ओम का नियमOhm’s Law
धारा और विभवांतर के बीच संबंध की खोज सर्वप्रथम जर्मनी केजार्ज साइमन ओमने की। इस संबध को व्यक्त करने के लिए ओम ने जिस नियम का प्रतिपादन किया, उसे ही ओम का नियम कहते हैं। इस नियम के अनुसार “स्थिर ताप पर किसी चालक में प्रवाहित होने वाली धारा चालक के सिरों के बीच विभवांतर के समानुपाती होती है।”
यदि चालक के सिरों के बीच का विभवांतर V हो और उसमें प्रवाहित धारा I हो, तो ओम के नियम से v ∝ I या V = I R जहाँ R एक नियतांक है, जिसे चालक प्रतिरोध कहते हैं।
प्रतिरोधResistance
किसी चालक का वह गुण जो उसमें प्रवाहित धारा का विरोध करता है,प्रतिरोधकहलाता है। जब किसी चालक में विद्युत् धारा प्रवाहित की जाती है, तो चालक में गतिशील इलेक्ट्रॉन अपने मार्ग में आने वाले इलेक्ट्रॉनों, परमाणुओं एवं आयनों से निरन्तर टकराते रहते हैं, इसी कारण प्रतिरोध की उत्पत्ति होती है। यदि किसी चालक के सिरों के बीच का विभवान्तर V वोल्ट एवं उसमें प्रवाहित धारा I एम्पीयर हो ।
प्रतिरोध (Resistance) = विभवान्तर / धारा या,
[latex]R=\frac { V }{ I }[/latex]
प्रतिरोध का SI इकाईओमहै, जिसका संकेत Ω है। किसी चालक का प्रतिरोध निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है-
(i) चालक पदार्थ की प्रकृति पर:किसी चालक का प्रतिरोध उसके पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है।
(ii) चालक के ताप पर:किसी चालक का प्रतिरोध उसके ताप पर निर्भर करता है। ताप बढ़ने पर चालक का प्रतिरोध बढ़ता है, लेकिन ताप बढ़ने पर अर्द्धचालकों का प्रतिरोध घटता है।
(iii) चालक की लम्बाई पर:किसी चालक का प्रतिरोध उसकी लम्बाई का समानुपाती होता है। अर्थात् लम्बाई बढ़ने से चालक का प्रतिरोध बढ़ता है और लम्बाई घटने से चालक का प्रतिरोध घटता है।
(iv) चालक के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल पर:किसी चालक का प्रतिरोध उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल का व्युत्क्रमानुपाती होता है। अर्थात् मोटाई बढ़ने पर चालक का प्रतिरोध घटता है।
ओमीय प्रतिरोधOhmic Resistance
जो चालक ओम के नियम का पालन करते हैं, उन्हें ओमीय प्रतिरोधक (Ohmic resistor) तथा उनके प्रतिरोध कीओमीय प्रतिरोधकहते हैं, जैसे-मैंगनीज का तार, तांबा का तार, ऐल्युमिनियम का तार आदि।
अनओमीय प्रतिरोधNon-Ohmic Resistance
जो चालक ओम के नियम का पालन नहीं करते, उन्हें अनओमीय प्रतिरोधक तथा उनके प्रतिरोध को अनओमीय प्रतिरोध कहते हैं। जैसेडायोड वाल्व (Diode valve) का प्रतिरोध, ट्रायोड वाल्व (Triode valve) का प्रतिरोध।
नोट:डायोड एवं ट्रायोड वाल्व में प्लेट धारा आोम के नियम का पालन न करके चाइल्ड लैंगसूर नियम (Child Langmuir’s Law) का पालन करती है।
विशिष्ट प्रतिरोधSpecific Resistance or Resistivity
किसी चालक का प्रतिरोध उसके लम्बाई का समानुपाती तथा उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल का व्युत्क्रमानुपाती होता है। अर्थात्
[latex]R\propto \frac { 1 }{ A }[/latex]
जहाँ l = चालक की लम्बाई, A= चालक के अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल, R = चालक का प्रतिरोध या,
[latex]R=\rho \frac { 1 }{ A }[/latex], जहाँ पर ρ एक नियतांक है, जिसे चालक काविशिष्ट प्रतिरोधकहते हैं। इसका मान चालक पदार्थ की प्रकृति और उसके ताप पर निर्भर करता है। यदि l = 1, A = 1
तब [latex]R=\rho \frac { 1 }{ 1 }[/latex], R = ρ
अतः किसी चालक का विशिष्ट प्रतिरोध, चालक पदार्थ से बने एकांक लम्बाई एवं एकांक अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल वाले तार के प्रतिरोध के बराबर होता है। विशिष्ट प्रतिरोध का SI इकाई ओम मीटर (Ω m) होता है। सबसे कम विशिष्ट प्रतिरोध चाँदी का होता है, इसीलिए चाँदी विद्युत् का सबसे अच्छा चालक है।
पदार्थ | 0°Cपर विशिष्ट प्रतिरोध (Ωm) | पदार्थ | 0°Cपर विशिष्ट प्रतिरोध (Ωm) |
चाँदी | 1.6 × 10-8 | तांबा | 1.7×10-8 |
ऐलुमिनियम | 2.7×10-8 | टंगस्टन | 5.6 × 10-8 |
लोहा | 10 × 10-8 | प्लैटिनम | 11 × 10-8 |
पारा | 98 × 10-8 | मैगनीज | 44 × 10-8 |
नाइक्रोम | 100 × 10-8 | कार्बन | 3.5 × 10-5 |
जर्मेनियम | 0.46 | सिलिकॉन | 2.3 × 103 |
लकड़ी | 108– 10-11 | कांच | 1010– 1014 |
अभ्रक | 10-11– 1015 |
चालकताConductance
किसी चालक के प्रतिरोध के व्युत्क्रम (reciprocal) को चालक की चालकता कहते हैं। इसे G से सूचित करते हैं। यदि चालक का प्रतिरोध R हो, तो-
G = 1/R चालकता की SI इकाई ओम–1(Ω-1) होता है, जिसे म्हो (Mho) भी कहते हैं, इसके SI इकाई कोसीमेन (simen)भी कहते हैं, जिसे S से सूचित किया जाता है।
विशिष्ट चालकता Specific Conductance
किसी चालक के विशिष्ट प्रतिरोध के व्युत्क्रम को चालक की विशिष्ट चालकता कहते हैं। इसे σ से सूचित करते हैं। यदि किसी चालक का विशिष्ट प्रतिरोध ρ है, तो-
σ = 1/ρ
विशिष्ट चालकता की SI इकाई ओम-1मीटर–1(Ω-1m-1) या म्हो मीटर–1या सीमेन मीटर-1(sm-1) है।
प्रतिरोधों का संयोजनCombination of Resistance
विद्युत् परिपथ में इष्ट धारा (derived current) प्राप्त करने के लिए प्रायः एक से अधिक प्रतिरोधों का व्यवहार किया जाता है। यदि संयुक्त प्रतिरोधों को एक ही प्रतिरोध द्वारा इस प्रकार प्रतिस्थापित किया जाये कि परिपथ की धारा में कोई परिवर्तन न हो, तो इस एकल प्रतिरोध को समतुल्य प्रतिरोध (equivalent resistance) कहते हैं। सामान्यतः विद्युत् परिपथ में प्रतिरोधों का संयोजन दो प्रकार से होता है-
- श्रेणीक्रम संयोजन तथा
- पार्श्वबद्ध संयोजन
श्रेणीक्रम संयोजन Series Combination
यदि प्रतिरोधों को इस प्रकार जोड़ा जाए कि प्रतिरोधों में समान धारा प्रवाहित हो तथा भिन्न-भिन्न प्रतिरोधों के बीच भिन्न-भिन्न विभवान्तर हो, तो यह प्रतिरोधों का श्रेणीक्रम संयोजन होता है। अर्थात् प्रतिरोधों के श्रेणीक्रम संयोजन की पहचान भिन्न-भिन्न प्रतिरोधों में प्रवाहित होने वाली समान धारा है। अधिकतम प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए प्रतिरोधों की श्रेणी क्रम में जोड़ा जाता है। एक के बाद एक श्रृंखलाबद्ध रूप से प्रतिरोधों R1, R2, R3…… आदि को जोड़ने पर प्राप्त तुल्य प्रतिरोध,
Req = R1+ R2+ R3+ ……
पार्श्वबद्ध या समांतरक्रम संयोजनParallel Combination
यदि प्रतिरोधों को इस प्रकार जोड़ा जाए कि हर प्रतिरोध पर विभवान्तर समान रहे, तो यह प्रतिरोधों का समानान्तरक्रम संयोजन होता है। अर्थात् प्रतिरोधों के समानान्तर क्रम में संयोजन की पहचान प्रत्येक प्रतिरोध पर विभवान्तर का समान होना है। न्यूनतम प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए इस संयोजन का प्रयोग करते हैं। यदि R1, R2, R3…… प्रतिरोध समानान्तर क्रम में जुड़े हों, तो उनके समतुल्य प्रतिरोध निम्नलिखित सूत्र से प्राप्त होता है-
[latex]\frac { 1 }{ { R }_{ eq } } =\frac { 1 }{ { R }_{ 1 } } +\frac { 1 }{ { R }_{ 2 } } +\frac { 1 }{ { R }_{ 3 } } +….[/latex]
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