कोई भी वस्तु तब दिखाई देती है जब प्रकाश स्रोत से चली प्रकाश की किरणें वस्तु से टकरा कर हमारी आँखों तक पहुँचती है। इसे प्रकाश का परावर्तन कहते है। शीशे में हम अपने आपको तभी देख सकते है जब हमसे चली प्रकाश की किरण शीशे पर लम्बवत कराये।ऐसा तब ही हो सकता है जब हम शीशे के ठीक सामने खड़े हो। परन्तु शीशे के सामने न होने पर भी काफी और सारी वे वस्तुएँ भी दिखाई देती है जिनसे चला हुआ प्रकाश शीशे से टकराने के बाद हमारी आँखों तक पहुँच जाता है।
क्या कारण है कि शीशे में हम अपने को तो तब ही देख पाते हैं जब इसके ठीक सामने होते हो पर ऐसी और बहुत -सी चीजें जरुर दिख जाती है, जो शीशे के सामने नहीं होती?
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