राजस्थान GK नोट्स

जमींदारी प्रथा एवं राजस्व मंडल (Jainism and customs division) राजस्थान GK अध्ययन नोट्स

  • स्वाधीनता से पूर्व राजा ही अन्तिम अपील का न्यायालय था। किसान की 60% से अधिक उपज जागीरदार या शासक हड़प लेते थे। जागीरदार असल में किसानों की अधिकतर समस्याओं के स्रोत थे। अन्य बिचौलिये- ज़मींदार एवं बिस्वेदार भी उनके शोषण के ही माध्यम थे।
  • पूर्व समस्याओं को हल करने के लिये राजस्थान में शामिल होने वाली रियासतों के उच्च बन्दोबस्त और भू-अभिलेख विभाग का पुनर्गठन एवं एकीकरण किया। उस समय इस विभाग का एक ही अधिकारी था जो कई रूपों में कार्य करता था, यथा, बन्दोबस्त आयुक्त, भू-अभिलेख निदेशक, राजस्थान का पंजीयन महानिरीक्षक एवं मुद्रांक अधीक्षक आदि.
  • संयुक्त राजस्थान राज्य के निर्माण के पश्चात राजप्रमुख ने 7 अप्रैल 1949 को अध्यादेश की उद्घोषणा द्वारा राजस्थान के राजस्व मंडल की स्थापना की थी ।
  • यह अध्यादेश 1 नवम्बर 1949 को प्रवर्तित हुआ था उसने बीकानेर, जयपुर, जोधपुर, मत्स्य तथा पूर्व राजस्थान के राजस्व मंडलों का स्थान ले लिया। 1 नवम्बर, 1949 से इन राजस्व मंडलों ने कार्य करना बन्द कर दिया. इनके पास बकाया वादों को संभाग के अतिरिक्त आयुक्तों को स्थानान्तरित कर दिया गया।
  • भूमि सम्बन्धी विवादों में फंसे गरीब और अशिक्षित किसानों को, अनावश्यक कानूनी औपचारिकताओं में उलझाए बिना, सस्ता, शीघ्र और सुलभ न्याय हेतु राजस्थान सरकार ने राजस्व मंडल, अजमेर को एक अधिष्ठान-न्यायालय बनाया गया है। राजस्व मुकद्दमों के निपटारे के लिए यह राजस्थान का सर्वोच्च अपील न्यायालय है जिसके निर्णय को केवल उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में ही चुनौती दी जा सकती है|
DsGuruJi Homepage Click Here