तमान स्थिति?
- इस रोग की जांच के लिए सामूहिक जांच एवं उपचार कार्यक्रमों में और मलेरिया नियंत्रण के उपायों की निगरानी में माइक्रोस्कोपी और प्रोटीन प्रतिरक्षा आधारित रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट (आरडीटी) का उपयोग किया जाता है। हालांकि इसके तहत करीब 30 से 50 प्रतिशत कम घनत्व वाले संक्रमण छूट जाते हैं जिसमें आमतौर पर दो परजीवी/ माइक्रोलीटर होते हैं।
- इन्हें अक्सर स्पर्शोन्मुख वाहक में देखे जाते हैं जो संक्रमण के मूक भंडार के रूप में कार्य करते हैं और वे मच्छरों के माध्यम से रोग को संक्रमित करने में समर्थ होते हैं। स्थानिक क्षेत्रों में स्पर्शोन्मुख वाहक की पहचान मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रमों की एक प्रमुख बाधा मानी जाती है।
- भारत ने 2030 तक मलेरिया का उन्मूलन करने और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक राष्ट्रीय ढांचा विकसित किया हैजो प्रभावित क्षेत्रों में स्पर्शोन्मुख वाहक की पहचान करता है और उसेके संक्रमण को साफ करता है। नई खोज इसमें मदद कर सकती है। डीबीटी के जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद ने इस परियोजना का वित्त पोषित किया है।
10. चीन के तैराक सुन यांग डोपिंग मामले में आठ साल के लिए प्रतिबंधित
- चीन के तीन बार के ओलिम्पिक स्वर्ण पदक विजेता सुन यांग को डोपिंग मामले में नमूना नहीं देने का दोषी पाये जाने के बाद खेल पंचाट (CAS- Court of Arbitration for Sport) ने आठ साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया है। वह इस फैसले के खिलाफ स्विस फेडरल कोर्ट में अपील कर सकते हैं।
- स्विट्जरलैंड स्थित खेल पंचाट (CAS- Court of Arbitration for Sport) ने अंतरराष्ट्रीय तैराकी महासंघ (एफआईएनए) की अपील के खिलाफ विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (वाडा) के फैसले को बरकरार रखा है। सुन चीन के सबसे प्रसिद्ध खिलाड़ियों में से है इन्हें पहले भी 2014 में डोपिंग मामले में प्रतिबंधित किया गया था।
- सुन पर आरोप है कि उन्होंने सितंबर 2018 में अपने खून और मूत्र के नमूने का देने से उस समय मना कर दिया था जब जांचकर्ता उनके घर पहुंचे थे। अंतरराष्ट्रीय तैराकी महासंघ (एफआईएनए) इस मामले में हालांकि सुन के साथ था जिसका मानना था कि सुन के घर पहुंचे जांचकर्ता अपनी पूरी पहचान बताने में विफल रहे थे।
वाडा (World Anti-Doping Agency)
- विश्व एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) एक अंतर्राष्ट्रीय स्वतंत्र एजेंसी है जिसका दुनिया की सरकारों द्वारा समान रूप से वित्त पोषित करके 1999 में स्थापित किया गया था।
- इसकी प्रमुख गतिविधियों में वैज्ञानिक अनुसंधान, शिक्षा, डोपिंग रोधी क्षमताओं का विकास, विश्व डोपिंग रोधी संहिता (कोड) की निगरानी तथा सभी खेलों और सभी देशों में डोपिंग विरोधी नीतियों को सामंजस्य प्रदान करने वाला दस्तावेज शामिल है।
- 1998 की गर्मियों में साइक्लिंग की दुनिया को हिलाकर रख देने वाली घटनाओं के बाद, अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने डोपिंग के खिलाफ लड़ाई में शामिल सभी दलों को एक साथ लाने के लिए डोपिंग पर एक विश्व सम्मेलन आयोजित करने का फैसला किया था।
- 2-4 फरवरी, 1999 को स्विट्जरलैंड के लौसने (Lausanne) में आयोजित खेल में डोपिंग पर प्रथम विश्व सम्मेलन के आयोजन से खेल में डोपिंग पर लौसने घोषणा पत्र आया। यह दस्तावेज एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय डोपिंग विरोधी एजेंसी के निर्माण की अनुशंसा करता है।
- लौसने घोषणा की शर्तों के अनुसरण में, विश्व एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) को बढ़ावा देने और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल में डोपिंग के खिलाफ लड़ाई का समन्वय करने के लिए लौसने में 10 नवंबर, 1999 को स्थापित किया गया था। वाडा को आईओसी की पहल के तहत् एक नींव के रूप में स्थापित किया गया था।