द्रव का उत्क्षेप या उत्प्लावन बलUpthrust or Buoyant Force of a Liquid
जब कोई ठोस वस्तु द्रव में डुबोयी जाती है, तो उसके भार में कुछ कमी प्रतीत होती है। भार में यह आभासी कमी द्रव द्वारा वस्तु पर ऊपर की ओर लगाए गए बल के कारण होती है। इस बल को उत्प्लावन बल (Buoyant force) या उत्क्षेप (Upthrust) कहते हैं। उत्क्षेप वस्तु द्वारा हटाये गये द्रव के गुरुत्व केन्द्र पर कार्य करता है, जिसे उत्प्लावन केन्द्र (Centre of buoyancy) कहते हैं। जल के उत्क्षेप का अध्ययन सर्वप्रथम आकिमीडीज ने किया और एक सिद्धान्त दिया जिसेआर्किमीडीज का सिद्धान्तकहते हैं।
आर्किमीडीज का सिद्धान्तArchimedes’s Principle
जब कोई वस्तु किसी द्रव में पूरी अथवा आंशिक रूप से डुबोई जाती है, तो उसके भार में आभासी कमी होती है। भार में यह आभासी कमी वस्तु द्वारा हटाए गए द्रव के भार के बराबर होती है। अतः इस सिद्धान्त के अनुसार-
(i) किसी ठोस का आपेक्षिक घनत्व = ठोस का वायु में भार/जल में ठोस के भार में कमी
(ii) किसी द्रव का आपेक्षिक घनत्व = द्रव में ठोस के भार में कमी/जल में ठोस के भार में कमी
आपेक्षिक घनत्व एक शुद्ध संख्या है। इसका कोई मात्रक नहीं होता है।
घनत्व = द्रव्यमान/आयतन,
आपेक्षिक घनत्व = वस्तु का घनत्व/पानी का घनत्व
प्लवनFloatation
जब कोई वस्तु किसी द्रव में डुबोई जाती है, तो उस पर दो बल कार्य करते हैं- (i) वस्तु का भार (w) नीचे की ओर (ii) द्रव का उत्क्षेप या उत्प्लावन बल (w1) ऊपर की ओर; तो निम्न तीन अवस्थाएँ हो सकती हैं-
(i) जब w > w1, अर्थात् वस्तु का भार उसके उत्क्षेप या उत्प्लावन बल से अधिक हो। इस अवस्था में वस्तु द्रव में डूब जाएगी।
(ii) जब w = w1अर्थात् वस्तु का भार उसके द्वारा हटाए गए द्रव के भार यानी उसके उत्क्षेप के बराबर हो। इस स्थिति में वस्तु पर परिणामी बल w-w1= 0 होता है। इस स्थिति में वस्तु ठीक द्रव की सतह के नीचे तैरती रहती है।
(iii) जब w<w1, अर्थात् वस्तु का भार उस पर लगने वाले उत्क्षेप या उत्प्लावक बल से कम हो। इस स्थिति में परिणामी बल ऊपर की ओर लगता है। अतः वस्तु का कुछ भाग द्रव के ऊपर रहता है और वस्तु द्रव में तैरती रहती है। ऐसी अवस्था में वस्तु का घनत्व द्रव के घनत्व से कम होता है। अतः द्रव में आंशिक रूप से डूबकर तैरने वाली वस्तु के लिए
वास्तु का घनत्व/द्रव का घनत्व = वस्तु का द्रव में डूबा आयतन/वस्तु का कुल आयतन
जैसे- जब बर्फ पानी में तैरती है, तो उसके आयतन का 1/10 भाग पानी के ऊपर 9/10 भाग पानी के नीचे रहता है। अतः बर्फ का घनत्व 0.9 ग्राम/सेमी.3होता है। [शुद्ध जल का घनत्व 1 ग्राम/सेमी.3या 1 किग्रा/मी3होता है।] इसी सिद्धान्त द्वारा पानी मिले हुए अशुद्ध दूध में दुग्धमापी (Lactometer) को डुबाकर दूध में मिश्रित जल की प्रतिशत मात्रा ज्ञात की जाती है।
हाइड्रोमीटरHydrometer
इससे तरल पदार्थों का आपेक्षिक घनत्व मापा जाता है। यह प्लवन के सिद्धान्त पर आधारित है। आर्किमीडीज के सिद्धान्त व प्लवन के नियम के दैनिक जीवन में अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं। जैसे-
1. लोहे का जहाज पानी पर तैरता है, परन्तु लोहे की कील पानी में डूब जाती है। इसका कारण जहाज की विशेष बनावट है। जहाज की विशेष बनावट के कारण इसके द्वारा हटाए गए पानी का भार, जहाज के भार से अधिक होता है, जिसके कारण इस पर अधिक उत्प्लावन बल लगता है व जहाज तैरता रहता है। कील द्वारा हटाए गए द्रव का भार कील के स्वयं के भार से कम होता है, फलतः कील पानी में डूब जाती है।
2. जीवन रक्षा पेटी (life belt), पनडुब्बी भी इसी सिद्धान्त पर कार्य करते हैं।आकिमिडीज का सिद्धान्त गैसों के लिए भी सत्य है।
तैरने के नियम
जब वस्तु किसी द्रव में तैरती है, तो उसका भार उसके द्वारा हटाए गए द्रव के भार के बराबर होता है, तथा वस्तु का गुरुत्व-केन्द्र तथा हटाए गए द्रव का गुरुत्व-केन्द्र दोनों एक ही उर्ध्वाधर रेखा में होते हैं।
मित केन्द्र (Meta Centre): तैरती हुई वस्तु द्वारा विस्थापित द्रव के गुरुत्व-केन्द्र कोउत्लावन केन्द्रकहते हैं। उत्प्लावन केन्द्र से जाने वाली उध्र्व रेखा जिस बिन्दु पर वस्तु के गुरुत्व-केन्द्र से जाने वाली प्रारंभिक ऊध्र्व रेखा को काटती है, उसेमित केन्द्रकहते हैं। तैरने वाली वस्तु के स्थायी संतुलन के लिए मित केन्द्र, गुरुत्व-केन्द्र के ऊपर होना चाहिए।
किसी बर्तन में पानी भरा है और उस पर बर्फ तैर रही है। जब बर्फ पूरी तरह पिघल जाएगी तो पात्र में पानी का तल अपरिवर्तित रहता है अर्थात् पानी का तल पहले के समान ही रहता है।
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