किसी ग्रह के चारों ओर परिक्रमा करने वाले पिण्ड को उस ग्रह का उपग्रह कहते हैं। जैसे-चन्द्रमा, पृथ्वी का एकप्राकृतिक उपग्रह (Natural satellite)है। इसके अलावा मनुष्य ने अनेककृत्रिम उपग्रह (Artificial satellite)छोड़े हैं, जो लगातार पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे है।
उपग्रह का कक्षीय वेगOrbital velocity of a satellite
- उपग्रह का कक्षीय वेग, उसकी पृथ्वी तल से ऊँचाई पर निर्भर करता है। उपग्रह पृथ्वी तल से जितना अधिक दूर होगा, उतना ही उसका वेग कम होगा।
- उपग्रह का कक्षीय वेग, उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है। एक ही त्रिज्या की कक्षा में भिन्न-भिन्न द्रव्यमानों के उपग्रहों का वेग समान होगा।
- पृथ्वी तल के अति निकट चक्कर लगाने वाला उपग्रह का कक्षीय वेग लगभग 8 m/s होता है।
उपग्रह का परिक्रमण कालRevolution Period of a Satellite
उपग्रह अपनी कक्षा में पृथ्वी का 1 चक्कर जितने समय में लगाता है, उसे उसका परिक्रमण काल कहते हैं।
- उपग्रह का परिक्रमण काल भी केवल उसकी पृथ्वी तल से ऊँचाई पर निर्भर करता है और उपग्रह जितना अधिक दूर होगा, उतना ही अधिक उसका परिक्रमण काल होगा।
- उपग्रह का परिक्रमण काल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है।
- पृथ्वी के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह का परिक्रमण काल 84 मिनट होता है।
तुल्यकाली उपग्रह याभू-स्थायी उपग्रहSynchronous or Geo-stationary Satellite
यदि किसी कृत्रिम उपग्रह की पृथ्वी-तल से ऊँचाई इतनी हो कि इसका परिक्रमण काल ठीक पृथ्वी की अक्षीय गति के परिक्रमण काल (24 घंटे) के बराबर हो, तो वह उपग्रह पृथ्वी के सापेक्ष स्थिर रहेगा। इस प्रकार के उपग्रह कोतुल्यकालीयाभू स्थायी उपग्रहकहते हैं। इस उपग्रह की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
- यह उपग्रह पृथ्वी की अक्ष के लम्बवत् विषुवतरेखीय तल में परिक्रमण करता है।
- यह पश्चिम से पूर्व की ओर अपनी कक्षा में परिक्रमा करता है।
- इसका परिक्रमण काल पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूर्णन काल 24 घंटे के तुल्य होता है। यह उपग्रह पृथ्वी तल से लगभग 36,000 किमी० की ऊँचाई पर रहकर पृथ्वी का परिक्रमण करता है।
तुल्यकाली उपग्रह के उपयोग
- इसका उपयोग दूरदर्शन संकेतों को परावर्तित करके दूरदर्शन के कार्यक्रमों को दूरदर्शन सेटों (T.V. sets) पर दिखाया जाता है।
- इसका उपयोग रेडियो प्रसारण (Radio Broadcasting) एवं दूर संचार (Telecommunication) के लिए होता है।
- इसका उपयोग मौसम संबंधी भविष्यवाणी के लिए किया जाता है।
पलायन वेगEscape velocity
किसी वस्तु को ऊपर की ओर जितने अधिक वेग से फेंकते हैं, वह उतनी ही अधिक ऊँचाई तक ऊपर जाती है। यदि वेग को क्रमशः बढ़ाते जाएँ, तो एक ऐसी स्थिति आएगी जब वस्तु गुरुत्वीय क्षेत्र को पार कर अन्तरिक्ष में चली जाएगी, पृथ्वी पर वापस नहीं आएगी। इस न्यूनतम वेग को ही पलायन वेग कहते है।
अतः पलायन वेग वह न्यूनतम वेग है, जिससे किसी वस्तु को पृथ्वी की सतह से ऊपर की आोर फेंके जाने पर वह गुरुत्वीय क्षेत्र को पार कर जाती है, पृथ्वी पर वापस नहीं आती।
पृथ्वी तल से पलायन वेग का मान निम्नांकित सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाता है-
पलायन वेग, [latex]{ v }_{ E }\quad =\quad \sqrt { 2g{ R }_{ e } }[/latex]
जहाँ g गुरुत्वीय त्वरण एवं Reपृथ्वी की त्रिज्या है। इस समीकरण में g एवं Reका मान रखने पर पलायन वेग का मान 11.2 km/s प्राप्त होता है। अतः यदि पृथ्वी तल से किसी वस्तु को 11.2 kms-1या इससे अधिक वेग से ऊपर किसी भी दिशा में फेंक दिया जाए, तो वह वस्तु फिर पृथ्वी तल पर वापस नहीं आएगी।
पलायन वेग, कक्षीय वेग का [latex]\sqrt { 2 }[/latex] गुना होता है। इसीलिए यदि किसी उपग्रह की चाल को V2 गुना (41%) बढ़ा दिया जाए, तो वह उपग्रह अपनी कक्षा को छोड़कर पलायन कर जाएगा।
उपग्रहों में भारहीनता Weightlessness in Satellites
कृत्रिम उपग्रह के अन्दर प्रत्येक वस्तु भारहीनता की अवस्था में होती है, अर्थात् इसमें बैठे अंतरिक्ष यात्री को भी भारहीनता का अनुभव होता है। उपग्रह के तल द्वारा यात्री पर लगाया गया प्रतिक्रिया बल शून्य होता है। इसीलिए उपग्रह के अन्दर यदि कोई व्यक्ति गिलास से जल पीना चाहे, तो वह उसे नहीं पी सकेगा, क्योंकि गिलास टेढ़ा करते ही उसमें से जल निकलकर बाहर बूंदों के रूप में तैरने लगेगा। इसीलिए अंतरिक्ष यात्री,को भोजन आदि पेस्ट (paste) के रूप में ट्यूब में भरकर दी जाती है।
चन्द्रमा भी पृथ्वी का एक उपग्रह है, परन्तु चन्द्रमा पर भारहीनता नहीं है। इसका कारण यह है कि चन्द्रमा का द्रव्यमान अधिक होने के कारण चन्द्रमा स्वयं अपने तल पर स्थित व्यक्ति पर एक आकर्षण बल लगाता है, जिसके कारण उसे कुछ भार का अनुभव होता है, जिसे चन्द्रमा पर व्यक्ति का भार कहते हैं। चन्द्रमा के & का मान पृथ्वी के g का 1/6 गुणा है। अतः चन्द्रमा पर व्यक्ति का भार पृथ्वी पर के भार का 1/6 गुणा होता है।
ग्रहों की गति से संबंधित केप्लर का नियमKepler’s Laws of Planetary Motion
(i) प्रत्येक ग्रह सूर्य के चारों ओरदीर्घवृत्ताकार (elliptical)कक्षा में परिक्रमा करता है तथा सूर्य ग्रह की कक्षा के एक फोकस बिन्दु पर स्थित होता है।
(ii) प्रत्येक ग्रह काक्षेत्रीय वेग (areal velocity)नियत रहता है। इसका प्रभाव यह होता है कि जब ग्रह सूर्य के निकट होता है, तो उसका वेग बढ़ जाता है और जब वह दूर होता है, तो उसका वेग कम हो जाता है।
(iii) सूर्य के चारों ओर ग्रह एक चक्कर जितने समय में लगाता है, उसे उसकापरिक्रमण काल (T)कहते हैं,परिक्रमण काल का वर्ग (T2) ग्रह की सूर्य से औसत दूरी (r) के घन (r3) के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात् T2∝r3इसका प्रभाव यह होता है कि सूर्य से अधिक दूर के ग्रहों का परिक्रमण काल भी अधिक होता है।
उदाहरण- सूर्य के निकटतम ग्रह बुध का परिक्र मण काल 88 दिन है, जबकि दूरस्थ ग्रह वरूण (Neptune) का परिक्रमण-काल 165 वर्ष है।
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