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मनुष्य का उत्सर्जन तंत्र

शरीर कोशिकाओं से वर्ज्य (waste) या विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने की क्रियाविधि को उत्सर्जन (Excretion) कहते हैं। वैसे अंग जो उत्सर्जन क्रिया में भाग लेते हैं या सहायता पहुँचाते हैं, उत्सर्जी अंग (Excretory Organs) कहलाते हैं।

अपचय क्रिया (Catabolic process) के फलस्वरूप शरीर में एकत्रित जटिल यौगिकों का विघटन होता है जिसके फलस्वरूप ऊर्जा मुक्त होती है और कुछ अपशिष्ट पदार्थ (waste products) शेष रह जाते हैं। यह अपशिष्ट पदार्थ व्यर्थ होने के साथ-साथ हानिकारक या विषाक्त (Poisonous) भी होते हैं, जो जीवित कोशिका के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं। इन पदार्थों का शरीर में अधिक समय तक रहने पर उपापचय की क्रियाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और विभिन्न रोग भी हो सकते हैं। अत: इन अपशिष्ट या वर्ज्य पदार्थ का शरीर से बाहर निष्कासन आवश्यक है।

मनुष्य में उत्सर्जन (Excretion in human): मनुष्य के उत्सर्जन तंत्र में निम्नलिखित अंग आते हैं- 1. वृक्क (Kidney), 2. फेफड़ा (Lungs), 3. त्वचा (Skin) 4. यकृत (Liver) एवं 5. आंत (Intestine)

  1. वृक्क (Kidney): मनुष्य एवं अन्य स्तनधारियों में मुख्य उत्सर्जी अंग एक जोड़ा वृक्क (Kidneys) होता है जो रुधिर परिसंचरण से उत्सर्जी – पदार्थों को हटाने, साथ-ही-साथ रुधिर में लाभदायक तत्वों को बनाए रखने के लिए भली-भाँति अनुकूलित होते हैं। वृक्क सेम के बीज के आकार के होते हैं। उदार गुहा (Abdominal cavity) में पीठ की ओर कमर के क्षेत्र में, कशेरुक दण्ड (Vertebral column) के दोनों ओर एक-एक वृक्क स्थित होता है। इसके चारों तरफ पेरिटोनियम (Peritonium) नामक एक झिल्ली पायी जाती है। वयस्क मनुष्य में प्रत्येक वृक्क 4 से 5 इंच लम्बा, 2 इंच चौड़ा और लगभग 1.5 इंच मोटा होता है। इसका भार लगभग 140 ग्राम होता है। इसका बाहरी धरातल उत्तल (Convex) होता है तथा भीतरी धरातल अवतल होता है। वृक्क चारों ओर से मोटी वसा परतों द्वारा आच्छादित होते हैं, जो उनकी सुरक्षा करती है। वृक्क की भीतरी अवतल सतह हाइलम (Hilum) कहलाती है।

वृक्क को लम्बवत (Lengthwise) काटने पर यह दो भागों में विभाजित हो जाता है। बाहरी भाग जो अपेक्षाकृत पतला होता है, कॉर्टेक्स (Cortex) कहलाता है जबकि भीतरी मोटा दो तिहाई भाग मेडुला (Medulla) कहलाता है। मेडुला शंकुरूपी (Cone shaped) रचनाओं से भरा होता है जिन्हें पिरामिड (Pyramid) कहते हैं। सभी पिरामिडे एक थैलीनुमा गुहा में दिष्ट (Directed) रहती है। यह गुहा वृक्क की भीतरी अवतल धरातल पर स्थित होती है। इस गुहा को वृक्क पेल्विस (Renal pelvis) कहते हैं। वृक्क पेल्विस से एक लम्बी तथा संकरी वाहिनी निकलती है जिसे मूत्रवाहिनी (Ureter) कहते हैं। दोनों ओर की मूत्रवाहिनियाँ मूत्राशय (Urinary bladder) में खुलती हैं। प्रत्येक वृक्क से लगभग 1,30,000 सूक्ष्म नलिकाएँ (Micro tubules) होती है जिन्हें वृक्कक या नेफ्रॉन (Nephron) कहते हैं। नेफ्रॉन वृक्क की कार्यात्मक इकाई (Functional Unit of Kidney) होती है। नेफ्रॉन को उत्सर्जन इकाई (Excretory Units) भी कहा जाता है। यह नेफ्रॉन ही रुधिर के रासायनिक संघटन (chemical composition) का वास्तविक नियंत्रण करते हैं।

नेफ्रॉन की संरचना (structure of nephron): प्रत्येक नेफ्रॉन में एक छोटी प्यालीनुमा संरचना होती है जिसे बोमेन सम्पुट (Bowman’s capsule) कहते हैं। बोमेन सम्पुट कॉर्टेक्स क्षेत्र में स्थित होता है। इस बोमेन सम्पुट से एक सूक्ष्म कुण्डलित नलिका निकलती है जो सीधी होकर वृक्क पेल्विस में प्रवेश करती है। इसके पश्चात् यह नलिका चौड़ी होकर एक पाश (Loop) बनाती है, जिसे हेनले-लूप (Henle’s loop) कहते हैं। उसके बाद यह नलिका फिर वृक्क के कॉर्टेक्स भाग में चली जाती है। कॉर्टेक्स भाग में यह फिर से कुण्डलित हो जाती है और तब यह एक बड़ी वाहिनी में खुलती है जिसे संग्राहक वाहिनी (Collecting duct) कहते हैं। संग्राहक वाहिनी एक सीधी नली होती है, जिसमें कई नेफ्रॉन की नलिकाएँ खुलती हैं। यह द्रव को वृक्क पेल्विस में ले जाती है। सभी संग्राहक वाहिनियाँ वृक्क पेल्विस में खुलती हैं। वृक्क पेल्विस से एक वाहिनी जिसे मूत्रवाहिनी कहते हैं, निकलता है जो मूत्राशय में खुलता है।

वृक्क में रुधिर की आपूर्ति (Supply of blood in the kidneys): महाधमनी (Aorta) से वृक्क धमनी (Renal artery) रुधिर को वृक्कों के भीतर ले जाती है। प्रत्येक वृक्क में वृक्क धमनी प्रवेश करने के बाद अनेक पतली शाखाओं में विभाजित हो जाती है जिन्हें वृक्क धमनिकाएँ (Arterioles) कहते हैं। ये वृक्क धमनिकाएँ प्रत्येक नेफ्रॉन के बोमेन सम्पुट में प्रवेश करती हैं जिसे अभिवाही धमनिका (Afferent arteriole) कहते हैं। अभिवाही धमनिका बारबार विभाजित होकर महीन केशिकाओं (Capillaries) का एक गुच्छा बनाती है, जिसे केशिका गुच्छ (Glomerulus) कहते हैं। केशिकाएँ केशिका गुच्छ के बाद पुनः संयोजित होकर अपवाही धमनिका (Efferent arteriole) बनाती है। अपवाही धमनिका बोमेन सम्पुट से निकलकर फिर बार-बार विभाजित होकर महीन केशिकाओं का जाल बनाती है जो नेफ्रॉन के विभिन्न जालिका भागों को ढंक लेती है। केशिकाएँ पुनः संयोजित होकर वृक्क शिरिकाएं (Renal venules) बनाती हैं। ये वृक्क शिरिकाएँ अन्ततोगत्वा वृक्क शिरा में खुलती हैं। वृक्क शिरा वृक्क से रुधिर को इकट्ठा कर हृदय (Heart) में पुनः वापस ले जाती है।

नेफ्रॉन के कार्य करने की विधि (Mechanism of working of nephron): वृक्कों के भीतर नेफ्रॉन द्वारा दो महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न होते हैं। ये हैं- 1. रुधिर से सभी उत्सर्जी पदार्थों को हटाना एवं 2. रुधिर में आवश्यक पोषक तत्वों को बनाए रखना।

 

रुधिर से उत्सजीं पदार्थ को दो चरणों में हटाया जाता है। ये हैं-

  1. निस्यंदन (Filtration) तथा B. पुनरावशोषण (Reabsorption)
  2. निस्यंदन (Filtration): निस्यंदन की क्रिया केशिकागुच्छ में सम्पन्न होती है। केशिका गुच्छ एक छन्नी की तरह है। प्रत्येक मिनट में रक्त का लगभग 1 लीटर जिसमें 5oo ml प्लाज्मा होता है, केशिका गुच्छ से होकर बहता है। इसका लगभग 10% भाग छनता है। अभिवाही धमनिका जिसका व्यास अपवाही धमनिका से अधिक होता है, इसलिए केशिका गुच्छ में रक्त का दाब बढ़ जाता है जिसके फलस्वरूप छनने की क्रिया इसी उच्च दाब पर सम्पन्न होती है। उच्च दाब में छनने की इस क्रिया को अल्ट्राफिल्टरेशन (Ultra filtration) कहते हैं। अल्ट्राफिल्टरेशन द्वारा रुधिर की प्लाज्मा से ग्लोमेरुलस द्वारा विभिन्न घटक छान लिये जाते हैं। रुधिर प्लाज्मा से जल, ग्लूकोस, खनिज-लवण आदि छान लिये जाते हैं। केवल रुधिर कोशिकाएँ एवं प्लाज्मा प्रोटीन नहीं छन पाती और रुधिर में ही रह जाती है। छने हुए द्रव को निस्यंद (Filtrate) कहते हैं। यह निस्यंद रुधिर प्लाज्मा की ही तरह होता है किन्तु इसमें रुधिर कोशिकाएँ और प्लाज्मा प्रोटीन अनुपस्थित होते हैं। निस्यंद बोमेन सम्पुट की गुहा में इकट्ठा होता है जहाँ से यह नेफ्रॉन की नलिका में चला जाता है। इस निस्यंदन के कारण रुधिर के बहुत अधिक लाभदायक घटक छान लिये जाते हैं परन्तु इसका निदान अगले चरण में हो जाता है। इस प्रकार के चयनात्मक निस्यंदन को जिसमें कुछ पदार्थ छाने जाते हैं और कुछ नहीं, डाइऐलिसिस (Dialysis) कहते हैं। प्रत्येक केशिकागुच्छ (Glomerulus) एक डाइऐलिसिस थैली का कार्य करती है।
  3. पुनरावशोषण (Reabsorption): बोमेन सम्पुट में छनने के बाद रुधिर नेफ्रॉन के बाहर मौजूद केशिकाओं के जाल से होकर प्रवाहित होता है। नेफ्रॉन की विभिन्न नलिकाओं से गुजरते समय निस्यंद में उपस्थित अनेक लाभदायक तत्त्वों को नलिकाओं के चारों ओर मौजूद रुधिर केशिकाओं द्वारा पुनः सोखकर रुधिर परिसंचरण में लौटा दिया जाता है। इस क्रिया को पुनरावशोषण (Reabsorption) कहते हैं। निस्यंद से अधिकांश जल का अवशोषण परासरण (Osmosis) द्वारा होता है। अन्य अवशोषित होने वाले लाभदायक तत्त्व ग्लूकोस, विटामिन, हार्मोन, खनिज-लवण इत्यादि होते हैं। हाल की खोजों से पता चला है कि 100 ml निस्यंद से लगभग 99 ml द्रव का पुनरावशोषण हो जाता है। पुनरावशोषण के पश्चात् कभी-कभी नलिका की कोशिकाओं से कुछ उत्सर्जी पदार्थ स्रावित होते हैं जो निस्यंद में मिल जाते हैं। इसे ट्यूबुलर स्रवण (Tubular secretion) कहते हैं। इस निस्यंद (Filtrate) को मूत्र (Urine) कहते हैं।

मूत्र की संरचना एवं प्रकृति (Nature and composition of urine): नेफ्रॉन या वृक्क नलिका में रुधिर से छनकर आए जल एवं शेष उत्सर्जी पदार्थों के मिश्रण को मूत्र कहते हैं। मनुष्य का मूत्र पारदर्शी एवं हल्के पीले रंग का द्रव होता है। इसका पीला रंग हीमोग्लोबिन के अपघटन से निर्मित यूरोक्रोम (Urochrome) नामक वर्णक (Pigment) के कारण होता है। मूत्र के गंध का कारण इसमें उपस्थित कार्बनिक पदार्थ होता है। एक सामान्य व्यक्ति में 24 घंटे में लगभग 1.5 लीटर मूत्र बनता है। सामान्यतः मूत्र की मात्रा मनुष्य द्वारा ग्रहण किये गए जल की मात्रा, भोजन की प्रकृति उनकी शारीरिक एवं मानसिक स्थिति तथा वातावरणीय ताप पर निर्भर करती है। सामान्यतया ताजा मूत्र अम्लीय प्रकृति का होता है। इसका pH मान 4.5 से 8.6 के मध्य होता है। इसका आपेक्षिक घनत्व जल से थोड़ा अधिक होता है। एक सामान्य व्यक्ति के मूत्र में जल (96%), यूरिया (2%), प्रोटीन, वसा, शर्करा एवं दूसरे कोलयड्स (1.3%), यूरिक अम्ल (0.5%) के साथ अत्यल्प मात्रा मे क्रियेटिनिन, सोडियम, पोटैशियम, कैल्सियम, मैग्नीशियम, क्लोरीन, सल्फेट, फॉस्फेट, सीसा, अमोनिया, आर्सेनिक, आयोडीन, नाइट्रोजन आदि पाए जाते हैं।

डाईयूरेसिस (Diuresis): मूत्रस्राव की मात्रा के बढ़ जाने को डाईयूरेसिस कहते हैं। वे पदार्थ जो इसको क्रियान्वित करते हैं, उन्हें डाईयूरेटिक (Diuretics) कहते हैं। यूरिया डाईयूरेटिक पदार्थ होता है जो मूत्रस्राव को बहुत अधिक प्रभावित करता है। मूत्रस्राव का सीधा सम्बन्ध सामान्य रक्त में यूरिया की मात्रा पर निर्भर करता है। मैनिटॉल (Mannitol), सुक्रोज, ग्लूकोज, कैफीन आदि अन्य ड्यूरेटिक पदार्थ हैं।

वृक्क के कार्य (Function of kidneys): वृक्क के निम्नलिखित महत्वपूर्ण कार्य हैं-

(a) वृक्क स्तनधारियों एवं अन्य कशेरुकी जन्तुओं में उपापचय क्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न विभिन्न अपशिष्ट पदार्थों को मूत्र के रूप में शरीर से बाहर निकालता है।

(b) यह रक्त में हाइड्रोजन आयन सांद्रता (pH) का नियंत्रण करता है।

(c) यह रक्त के परासरणी दाब तथा उसकी मात्रा का नियंत्रण करता है।

(d) यह रुधिर तथा ऊतक द्रव्य में जल एवं लवणों की मात्रा को निश्चित कर रुधिर दाब बनाए रखता है।

(e) रुधिर के विभिन्न पदार्थों का वरणात्मक उत्सर्जन (selective excretion) कर वृक्क शरीर की रासायनिक अखण्डता बनाने में सहायक होता है।

(f) शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने की अवस्था में विशेष एन्जाइम के स्रवण से वृक्क एरिथ्रोपोइटिन (Erythropoietin) नामक हार्मोन द्वारा लाल रुधिराणुओं के तेजी से बनने में सहायक होता है।

(g) यह कुछ पोषक तत्त्वों के अधिशेष भाग जैसे शर्करा, ऐमीनो अम्ल आदि का निष्कासन करता है।

(h) यह बाहरी पदार्थों जैसे दवाइयाँ, विष इत्यादि जिनका शरीर में कोई प्रयोजन नहीं होता है, का निष्कासन करता है। (i) शरीर में परासरण नियंत्रण (Osmoregulation) द्वारा वृक्क जल की निश्चित मात्रा को बनाए रखता है।

  1. फेफड़ा (Lungs): मनुष्यों में वैसे तो फेफड़ा श्वसन तंत्र से सम्बन्धित अंग है लेकिन यह श्वसन के साथ-साथ उत्सर्जन का भी कार्य करता है। फेफड़ा द्वारा दो प्रकार के गैसीय पदार्थों कार्बन डाइऑक्साइड एवं जलवाष्प का उत्सर्जन होता है। कुछ पदार्थ जैसे- लहसुन, प्याज और कुछ मसाले जिनमें कुछ वाष्पशील घटक पाये जाते हैं, का उत्सर्जन फेफड़ों के द्वारा होता है।
  2. त्वचा (skin): त्वचा में उपस्थित तैलीय ग्रन्थियाँ एवं स्वेद ग्रन्थियाँ क्रमशः सीबम एवं पसीने का स्राव करती हैं। सीबम एवं पसीने के साथ अनेक उत्सर्जी पदार्थ शरीर से बाहर निष्कासित हो जाते हैं।
  3. यकृत (Liver): यकृत कोशिकाएँ आवश्यकता से अधिक ऐमीनो अम्ल तथा रुधिर की अमोनिया को यूरिया में परिवर्तित करके उत्सर्जन में मुख्य भूमिका निभाता है। इसके अतिरिक्त यकृत तथा प्लीहा कोशिकाएँ टूटी-फूटी रुधिर कोशिकाओं को विखंडित कर उन्हें रक्त प्रवाह से अलग करती हैं। यकृत कोशिकाएँ हीमोग्लोबिन का भी विखण्डन कर उन्हें रक्त प्रवाह से अलग करती है।
  4. आंत (Intestine): आंत की दीवार में रुधिर कोशिकाओं का जाल होता है। इन कोशिकाओं के रुधिर में विद्यमान वर्ज्य पदार्थ की कुछ मात्रा आँत की कोशिकाएँ विसरण क्रिया द्वारा अवशोषित करके आँत की गुहा में पहुँचा देती है। यहाँ से वे मल के साथ बाहर निकल जाते हैं। इस प्रकार ऑत अनपचे भोजन को शरीर से बाहर निकालकर उत्सर्जन में मदद करती है।
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