सूर्य के चारों ओर चक्कर लगानेवाले विभिन्न ग्रहों, क्षुद्रग्रहों, धूमकेतुओं, उल्काओं तथा अन्य आकाशीय पिण्डों के समूह या परिवार कोसौर मंडलकहते हैं।
सूर्य सौर मंडल का मुखिया है। सौर मंडल में सूर्य का द्रव्यमान 99.97% है। शेष 0.03% में शेष सभी आकाशीय पिण्ड हैं और इनमें भी बृहस्पति और शनि का द्रव्यमान मिलकर 92% है।
ग्रहों के पास अपना प्रकाश नहीं होता है। ये सूर्य की किरणों को परावर्तित कर प्रकाशित होते हैं। प्रकाश का परावर्तन इन पिण्डों के वातावरण की मात्रा व प्रकृति पर निर्भर करता है। जिन पिण्डों के पास अपना वातावरण (वायुमंडल) नहीं होता, उनसे प्रकाश का परावर्तन कम होता है और वे कम चमकते हैं ।
सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्तीय (elliptical) पथ पर परिक्रमण करते हैं। शुक्र (venus) व अरुण (Uranus) दक्षिणावर्त (clockwise) दिशा में अर्थात् पूर्व से पश्चिम दिशा में परिक्रमण करते हैं जबकि अन्य सभी ग्रह वामावर्त्त (anticlockwise) दिशा में अर्थात् पश्चिम से पूर्व दिशा में परिक्रमण करते हैं। सूर्य व ग्रहों के बीच का गुरुत्वाकर्षण बल इन्हें परिक्रमण करने देता है। यदि सूर्य न रहे तो ये सभी ग्रह अपने कक्ष (orbit) के स्पर्शरेखीय (tangential) दिशा में गुरुत्वाकर्षण बल के अभाव में तेजी से गायब हो जाएंगे। पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव (North Pole) पूरे सौर मंडल के उत्तर दिशा को निर्धारित करता है। प्रायः सभी ग्रह अपने अक्ष (axis) से थोड़ा झुककर घुमते हुए सूर्य की परिक्रमा करते हैं।
इन ग्रहों को दो भागों में विभाजित किया जाता है- आन्तरिक ग्रह या पार्थिव ग्रह तथा बाह्य ग्रह या बृहस्पति ग्रह।
(i) आन्तरिक ग्रह या वृहस्पति ग्रह (Inner Planets or Terrestial Planets):आन्तरिक ग्रह में बुध, शुक्र, पृथ्वी व मंगल को शामिल किया जाता है। आन्तरिक ग्रह अपेक्षाकृत छोटे और अधिक घने होते हैं। इनमें पृथ्वी सबसे बड़ी और अधिक घनी है। सभी आंतरिक ग्रह चट्टानों व धातुओं से बने हैं। इन्हें पार्थिव ग्रह (Terrestial Planets) भी कहा जाता है क्योंकि ये पृथ्वी के सदृश हैं।
(ii) बाह्य ग्रह या बृहस्पतीय ग्रह (Outer Planets or Jovean Planets):वाह्य ग्रह में बृहस्पति, शनि, अरुण व वरुण को शामिल किया जाता है। ये चारों बाह्य ग्रह आकार में बहुत बड़े हैं और इनका बड़ा उपग्रहीय परिवार है। ये ग्रह अपेक्षाकृत बड़े और कम घने हैं। ये प्रायः हाइड्रोजन, हीलियम, अमोनिया व मिथेन गैस से बने हैं। इन्हें बृहस्पतीय या ब्राहस्पत्य ग्रह (Jovean Planets) भी कहा जाता है क्योंकि ये बृहस्पति (Jupiter) के सदृश हैं (ग्रीक शब्द Jove = Jupiter)।
सूर्य
सूर्य (sun):सौरमंडल का हृदय स्थल है। यह जीवों के शक्ति का स्रोत है। हमारी आकाशगंगा-दुग्धमेखला-के केन्द्र से सूर्य की अनुमानित दूरी 32,000 प्रकाश वर्ष है। यह 250 किमी०/सेकण्ड की गति से आकाशगंगा-दुग्धमेखला-के केन्द्र के चारों ओर परिक्रमा करता है। इसका परिक्रमण काल 25 करोड़ वर्ष है। इस अवधि कोब्रह्मांड वर्ष (Cosmos Year)कहते हैं।
वस्तुतः सूर्य एक गैसीय पिण्ड है। ठोस नहीं होने के कारण इसके विभिन्न भागों में असमान गति पाई जाती है। इसका मध्य भाग 25 दिनों में व ध्रुवीय भाग 35 दिनों में एक घूर्णन करता है।
सूर्य की संरचना(structure of sun):
सूर्य निम्नलिखित स्तरों से मिलकर बना होता है-
(i) क्रोड (Core):सूर्य का सबसे आंतरिक स्तर क्रोड कहलाता है। यह नाभिकीय भट्टी के समान है जहाँ ऊर्जा उत्पन्न होते हैं। अन्य तारों की तरह सूर्य भी मुख्य रूप से हाइड्रोजन से भरा है। क्रोड में नाभिकीय अभिक्रिया (nuclear reaction) के कारण हाइड्रोजन परमाणु के नाभिक मिलकर हीलियम परमाणु के नाभिक का निर्माण करते हैं जिससे बड़ी मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। सूर्य प्रति सेकण्ड हाइड्रोजन का लगभग दस खरब पाउण्ड उपयोग करता है। उत्पन्न ऊर्जा केन्द्रीय भाग से विकिरण क्षेत्र (radiation zone) से होता हुआ, संवाहक घेरे व वहाँ से प्रकाश मंडल होता हुआ बाह्य अंतरिक्ष में पहुँच जाता है।
(ii) संवाहक घेरा (Convective Layer):क्रोड के ठीक ऊपर का स्तर संवाहक घेरा कहलाता है। इस स्तर द्वारा क्रोड में बने ऊर्जा का संवहन (convection) होता है।
(iii) प्रकाश मंडल (Photosphere):सूर्य का ऊपरी सतह जो दिखाई देता हैप्रकाश मंडलकहलाता है। इसी सतह से किरणों का विकिरण होता है। इसी से सूर्य का व्यास (diameter) निधारित होता है।
सौर वायुमंडल (The solar Atmosphere):सौर वायुमंडल के भी कई स्तर होते हैं- वर्ण मंडल (Chromosphere), किरीट या कोरोना (Corona) आदि।
(i) वर्णमंडल (Chromosphere):प्रकाशमंडल के ऊपर का स्तर रक्तिम वर्णमंडल होता है। यह स्तर मुख्य रूप से हाइड्रोजन गैस से बना होता है। यह पूर्ण सूर्यग्रहण के समय प्रकाशमंडल के किनारे पर एक चमकीली गुलाबी दमक (bright pink flash) के समान दिखायी देता है।
(ii) किरीट या कोरोना (Corona):वर्णमंडल स्तर के पीछे सूर्य का प्रभामंडल युक्त किरीट या कोरोना होता है। अंतरिक्ष में बहुत दूर तक फैला किरीट या कोरोना x-किरण विकीर्ण करने की क्षमता रखता है। यह स्तर भी सूर्यग्रहण के समय ही देखा जा सकता है। सूर्य ग्रहण के समय जब प्रकाशमंडल पूर्णतः ढंक जाता है तो सूर्य किरीट या कोरोना दिखायी देता है। अन्य समय पर प्रकीर्णित सूर्य प्रकाश के कारण किरीट या कोरोना दिखायी नहीं देता है।
सूर्य कलंक या सूर्य धब्बे (Sunspots):सूर्य की सतह पर कुछ काले धब्बे दिखलाई देते हैं। ये वास्तव में धब्बे नहीं हैं बल्कि सूर्य के चारों ओर चलते हुए गैसों के खोल हैं, जिनका तापमान आसपास के तापमान से 1500°C कम होता है, जिसके कारण ये धब्बेदार लगते हैं। ये धब्बे एक या दो दिनों से लेकर दो-तीन महीनों तक दिखलाई देते हैं। जब सूर्य में धब्बा दिखलाई देता है, उस समय पृथ्वी परचुम्बकीय झांझावात (magnetic stroms)उत्पन्न होते हैं। इससे तार, रेडियो, टी०वी० आदि बिजली से चलनेवाली मशीनों में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है। चुम्बक के सूई की दिशा बदल जाती है तथा नाविकों को दिशाभ्रम हो जाता है। सूर्य धब्बों का एक पूरा चक्र 22 वर्षों का होता है, जिसे सूर्य धब्बा चक्र (sunspots Cycle) कहते हैं। पहले 11 वर्षों तक यह धब्बा बढ़ता है। इसके बाद 11 वर्षों तक यह धब्बा घटता है। इस चक्र के कारण सूर्य के चुम्बकीय प्रदेश बदलते रहते हैं।
सूर्य: महत्त्वपूर्ण तथ्य
परिक्रमण काल | 25 करोड़ वर्ष (250 किमी०/ सेकण्ड की औसत चाल से लगभग एक वृतीय पथ में) |
घूर्णन काल | 25 दिन-सूर्य का मध्य भाग; 35 दिन-सूर्य का ध्रुवीय भाग |
व्यास | 13 लाख 92 हजार किमी० (लगभग 14 लाख किमी०) (पृथ्वी के व्यास का 110 गुना) |
आपेक्षिक द्रव्यमान (पृथ्वी का द्रव्यमान = 1) | 3,32,776 (पृथ्वी के द्रव्यमान का लगभग 3 लाख गुना) |
घनत्व | 1.41 ग्राम , सेमी०3 |
क्रोड तापमान | 1,50,00,000°С |
रासायनिक बनावट | हाइड्रोजन (71%), हीलियम (26-5%), अन्य तत्व (2.5%) |
जीवन काल | लगभग 10 अरब वर्ष (1010वर्ष) |
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